इस मंदिर की रसोई में 500 सालों से जल रही अग्नि, इसी में बनता है भगवान का भोग, नहीं होता माचिस का प्रयोग


निर्मल कुमार राजपूत/मथुरा: धर्म नगरी वृन्दावन में भगवान श्री कृष्ण की अनेकों लीलाएं और कथाओं के आपको दर्शन देखने को और सुनने को मिल जाएंगे. वृंदावन में एक मंदिर ऐसा है, जहां 500 वर्ष से भगवान की रसोई में अग्नि प्रज्वलित है. भगवान का प्रसाद भी इसी अग्नि से तैयार होता है. भगवान की रसोई की वह एक्सक्लूसिव तस्वीर हम आपके सामने सांझा कर रहे हैं.

500 सालों से  लगातार जल रही अग्नि 

वृंदावन के कण – कण में श्रीकृष्ण और राधा का वास है. राधा कृष्ण की अनेक लीलाएं, वृंदावन में आपको देखने को मिल जाएंगी. एक ऐसी लीला के बारे में हम आपको बताने जा रहे हैं, जिसे शायद आपने पहले कभी नहीं सुना होगा. वृंदावन के राधा रमण लाल मंदिर की रसोई में आज भी 500 वर्षों से लगातार अग्नि प्रज्ज्वलित है. रसोई में माचिस का प्रवेश पूर्णतया वर्जित है. यह अग्नि कैसे जलाई गई और इसके पीछे क्या मान्यता है, वह हम आपको बता रहे हैं. राधा रमण लाल जू के भक्त  और चैतन्य महाप्रभु के अनन्य शिष्य कहे जाने वाले गोपाल भट्ट गोस्वामी ने करीब 475 वर्ष पहले मंदिर में वैदिक मंत्रोच्चारण की शक्ति से हवन की लकड़ियों को एक दूसरे के साथ घिसा, तो अग्नि प्रज्ज्वलित हुई. उसी हवन कुंड से निकली इस अग्नि को रसोई में प्रयोग करने की परंपरा शुरू की. जिसे मंदिर सेवायत और उनके वंशज बदस्तूर निभाते चले आ रहे हैं. यह अग्नि 477 साल बाद आज भी रसोई घर में प्रज्वलित है. इसी अग्नि से भगवान राधा रमण लाल जू का कच्चा प्रसाद तैयार होता है.

गोपाल भट्ट गोस्वामी के वंशज और सेवायत निभा रहे परम्परा

राधा-रमण लाल मंदिर के सेवायत पुजारी सुमित ने Local18 से बातचीत में बताया कि मंदिर में आज तक माचिस का प्रयोग नहीं हुआ है. मंदिर की परंपरा बेहद अनोखी है. उन्होंने बताया कि भगवान का जो प्रसाद रसोई घर में तैयार होता है, उस अग्नि को प्रज्वलित करने के लिए माचिस का प्रयोग नहीं होता है. करीब 500 साल से लगातार अग्नि प्रज्वलित होती चली आ रही है.

ये है मंदिर की पौराणिक मान्यता

भगवान राधा रमण जू लाल मंदिर की पौराणिक मान्यता के बारे में मंदिर आचार्य गोपाल भट्ट के वंशज वैष्णवा आचार्य सुमित Local18 को बताते हैं कि ठाकुर राधा रमण लाल का प्राकट्य पौने 500 साल पहले शालिग्राम शिला से हुआ. आचार्य गोपाल भट्ट चैतन्य महाप्रभु के अनन्य भक्त थे. आचार्य गोपाल भट्ट गोस्वामी की साधना व प्रेम के वंशीभूत होकर वैशाख शुक्ल की पूर्णिमा की प्रभात बेला में प्रकट हुए.

अन्य कार्यों में भी नहीं होता माचिस का प्रयोग

Local18 ने ज़ब मंदिर के सेवायत पुजारी सुमित से रसोई के बारे में जानना चाहा तो उनका कहना है कि भगवान का प्रसाद रसोई में बनने के साथ-साथ अनेक ऐसे कार्य हैं, जो मंदिर के सेवायत संपादन करते हैं. उनमें भी माचिस का प्रयोग नहीं किया जाता है. भगवान की प्रसादी भक्त पाते हैं, मंदिर में हर दिन हजारों श्रद्धालु दर्शन के लिए आते हैं.

Tags: Hindi news, Local18

Disclaimer: इस खबर में दी गई जानकारी, राशि-धर्म और शास्त्रों के आधार पर ज्योतिषाचार्य और आचार्यों से बात करके लिखी गई है. किसी भी घटना-दुर्घटना या लाभ-हानि महज संयोग है. ज्योतिषाचार्यों की जानकारी सर्वहित में है. बताई गई किसी भी बात का Local-18 व्यक्तिगत समर्थन नहीं करता है.



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