क्या तीर्थराज प्रयाग भी सरयू नदी में धुलते हैं अपने पाप? जानें इस नदी की धार्मिक मान्यता!
अयोध्या : सरयू तट पर बसी प्रभु राम की नगरी अयोध्या मंदिर और मूर्तियों के शहर से पूरे विश्व में विख्यात है. बीते 22 जनवरी को प्रभु राम अपने भव्य महल में विराजमान हो चुके हैं .हर दिन लाखों की संख्या में भक्त रामलला के दर्शन कर रहे हैं. ऐसा हो ही नहीं सकता की अयोध्या का जिक्र हो और मां सरयू के महत्व की चर्चा ना हो . अयोध्या की गाथा, प्रभु राम की कहानी मां सरयू के बिना अधूरा मानी जाती है. भगवान राम के जन्म स्थान पर बहने वाली मां सरयू सनातन धर्म में बहुत महत्वपूर्ण मानी जाती है. तो चलिए आज हम आपको इस रिपोर्ट में बताते हैं कि कैसे हुआ अयोध्या में मां सरयू का आगमन? क्या है प्रभु राम के प्यारी सरयू नदी का रहस्य जिसे जानकर हर कोई दंग रह जाता है .
दरअसल सरयू नदी में स्नान के महत्व का वर्णन करते हुए गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस में लिखा है कि अयोध्या के उत्तर दिशा में सरयू नदी बहती है . रामचरितमानस के मुताबिक एक बार भगवान श्री राम ने लक्ष्मण जी को बताया था कि सरयू नदी इतनी पवित्र है कि यहां लोग यहां तीर्थ दर्शन और स्नान के लिए आते हैं. यहां स्नान करने मात्र से ही सभी तीर्थ स्थानों के दर्शन के पुण्य की प्राप्ति होती है. ऐसी मान्यता है कि जो व्यक्ति सरयू नगीं में ब्रह्म मुहूर्त में स्नान करता है, उसे सभी तीर्थों के दर्शन का फल मिलता है. पौराणिक हिंदू कथाओं के अनुसार सरयू और शारदा नदी का संगम तो हुआ ही है, सरयू और गंगा का संगम भी श्री राम के पूर्वज भागीरथ ने करवाया था.
मानस खंड में है सरयू नदी का जिक्र
मानस खंड में सरयू को गंगा और गोमती को यमुना नदी का दर्जा दिया गया है. धार्मिक ग्रंथों के अनुसार जिस प्रकार गंगा नदी को भागीरथी धरती पर लाए थे. उसी प्रकार सरयू नदी को भी धरती पर लाया गया था. भगवान विष्णु की मानस पुत्री सरयू नदी को धरती पर लाने का श्रेय ब्रह्मर्षि वशिष्ठ को जाता है.
कैसे हुई सरयू नदी की उत्पत्ति?
राम मंदिर के मुख्य पुजारी आचार्य सत्येंद्र दास ने बताया कि सरयू नदी की महिमा अपरंपार है पुराणों के अनुसार, सरयू नदी की उत्पत्ति भगवान विष्णु के नेत्रों से प्रकट हुई हैं. सरयू नदी को रामगंगा के नाम से भी जाना जाता है क्योंकि यह रामनगरी से बहती है सरयू की महिमा का बखान भगवान राम स्वयं करते हैं और कहते हैं “जन्मभूमि मम पुरी सुहावनि उत्तर दिसि बह सरजू पावनि। जा मज्जन ते बिनहिं प्रयासा। मम समीप नर पावहिं बासा।” इतना ही नहीं पुजारी ने बताया कि तीर्थ राज प्रयाग स्वयं अयोध्या में अपने पापों को धुलने सरयू नदी में आते हैं. मात्र सरयू में स्नान से ही जन्म-जन्मांतर के सभी पाप से मुक्त मिलती हैं.
तीर्थराज प्रयाग ने लगाई थी सरयू नदी में डुबकी
धार्मिक मान्यता के अनुसार शास्त्रों में उल्लिखित है कि जिस दिन चैत्र रामनवमी का पर्व था उस दिन तीर्थराज प्रयाग भी अपने पाप मिटाने अयोध्या आए थे. कहा जाता है कि जब तीर्थराज प्रयाग अयोध्या आए तब वह पूरी तरह से काले थे और उन्होंने अपने घोड़े समेत सीधे सरयू नदी में डुबकी लगा दी. जिसके बाद जब वह नदी से बाहर निकले तो वह स्वयं और उनका घोड़ा बिल्कुल सफेद रंग का हो गया.
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FIRST PUBLISHED : May 11, 2024, 20:04 IST
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