इस मंदिर में राजा अम्बरीष के समय बजते थे 9,999 झालर, हर साल देवझूलनी एकादशी पर लगता है मेला-


सिरोही : भगवान श्रीकृष्ण द्वारा गुजरात में बसाई गई नगरी द्वारका के बारें में तो आपने सुना होगा, लेकिन आज हम आपको द्वारका के प्राचीन मंदिर से भी प्राचीन आदि द्वारिका मानें जाने वाले सिरोही जिले के उमरणी गांव स्थित ऋषिकेश मंदिर के बारे में बताने जा रहे हैं. बताया जाता है इस मंदिर का इतिहास महाभारत का से जुड़ा हुआ है.

मान्यताओं के अनुसार यहां हजार वर्ष तक राजा अम्बरीश ने तपस्या की थी. तीन वर्ष तक निराहार तपस्या राजा ने की थी. इस कठोर तपस्या से इंद्रदेव का सिंहासन डोलने लगा, तो उन्होंने वज्र से प्रहार कर दिया, जिस पर पहाड़ी के नीचे तपस्या कर रहे राजा पर शिला गिरने लगी, लेकिन तप बल की वजह से ये शिला अधर ही रह गई. इसके बाद भगवान विष्णु ने राजा को दर्शन दिए और राजा से वर मांगने के लिए कहा.

राजा ने अपनी समस्त प्रजा को सशरीर स्वर्ग भेजने और भगवान के जिस स्वरूप में दर्शन हुए, उसी स्वरूप में यहां विराजमान होने का वर मांगा. जिसके बाद भगवान विष्णु ऋषिकेश स्वरूप में यहां विराजमान हैं. मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण ने द्वारका नगरी जाते समय सबसे पहले यहीं विश्राम किया था. भगवान की बसाई द्वारका नगरी से पहले इस मंदिर के स्थापित होने की वजह से इसे आदिद्वारका भी कहा जाता है. गुजरात से काफी संख्या में यहां भक्त आते हैं.

प्रतिमा के दोनों तरफ बने भगवान विष्णु के अवतार
दिर के सामने अश्वमेघ यज्ञ कुंड है. मंदिर के मुख्य द्वार के बाहर भगवान गणेश और हनुमान प्रतिमाएं स्थापित है. मंदिर के मंडप में सुंदर कलाकृतियां बनी हुई है. मंदिर के सामने बने एक पिलर को लेकर मान्यता है कि इस पिलर को चारों तरफ से कोई व्यक्ति अपने हाथों से पूरी तरह नहीं पकड़ सकता है. इस पिलर पर प्राचीन भाषा में संदेश लिखे हुए हैं.

गर्भगृह में भगवान विष्णु की कगले पत्थर की प्रतिमा के चारों तरफ भगवान विष्णु के विभिन्न अवतार बने हुए हैं. वहीं पास में पालकी में लड्डू गोपाल की पूजा होती है. मंदिर परिसर में कुछ छोटे मंदिर भी बने हुए हैं. इनमें और मुख्य मंदिर में कुछ प्राचीन प्रतिमाएं भी है. जिनमें से अधिकांश खंडित अवस्था में हैं. ये प्रतिमाएं मुगल आक्रांताओं द्वारा खंडित कर दी गई थी. मंदिर में एक प्राचीन भीम चक्की भी बनी हुई है.

देवझूलनी एकादशी पर इतने मंदिरों में बजते थे झालर
भक्त दलपतसिंह देवड़ा ने बताया कि मंदिर काफी प्राचीन है. इस मंदिर का इतिहास स्कंध पुराण के तेरहवें अध्याय में है. यहां पर राजा अम्बरीश के समय 9 हजार 999 मंदिरों के झालर बजते थे. आप चारों धाम के दर्शन करके आओ और सिर्फ ऋषिकेश मंदिर के दर्शन करों, इतना पुण्य है. मंदिर में हर वर्ष देवझूलनी एकादशी पर प्राचीन ऋषिकेश मंदिर पर मेला भरता है, जिसमें जिलेभर से भक्त आते हैं.

परिवार पूर्व संध्या पर पूर्वजों के तर्पण करने के साथ रातभर धार्मिक अनुष्ठान होते है. इस दिन यहां भक्त दीपक जलाते हैं. जैसे-जैसे इस दीपक का प्रकाश बढ़ता है, वैसे-वैसे उनके पापों का नाश होता है. उस दिन रात्रि जागरण भी होता है. इस प्राचीन मंदिर के लिए राज्य समेत गुजरात, महाराष्ट्र के अलावा पूरे देश से श्रद्धालु दर्शन करने आते हैं. वर्तमान में मंदिर का संचालन देवस्थान बोर्ड के अधीन हो रहा है.

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