क्या कहता है विज्ञान: ब्रह्माण्ड के फैलने की रफ्तार आखिर वैज्ञानिकों के लिए क्यों बन गई है चुनौती?
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एक रिसर्च में वैज्ञानिकों ने ब्रह्माण्ड के विस्तार की रफ्तार पहेली को हल करने की कोशिश की है. पिछले कुछ समय से वैज्ञानिकों को पता चल रहा है कि ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति अनुमान से कहीं ज्यादा तेजी से फैल रही है. लेकिन इस…और पढ़ें
ब्रह्माण्ड फैल रहा है. यह हमारे वैज्ञानिकों के लिए एक बड़ी खबर थी. करीब एक सदी पहले निकले इस नतीजे ने दुनिया में हलचल मचा दी थी. लेकिन उससे भी चौंकाने वाली खबर करीब 25 साल पहले आई जब वैज्ञानिकों ने यह ऐलान किया कि ब्रह्माण्ड के फैलने की रफ्तार तेजी से बढ़ रही है. अब एक बार फिर जब वैज्ञानिकों ने ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति का अंदाजा लगाता है और तो उन्हें फिर चौंकाने वाले नतीजे मिले हैं. सवाल ये है कि आखिर विस्तार की गति में बदलाव वैज्ञानिकों के लिए चुनौती क्यों हैं. आइए जानते हैं कि नई रिसर्च की रोशनी में इस पर क्या कहता है विज्ञान (What does science say)?
गहराता जा रहा है रहस्य
ब्रह्माण्ड के विस्तार की रफ्तार दशकों से वैज्ञानिकों के लिए चुनैती बनी हुई है, हालिया मापनों ने रहस्य को केवल गहराने का काम किया है. इससे संकेत मिलता है कि वर्तमान सिद्धांत कुछ अहम बात को नजरअंदाज कर रहे हैं. जो अब तक देखा गया है उससे पता चलता है कि गैलेक्सी जिस रफ्तार से दूर जा रही हैं वह उम्मीद से कहीं ज्यादा है.
एक नया अध्ययन
बहुत से लोगों को यही लगने लगा है कि कहीं खगोलविज्ञान का स्टैंडर्ड मॉडल यह समझाने के लिए नाकाफी तो नहीं है? इसीलिए ड्यूक यूनिवर्सिटी में भौतिकी के असिस्टेंट प्रोफेसर डैन स्कोल्निक और उनकी टीम ने जो अध्ययन किया है वह इस मुद्दे पर आंकड़ों और अनुमानों के अंतर को दूर करने की कोशिश कर रहा है.
ब्रह्माण्ड के विस्तार की गति लंबे समय से वैज्ञानिकों के लिए कठिन चुनौती बनी हुई है. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
हबल के जमाने से
साल 1929 में एडविन हबल ने ब्रह्माण्ड के विस्तार को पहचाना था. इस विस्तार की दर को हबल कॉन्स्टेंट कहा जाता है. तब से इसे कई बार मापा जा चुका है और वैज्ञानिकों की करीब हर पीढ़ी ने इसके सटीक मान को निकालने की कोशिश की है जिससे कि समझा जा सके कि विस्तार की रफ्तार से खगोलीय पिंडों को समझा जा सके. कुछ शोधकर्ताओं ने पास की गैलेक्सी के आंकड़ों को देखा तो कुछ ने शुरुआती ब्रह्माण्ड को अपना आधार बनाया, लेकिन समय साथ इन दोनों समूह के मापन ने एक नए विवाद को जन्म दिया जिसे हबल टेंशन कहते हैं. स्कोल्निक के मुताबिक यह टेंशन एक संकट में बदल गया है.
