अमावस्या पर छतरपुर से चित्रकूट जाते हैं लाखों लोग, इस पर्वत की करेंगे परिक्रमा, शास्त्रों में भी बखान


छतरपुर: भाद्रपद अमावस्या करीब है. वैसे तो हर अमावस्या या पूर्णिमा तिथि पर चित्रकूट के कामदगिरि पर्वत की परिक्रमा का बड़ा महत्व है. लेकिन, भाद्रपद अमावस्या पर परिक्रमा के लिए श्रद्धालुओं के जत्थे निकल पड़ते हैं. भाद्रपद की अमावस्या पर कामदगिरि की परिक्रमा का विशेष महत्व माना गया है, इसलिए ग्रामीण अंचलों के लोग काम-धंधे छोड़कर मनौती और आस्था के साथ पैदल ही चित्रकूट के लिए निकलते हैं. तीन दिन पहले ही श्रद्धालु रवाना हो जाते हैं.

सबसे पहले भरतकूप में स्नान
ये सभी श्रद्धालु सबसे पहले भरतकूप में स्नान करने पहुंचते हैं. भरतकूप से रस्सी के सहारे बाल्टी में पानी निकालकर पीने व नहाने की परंपरा है. रविवार के दिन भरतकूप में नहाने का बड़ा महत्व है. मान्यता है कि इस कूप में सभी तीर्थों का जल समाहित है. यहां स्नान करने से प्रयागराज और हरिद्वार जैसा ही पुण्य मिलता है. भगवान श्रीराम के राज्याभिषेक के लिए समस्त तीर्थों का जल इसी कूप में एकत्रित किया गया था. ऐसा भी माना जाता है कि इस जल को पीने से सभी रोग दूर हो जाते हैं.

मंदाकिनी में स्नान की परंपरा
सभी श्रद्धालु अमावस्या के दिन सूर्योदय से पहले ही मंदाकिनी नदी में स्नान करने पहुंच जाते हैं. मान्यता अनुसार प्रभु श्रीराम की परछाई इस नदी में दिखती है. माना जाता है कि मां मंदाकिनी में स्नान करने पर धन, यश, कीर्ति और मोक्ष की प्राप्ति होती है.

कामदगिरि पर्वत का बड़ा महत्व
मंदाकिनी नदी में स्नान करने के पश्चात सभी श्रद्धालु कामदगिरि पर्वत की पंचकोसी परिक्रमा लगाते हैं. मान्यता अनुसार, त्रेतायुग में जब भगवान श्रीराम पत्नी सीता और भाई लक्ष्मण सहित 14 वर्ष के वनवास के लिए निकले थे, तब आदि ऋषि वाल्मीकि की प्रेरणा से तप और साधना के लिए चित्रकूट आए थे. भगवान राम ने सीता और लक्ष्मण के साथ पावन कदमगिरि पर अपने वनवास का साढ़े 11 वर्ष व्यतीत किए थे. इस अलौकिक पर्वत की महिमा गोस्वामी तुलसीदास ने भी रामचरित मानस में भी की है. उन्होंने लिखा है ‘कामदगिरि भे राम प्रसादा, अवलोकत अपहरत विषादा’ यानी जो इस पर्वत के दर्शन करेगा उसके सारे कष्ट दूर हो जाएंगे.

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