इस पेड़ की शिव जी से जुड़ी है मान्यता, सुबह तीन बजे से शुरू होती है पूजा, बाबा बैद्यनाथ के दर्शन जितना मिलता है पुण्य!


मो. सरफराज आलम /सहरसा: जिले के बनगांव में हर साल एक अनोखी परंपरा निभाई जाती है, जिसमें 50 से अधिक गांवों के लोग एक विशाल बरगद के पेड़ की पूजा करते हैं. यह दृश्य किसी विवाह समारोह जैसा प्रतीत होता है, क्योंकि इस बरगद को दुल्हन की तरह सजाया जाता है और बैंड-बाजों के साथ श्रद्धालु झूमते नजर आते हैं. इस पूजा की शुरुआत तड़के 3 बजे से होती है और श्रद्धालुओं की भीड़ धीरे-धीरे बढ़ती जाती है.

बरगद के पेड़ से जुड़ी धार्मिक मान्यता
स्थानीय निवासी प्रसंजीत कुमार ने लोकल 18 से बातचीत में बताया कि इस बरगद का धार्मिक महत्व शिव महापुराण और अन्य धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कैलाश पर्वत से जोड़ा जाता है. कैलाश पर्वत पर स्थित विशाल बरगद का वर्णन किया गया है, जहां एक ही समय में छह ऋतुओं का अनुभव होता है और इसे भगवान शिव का प्रिय स्थान माना गया है. इसी मान्यता के आधार पर बनगांव का यह बरगद पेड़ विशेष पूजा का केंद्र बना हुआ है.

शिव भक्त की कथा से जुड़ी है पूजा
प्रसंजित कुमार ने बताया कि इस पूजा से जुड़ी एक प्राचीन कथा है. बनगांव, जिसे पहले भूसबर डीह कहा जाता था, इसमने एक शिव भक्त ब्राह्मण रहते थे. वे बाबा बैद्यनाथ के दर्शन की लालसा रखते थे, लेकिन वृद्धावस्था के कारण देवघर नहीं जा सकते थे. उनकी अटूट श्रद्धा और शिव भक्ति को देखते हुए, भगवान शिव ने उन्हें सपने में दर्शन दिए और कहा कि धर्ममुला नदी के तट पर स्थित इस विशाल बरगद के नीचे पूजा करने से उन्हें वही पुण्य मिलेगा जो देवघर में पूजा करने से मिलता है.

बनगांव: मिथिला का काशी
इस धार्मिक घटना के बाद यह स्थान धीरे-धीरे प्रसिद्ध हो गया, और अब बनगांव को “मिथिला का काशी” कहा जाता है. यहां कीर्तन, शिव भक्ति, और इस बरगद की पूजा का आयोजन बनगांव की सांस्कृतिक पहचान बन चुका है. शिव भक्तों के लिए यह स्थल उतना ही पवित्र माना जाता है जितना कि देवघर का बाबा बैद्यनाथ मंदिर.

बाबा लक्ष्मेश्वर नाथ मंदिर की स्थापना
गोस्वामी लक्ष्मीनाथ ने इस क्षेत्र में अपनी कुटी बनाई और बाबा लक्ष्मेश्वर नाथ शिव मंदिर की स्थापना की. हर साल भाद्रपद की पूर्णिमा के चौथे दिन, बनगांव के हर परिवार से एक सदस्य देवघर जाता है और अन्य लोग इस विशाल बरगद के नीचे शिव की पूजा कर अपने जीवन को धन्य मानते हैं.

श्रद्धालुओं का जनसैलाब
हर साल इस पूजा में हजारों की संख्या में श्रद्धालु शामिल होते हैं. यह पूजा न केवल धार्मिक आस्था का प्रतीक है, बल्कि बनगांव और उसके आसपास के ग्रामीणों के लिए एक विशेष सांस्कृतिक और सामाजिक आयोजन भी बन गया है.

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