अयातुल्ला खुमैनी को कहा था 'हिंदुस्तानी मुल्ला' और छिन गई थी ईरान के शाह की बादशाहत



ayatollah ali अयातुल्ला खुमैनी को कहा था 'हिंदुस्तानी मुल्ला' और छिन गई थी ईरान के शाह की बादशाहत

बात आज से 234 साल पुरानी है…साल था 1790 . उत्तर प्रदेश के बाराबंकी के छोटे से गांव किन्तूर में एक बालक का जन्म हुआ. नाम था-  सैय्यद अहमद मूसवी. तब शायद ही किसी को इहलाम हो कि इसी बालक के आने वाले वंशज भारत से 25 सौ किलोमीटर दूर मौजूद ईरान की किस्मत या यूं कह लीजिए दशा और दिशा ही बदल देंगे.  चौंकिए मत हम बात कर रहे हैं ईरान के सर्वोच्च नेता रहे आयतुल्लाह रूहुल्लाह ख़ुमैनी की. 

वो शख्स जिसने ईरान को न सिर्फ हमेशा के लिए बदल दिया बल्कि बिना उसकी मर्जी के इस मुल्क में पत्ता भी नहीं हिलता था. यूपी के बाराबंकी में जन्मे जिस बालक की बात हमने शुरू में की वो इन्हीं रूहुल्लाह ख़ुमैनी के दादा थे. 

अब बात शुरू से शुरू करते हैं. साल 1790 में यूपी के बाराबंकी में जन्मे सैय्यद अहमद मूसवी एक आम बालक जैसे ही थे लेकिन उसके परिवार को तब के अवध के नवाब की सरपरस्ती हासिल थी. 1830 के दशक में नवाब साहब को एक बार इच्छा हुई मक्का-मदीना और ईरान की धार्मिक यात्रा की जाए. तुरंत ही लाव-लश्कर तैयार हुआ और नवाब साहब निकल पडे यात्रा पर. इस यात्रा में उनके साथ मौजूद थे सैय्यद अहमद मूसवी. नवाब साहब के साथ उनके साथियों ने ईरान के धार्मिक स्थलों की जियारत की. 

इसके बाद नवाब साहब तो अपने वतन लौट आए लेकिन  सैय्यद अहमद मूसवी ईरान के ही खुमैन नाम के गांव में बस गए तब उनकी उम्र थी 40 वर्ष. यहीं  पर रूहुल्लाह ख़ुमैनी के पिता आयतुल्ला मुस्तफा का जन्म हुआ. वे इस्लामी धर्मशास्त्र के मशहूर जानकार माने जाते थे. हिंदुस्तान से कनेक्शन की वजह से ही रूहुल्लाह ख़ुमैनी के पिता और दादा अपने नाम के अंत में हिंदी लगाते थे. 

मसलन- उनके दादा को लोग ईरान में सैय्यद अहमद मूसवी हिंदी के नाम से जानते हैं. बहरहाल खुमैनी गांव में आयतुल्ला मुस्तफा के घर 1902 में जन्म हुआ रूहुल्लाह ख़ुमैनी का जो आगे चलकर आयतुल्लाह ख़ुमैनी या इमाम ख़ुमैनी के रूप में मशहूर हुए. 

लेकिन भारत के बेटे के इस पोते का सफर बेहद मुश्किल भरा रहा है. आयतुल्लाह ख़ुमैनी के जन्म के 5 महीने बाद उनके पिता सैयद मुस्तफ़ा हिंदी की हत्या हो गई थी. पिता की मौत के बाद उनका लालन-पालन उनकी मां और मौसी ने किया. आयतुल्लाह ने बड़े भाई मुर्तजा की देख-रेख में इस्लामी शिक्षा ग्रहण की. ईरान के अराक और कोम शहर स्थित इस्लामी शिक्षा केंद्रों में पढ़ते-पढ़ाते उनके मन में अपने मुल्क की शहंशाही शासन प्रणाली के प्रति गुस्सा पनपने लगा. तब ईरान पर पहलवी सल्तनत का राज था. 

अयातुल्लाह के तेवर जब और उग्र होने लगे तो उन्हें ईरान की जनता का भी पुरजोर समर्थन मिला. जिसके बाद घबराए शहंशाह ने अयातुल्लाह को देश निकाला दे दिया. जिसके बाद तुर्की, इराक और फ़्रांस में निष्कासन के दौरान भी आयतुल्लाह ख़ुमैनी का ईरानी पहलवी शासन का विरोध जारी रहा. यहीं पर उनका भारत कनेक्शन एक बार फिर सामने आया.तब के ईरान के शासक मोहम्मद रजा पहलवी ने उन्हें भारतीय मुल्ला कहकर संबोधित किया. 

दरअसल ईरान की मशहूर क्रांति जब भड़की तो उसके पीछे यह भी एक वजह थी. हुआ यूं कि 7 जनवरी 1978 को ईरान के इत्तेलात अखबार में शाह के इशारे पर एक खबर छपी. जिसमें अयातुल्लाह को भारतीय मुल्ला और ब्रितानी भारतीय उपनिवेश का मोहरा करार दिया. इसी बात ने आग में घी का काम किया और ईरानी क्रांति भभक उठी. मुल्क में दमन चक्र चला लेकिन जनता नहीं झुकी और सड़कों को ही अपना घर बना लिया. 

उधर क्रांति को थमते न देख कर पहलवी खानदान के दूसरे बादशाह आर्यमेहर मुहम्मद रज़ा पहलवी ने 16 जनवरी, 1979 को देश छोड़ दिया और विदेश चले गए. राजा के देश छोड़ने के 15 दिन के बाद ख़ुमैनी लगभग 14 साल के निष्कासन के बाद एक फ़रवरी, 1979 को ईरान लौट आए. इसके बाद उन्होंने ईरान में शाहंशाही की जगह इस्लामी गणराज्य की स्थापना की. 

आप जान कर चौंक जाएंगे की उस दिन सिर्फ ईरान में ही जश्न नहीं मना था. बाराबंकी के किन्तुर गांव में भी लोगों ने जश्न मनाया था क्योंकि उनके गांव का पोता अपने वतन लौट रहा था. ये अलग बात है कि वो वतन हिंदुस्तान नहीं बल्कि ईरान था. बहरहाल ईरान में हुई इस्लामिक क्रांति और उसके बाद के शासन पर हम अगले किसी एपिसोड में बात करेंगे…फिलहाल इस एपिसोड का अंत करते हैं हमारे दौर के मशहूर शायर गुलजार के शेर से

शतरंज के खेल में शाह को मारा नहीं जाता,

सियासत की इस शतरंज में मगर-

मार डालेगा यह ख़ुमैनी शाह-ए-ईरान को.

चलते-चलते आपको एक और दिलचस्प बात बता देते हैं- अयातुल्लाह खुमैनी के चरित्र का एक और पक्ष था. वो सूफियाना कलाम लिखने में भी महारत रखते थे. वे अपनी गजलों को जिस नाम से लिखते थे वो नाम था – रूहुल्लाह हिंदी.

रविकांत ओझा NDTV में डिप्टी एडिटर हैं…

डिस्क्लेमर: इस आलेख में व्यक्त किए गए विचार लेखक के निजी विचार हैं.



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