अल्ट्रासाउंड से पहले लगने वाला चिपचिपा जेल क्या है? क्यों लगाते हैं इसे और क्या होता है असर, जानिए …


जब भी पेट के किसी भी हिस्से में तेज़ दर्द होता है या डॉक्टर को इसके पीछे की वजह जाननी होती है, तो अल्ट्रासाउंड या सोनोग्राफी का सहारा लेना पड़ता है. अल्ट्रासाउंड एक ऐसा उपकरण है जो हमारे शरीर के अंदरूनी हिस्सों की लाइव इमेज दिखाता है. इसके लिए वह सोनार और रेडियो तकनीक का इस्तेमाल किया जाता है.

अक्‍सर आपने देखा होगा कि अल्ट्रासाउंड करने से पहले डॉक्‍टर पेट पर जेल लगाते हैं. तमाम लोगों के मन में इस तरह के सवाल उठते होंगे कि आख‍िर ये है क्या चीज़ और इसकी जरूरत क्‍यों पड़ती है? क्‍या इसके बिना अल्‍ट्रासाउंड हो ही नहीं हो सकता या फिर ये सिर्फ सरफेस को चिकना करता है. चलिए जानते हैं इसके बारे में …

जेल लगाने के पीछे ये होती है वजह …
अल्ट्रासाउंड या स्कैन करते समय शरीर की त्वचा और प्रोब के बीच जेल का इस्तेमाल होता है. यह ट्रांसड्यूसर और त्वचा के बीच में होने वाले हवा के छोटे- छोटे कणों को बिल्कुल खत्म कर देता है. ऐसा होने से यहां एयर बनने की संभावना ना के बराबर हो जाती है. इससे acoustic impedance कम होता है और रेडियो तरंगें एक से दूसरे मीडियम के बीच आराम से जाती हैं. किसी भी टिशू से टकराने पर कुछ तरंगें लौटकर प्रोब तक आती हैं और कुछ आगे निकल जाती हैं. वहां से आगे के टिशू या यंत्रों से टकराकर वापस आती हैं. इसकी वजह से हमें शरीर के गहराई में मौजूद अंगों की अच्छी इमेज देखने को मिलती है.

त्वचा के लिए है सुरक्षित
इस जेल को पानी और प्रोपीलीन ग्लाईकोल से बनाया जाता है. ये हानिकारक नहीं होता है क्योंकि ये पूरी तरह नॉन टॉक्सिक होता है. रेडियोलॉजिस्ट्स के मुताबिक जेल में कोई ज़हरीली चीज़ नहीं होती है, जो त्वचा को नुकसान पहुंचा सके. जेल की वजह से ही ट्रांसड्यूसर का सेंसर त्वचा से संपर्क बनाकर आसानी से आगे बढ़ पाता है.

FIRST PUBLISHED : May 16, 2024, 08:01 IST



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