काश ‘कवच’ होता! तो टल जाता ओडिशा का भीषण रेल हादसा, जानिए कैसे काम करती है ये एक्सीडेंट प्रूफ टेक्नोलॉजी



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हाइलाइट्स

रेलवे ने ट्रेन एक्सीडेंट की घटनाओं को रोकने के लिए ‘कवच’ टेक्नोलॉजी को विकसित किया है.
पिछले साल मार्च में ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन सिस्टम का ट्रायल हुआ था.
कवच टेक्नोलॉजी फिलहाल देश के कुछ रेलवे रूट पर ही उपलब्ध है.

Odisha Train Accident: ओडिशा के बालासोर में हुए दर्दनाक रेल हादसे से पूरा देश गमगीन है. इस भीषण दुर्घटना में करीब 288 लोगों के मारे जाने और 900 लोगों के घायल होने की सूचना है. इस हादसे के बाद ‘कवच’ तकनीक की जरूरत को लेकर फिर बात होने लगी है. दरअसल भारतीय रेलवे कवच टेक्नोलॉजी के जरिए जीरो एक्सीडेंट के अपने लक्ष्य को हासिल करने की दिशा में काम कर रहा है. रेलवे के प्रवक्ता अमिताभ शर्मा ने बताया कि जिस रूट पर यह भयानक एक्सीडेंट हुआ वहां पर कवच प्रणाली उपलब्ध नहीं थी.

देश में ट्रेन एक्सीडेंट की घटनाओं को रोकने के लिए भारतीय रेलवे ‘कवच’ टेक्नोलॉजी (Kavach Technology) को विकसित कर चुका है. इस तकनीक का सफल प्रयोग पिछले साल ही किया जा चुका है. हालांकि, यह तकनीक देश के सभी रेल रूट पर उपलब्ध नहीं है. इस टेक्नोलॉजी को सभी रेलवे ट्रैक पर लागू करने की दिशा में काम जारी है.

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क्या है कवच टेक्नोलॉजी
‘कवच’ स्वदेशी रूप से विकसित ऑटोमैटिक ट्रेन प्रोटेक्शन (Automatic Train Protection) सिस्टम है. रेलवे के अनुसार, कवच टेक्नोलॉजी ट्रेनों की आपस में भिड़ंत को रोकने का काम करती है. इस तकनीक में सिग्‍नल जंप करने पर ट्रेन खुद ही रुक जाती है. पिछले साल मार्च में कवच टेक्नोलॉजी का सफल परीक्षण किया गया था. खुद रेल मंत्री अश्विनी वैष्णव इस दौरान एक ही ट्रैक पर दौड़ रही दो ट्रेनों में से एक गाड़ी में सवार थे.

दूसरी ट्रेन के इंजन में रेलवे बोर्ड के चेयरमैन मौजूद थे. एक ही पटरी पर आमने सामने आ रहे ट्रेन और इंजन ‘कवच’ टेक्नोलॉजी की वजह से आपस में टकराए नहीं. क्योंकि कवच ने दूसरी गाड़ी को 380 मीटर दूर ही रोक दिया.

कैसे काम करता है कवच
‘कवच’ प्रणाली में हाई फ्रीक्वेंसी के रेडियो कम्युनिकेशन का इस्तेमाल किया जाता है. ये सिस्टम तीन स्थितियों में काम करता है – जैसे कि हेड-ऑन टकराव, रियर-एंड टकराव, और सिग्नल खतरा. ब्रेक विफल होने की स्थिति में ‘कवच’ ब्रेक के स्वचालित अनुप्रयोग द्वारा ट्रेन की गति को नियंत्रित करता है. ‘ऑन बोर्ड डिस्प्ले ऑफ सिग्नल एस्पेक्ट’ (OBDSA) लोको पायलटों को कम दिखने पर भी यह संकेत देता है. एक बार सिस्टम सक्रिय हो जाने के बाद, 5 किलोमीटर की सीमा के अंदर ट्रेनें रुक जाती हैं.

कवच टेक्नोलॉजी फिलहाल देश के कुछ रेलवे रूट पर ही उपलब्ध है. फाइनेंशियल एक्सप्रेस की रिपोर्ट के अनुसार, 31 दिसंबर 2022 तक, कवच के तहत भारतीय रेलवे नेटवर्क के 1,455 किलोमीटर रूट को कवर किया गया. फिलहाल दिल्ली-मुंबई और दिल्ली-हावड़ा कॉरिडोर (3,000 रूट किलोमीटर) पर ‘कवच’ को लेकर काम चल रहा है. हर साल 4,000 से 5,000 किलोमीटर में इस तकनीक को लागू किया जाएगा.

Tags: Ashwini Vaishnaw, Indian railway, Irctc, Train accident



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