अनुमान और जानकारी
विवाद ये है कि जब शोधकर्ता सुदूर दिखने वाले ब्रह्माण्ड और आज हमारे आसपास दिखने वाले ब्रह्माण्ड की तुलना करते हैं तो कुछ गड़बड़ लगती है. मानक सिद्धांत के अनुमान बताते हैं कि विस्तार की स्थानीय मापों के तुलना में रफ्तार धीमी है. स्कोल्निक बताते हैं कि आज की तस्वीर और शुरुआती तस्वीर में अंतर है. पर दिक्कत ये है कि बिग बैंग के तस्वीर और आज की तस्वीर को जोड़ने वाले कर्व से जो पता चल जा रहा है वह अनुमानों से मेल नहीं खा रहा है.
नई रिसर्च में वैज्ञानिक दूरियां मापने के नतीजों में सटीक सुधार करने की कोशिश कर रहे हैं. (प्रतीकात्मक तस्वीर: shutterstock)
खगोलीय सीढ़ी में सुधार की कवायद
वैज्ञानिकों ने सालों से खोगलीय पिंडों की दूरी कौ मापने के लिए एक खगोलीय सीढ़ी (Cosmic ladder) का उपयोग किया. हर पायदान का मापन अगले पायदान के मापन का आधार बनता रहा, जिससे मापनों की एक विश्वसनीय चेन बनती चली गई. डार्क एनर्डजी स्पैक्ट्रोस्कोप इंस्ट्रूमेंट (DESI) प्रोजेक्ट के जरिए गैलेक्सी की दूरियों के सटीक मापन मिले. स्कोल्निक के मुताबिक, “…लेकिन उनकी सीढ़ी का पहला पायदान ही गायब था.” स्कोल्निक ने इसी पर काम किया.
कोमा क्लस्टर से शुरुआत
पहली पायदान का देखने का एक अच्छा तरीका कोमा क्लस्टर है. शोधकर्ताओं में करीब 40 साल तक इसकी सही दूरी पर विवाद था. इसके सटीक मापन के लिए स्कोल्निक और उनकी टीम ने इस क्लस्टर के 12 वन ए प्रकार के सुपरनोवा का प्रकाश के पैटर्न का अध्ययन किया. ऐसे सुपरनोवा की चमक का सीधा संबंध उनकी दूरी से होता है इसलिए दूरी मापने के लिए ये अच्छा जरिया हो सकते हैं. शोधकर्ताओं ने पाया कि कोमा क्लरस्टर 32 करोड़ प्रकाश वर्ष की दूरी पर है और यह दूरी पिछले 40 सालों से मापी जा रही दूरी के बीच की है जो बताता है कि उनके मापन की गणना भी सटीक थी.
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नतीजों से उम्मीदें क्यों?
स्कोल्निक की टीम ने हबल कॉन्टेंट की नई वैल्यू निकली जो कि 76.5 किलोमीटर प्रति सेकेंड प्रति मेगापार्सेक थी. यह बताता है कि 32.6 लाख प्रकाश वर्ष की दूरी पर मौजूद गैलेक्सी कितनी तेजी से दूर जा रही हैं. इससे हमें यह पता चला कि पास का ब्रह्माण्ड पिछले आंकलनों की तुलना में ज्यादा तेजी से फैल रहा है. लेकिन जिस तरह से स्टोल्निक एक करक के पायदानों में सुधार कर रहे हैं, उन्हें उसी तरह की संख्याएं मिल रही है.
लेकिन ना तो अभी स्कोल्निक का काम पूरा हुआ और ना ही अभी दूसरे शोधकर्ता खुद को आश्वस्त होने की स्थिति में पा रहे हैं. क्योंकि अभी बहुत से सवालों के जवाब की तलाश बाकी है, जिनमें डार्क मैटर और डार्क एनर्जी शामिल हैं. ऐसे में वैज्ञानिक अलग अलग संभावनाओं को खंगाल रहे हैं. जबकि कुछ ज्यादा सटीक मापन करने पर भी ध्यान दे रहे हैं. . यह अध्ययन द एस्ट्रोफिजिकल जर्नल लैटर्स में प्रकाशित हुआ है.
Noida,Gautam Buddha Nagar,Uttar Pradesh
January 18, 2025, 08:01 IST