अंधकार में गया के बुनकरों का भविष्य…मार्केट न मिलने से झेल रहे यह दंश, सरकार से लगा रहे यह गुहार


गया : बिहार के गया जिला स्थित मानपुर के पटवा टोली का कपडा कई राज्यों में जाने के साथ फेमस भी हो गया है. लेकिन, गया में ही एक और पटवा टोली है जो चाकन्द बाजार में स्थित है. यहां भी पटवा समाज के बुनकर रहते हैं और पावरलूम से कपड़े तैयार करते हैं. यहां लगभग 20 घर है ऐसे हैं जो सालों से गमछा, बेडशीट, तकिया कवर, साड़ी आदि बनाते आ रहे हैं.

यह समाज मानपुर के पटवा टोली से ही आकर यहां बसे थे. इनका भी मुख्य पेशा कपड़ा बनाना है, लेकिन उनके सामने सबसे बड़ी चुनौती यह है कि उनके पास कोई मार्केट नहीं है. यहां के बुनकर जो भी कपड़े तैयार करते हैं उसको मानपुर के पटवा टोली में ही सप्लाई करते हैं.

अंधकार में चला गया है बुनकरों का भविष्य
चाकन्द के पटवा टोली में लगभग 100 लोगों को रोजगार भी मिला है, लेकिन मार्केट नहीं होने के कारण यहां के बुनकरों का भविष्य उज्जवल नहीं दिख रहा है. मार्केट नहीं होने के कारण नई पीढ़ी इस व्यवसाय से दूर हो रहे हैं और पढ़ाई-लिखाई या फिर अन्य व्यवसाय पर जोर दे रहे हैं. इस व्यवसाय में काफी मेहनत है और धागा कातने से लेकर रंगाई और कपड़े तैयार करने तक में काफी समय लगता है. पहले यहां के लोग हैंडलूम से कपड़े तैयार करते थे, लेकिन ज्यादा मेहनत और अधिक समय लगने के कारण अब लोग पावरलूम से कपड़े तैयार करते हैं. इसमें कम समय और कम लागत में ज्यादा प्रोडक्शन हो रहा है.

पुश्तैनी धंधे से दूर होते जा रही ये पीढ़ी
चाकन्द पटवा टोली के रहने वाले मोतीलाल बताते हैं कि इस व्यवसाय में स्कोप धीरे-धीरे घटते जा रहा है. इसके पीछे की वजह यह है कि हमारे पास कोई मार्केट नहीं है. मार्केट नहीं होने के कारण नई पीढ़ी भी इससे दूर हो रहे हैं. सरकार भी इसको लेकर कोई काम नहीं कर रही है.

सरकार द्वारा सिर्फ बुनकरों को लोन की व्यवस्था की गई है, लेकिन मार्केट नहीं होने की वजह से कारोबार चौपट हो गया है. यहां तैयार किया गया गमछा बेडशीट, चादर मानपुर के पटवा टोली मंडी में कम रेट पर भेज दिया जाता है. वहां से देश के अन्य जगहों पर भेजा जाता है.

बुनकरों के विकास के लिए मार्केट का होना है जरूरी
मोतीलाल ने सरकार से मदद की गुहार लगाते हुए कहा कि सही मायने में बुनकर और पटवा समाज का विकास करना है तो एक बेहतर मार्केट की व्यवस्था की जाए. जहां तैयार किया गया कपड़ा बेचा जा सके. स्थानीय स्तर पर अपने कपड़े बेचते हैं तो ज्यादा लाभ नहीं मिलता है और इस व्यवसाय में ज्यादा मेहनत लगती है. उन्होंने बताया कि चाकन्द के पटवा टोली में लगभग 20 घर में कपड़ा तैयार होता है और यहां 100 से अधिक लोगों को रोजगार भी मिला हुआ है.

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