एच-1बी वीजा: ट्रंप प्रशासन में बहस और भारतीय पेशेवरों का भविष्य


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H1B Visas: एच-1बी वीजा पर अमेरिकी समाज और सरकार में बहस जारी है. डोनाल्ड ट्रंप की टीम में भी इस मसले पर एक राय नहीं है. बीते करीब 40 सालों में अमेरिका की इस एच-1बी नीति ने टेक इंडस्ट्री को बदल दिया है. इसका सबस…और पढ़ें

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एच-1बी वीजा को लेकर डोनाल्ट ट्रंप के करीबी भी एक राय नहीं हैं.

हाइलाइट्स

  • एच-1बी वीजा पर अमेरिकी समाज और सरकार में बहस
  • डोनाल्ड ट्रंप की टीम में एच-1बी वीजा पर मतभेद
  • एच-1बी वीजा का सबसे बड़ा लाभार्थी भारत है

H1B Visas: एच-1बी वीजा के मसले पर अमेरिकी समाज और सरकार के भीतर जमकर बहस चल रही है. हर कोई अपनी-अपनी तरह से अमेरिकी सरकार की इस नीति का गुणगान और विरोध कर रहा है. राष्ट्रपति चुनाव प्रचार के दौरान डोनाल्ड ट्रंप ने भी इस मुद्दे पर खूब बड़ी-बड़ी बातें कही. लेकिन अब उनकी ही टीम इस मसले पर दो फाड़ हो गई है. दरअसल, बीते करीब चार दशक में एच-1बी वीजा कार्यक्रम ने अमेरिका की टेक इंडस्ट्री की तस्वीर बदल दी है. इस दौरान एच-1बी का लाभ उठाते हुए लाखों टेक वर्कर्स अमेरिका आए. इंडस्ट्री के ग्रोथ में योगदान दिया और खुद का भी विकास किया.

इन लोगों में दुनिया के सबसे अमीर व्यक्ति एलन मस्क, माइक्रोसॉफ्ट के सीईओ सत्य नडेला और अल्फाबेट (गूगल की होल्डिंग कंपनी) के सीईओ सुंदर पिचाई जैसे नाम शामिल हैं. इन सभी की सफलता में कहीं न कहीं एच-1बी वीजा का अहम योगदान रहा.

डोनाल्ड ट्रंप की जीत के बाद एच-1बी वीजा कार्यक्रम के भविष्य पर तीखी बहस शुरू हो गई है. यह बहस दिसंबर के अंत में मस्क और विवेक रामास्वामी के सोशल मीडिया पर पोस्ट किए गए मैसेज से शुरू हुई. ट्रंप ने रामास्वामी को सरकारी दक्षता सलाहकार आयोग के सह-अध्यक्ष के रूप में नामित किया था. ट्रंप के करीबियों द्वारा एच-1बी वीजा कार्यक्रम की आलोचनाओं के जवाब में रामास्वामी ने कहा था कि यह कार्यक्रम अमेरिका की वैश्विक प्रतिस्पर्धात्मकता और तकनीकी नेतृत्व बनाए रखने के लिए जरूरी है. इसके बाद ट्रंप के समर्थकों ने बवाल मचा दिया. डोनाल्ड ट्रंप के लिए मेक अमेरिका ग्रेट अगेन (MAGA) अभियान चलाने वाले बौखला गए. माना जा रहा है कि उनके विरोध के कारण ही रामास्वामी को अपने कदम खींचने पड़े. वह ट्रंप प्रशासन का हिस्सा नहीं बन पाए.

सबसे मुखर विरोधी
डोनाल्ड ट्रंप की टीम में एच-1बी वीजा कार्यक्रम का विरोध करने वाले तीन सबसे अहम नाम हैं. ये नाम हैं- ट्रंप के करीबी और गृह सुरक्षा और नीति विभाग में डिप्टी सलाहकार स्टीफन मिलर, व्हाइट हाउस के पूर्व वरिष्ठ अधिकारी स्टीव बैनन और मीडिया पर्सनैलिटी टक्कर कार्लसन. ये काफी प्रभावी लोग हैं. ये लंबे समय से इस कार्यक्रम को निशाना बना रहे हैं. इनका दावा है कि यह नीति अमेरिकी श्रमिकों को कमजोर करती है. इससे अमेरिकियों की नौकरियां खतरे में पड़ रही है. इस नीति से सस्त मजदूर अमेरिका आ रहे हैं और अमेरिकी लोगों को उचित काम नहीं मिल पा रहे हैं. अमेरिकी कांग्रेस में भी इनके कुछ करीबी लोग हैं. इसमें सीनेटर चक ग्रेसली का नाम भी शामिल है.

भारत से कैसे जुड़ा है यह मसला
दरअलस, एच-1बी वीजा कार्यक्रम का कोई विरोध सीधे तौर पर भारत विरोध के रूप में देखा जाता है. क्योंकि इस क्रायक्रम का सबसे बड़ा लाभार्थी भारत है. भारत से बड़ी संख्या में पेशेवर इसी नियम को ढाल बनाकर अमेरिका जाते हैं. रिपोर्ट के मुताबिक अमेरिका की ओर से जारी कुल एच-1बी वीजा में से 70 फीसदी से अधिक भारतीयों को मिलता है. इसी कारण बीते करीब 25 सालों में अमेरिकी समाज में काफी कुछ बदल गया है. इस वीजा के कारण ही बीते 25 साल में अमेरिका में भारतीय मूल के लोगों की आबादी तीन गुना बढ़ गई है. वर्ष 2000 के आसपास अमेरिका में जहां केवल 16 लाख भारतीय थे वहीं आज उनकी संख्या बढ़कर करीब 50 लाख हो गई है. भारत इस एच-1बी वीजा का सबसे बड़ा लाभार्थी है. इससे दोनों देशों में टेक्नोलॉजी और अन्य सेक्टरों में व्यापाक विकास हुआ है. लेकिन, ट्रंप के करीबी इसको मुद्दा बना रहे हैं. हालांकि, खुद अमेरिकी समाज इस मसले बंटा हुआ है. ऐसे में डोनाल्ट ट्रंप प्रशासन के लिए कोई भी फैसला लेना आसान नहीं होगा.

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