क्या होता है जय फिलस्तीन के नारे का मतलब, जो ओवैसी ने सांसद की शपथ लेते वक्त लगाया?
<p><a title="लोकसभा चुनाव" href="https://www.abplive.com/topic/lok-sabha-election-2024" data-type="interlinkingkeywords">लोकसभा चुनाव</a> 2024 में तेलंगाना की हैदराबाद सीट जीतने वाले असदुद्दीन ओवैसी ने संसद में शपथ लेते हुए नारा लगाया जय फिलिस्तीन. उनसे पहले कुछ सांसदों ने जय भीम, जय बांग्ला, जय ममता और जय अभिषेक जैसे नारे भी लगाए. चलिए आपको बताते हैं कि आखिर असदुद्दीन ओवैसी के नारे जय फिलिस्तीन का मतलब क्या है.</p>
<p><strong>पहले जानिए फिलिस्तीन का नारा क्या है</strong></p>
<p>फिलिस्तीन का असली नारा है फ्रॉम द रिवर टू द सी. यानी नदी से समुद्र तक फिलिस्तीन स्वतंत्र होगा. खासतौर से इस नारे का इस्तेमाल हमास करता है. उसका मानना है कि फिलिस्तीन एक दिन जॉर्डन नदी के किनारे से भूमध्य सागर तक रहेगा और यहूदी लोग इस भूमि से बाहर जाएंगे. वहीं इजरायल और उसके समर्थक इस नारे को इजरायल की संपूर्ण बर्बादी के नारे की तरह देखते हैं. इस नारे का ओरिजिन 1964 के आसपास का बताया जाता है.</p>
<p><strong>जय फिलिस्तीन का मतलब क्या हुआ फिर?</strong></p>
<p>अब सवाल उठता है कि अगर फिलिस्तीन का असली नारा फ्रॉम द रिवर टू द सी है तो फिर असदुद्दीन ओवैसी ने संसद में जो जय फिलिस्तीन कहा उसका मतलब क्या है. कुछ जानकारों का मानना है कि असदुद्दीन ओवैसी जय फिलिस्तीन के नारे के साथ संदेश देना चाहते हैं कि वह फिलिस्तीन के लोगों के साथ खड़े हैं. जबकि, कुछ जानकारों का मानना है कि जय फिलिस्तीन का मतलब है- फिलिस्तीन की विजय हो. वहीं कुछ जानकार मानते हैं कि असदुद्दीन ओवैसी ने जय फिलिस्तीन कह कर फिलिस्तीन के संघर्ष को सलाम किया है.</p>
<p><strong>भारत का फिलिस्तीन पर मत क्या है</strong></p>
<p>फिलिस्तीन और इजरायल के मामले में भारत का रुख साफ है. वो दोनों देशों के साथ संबंध बेहतर रखना चाहता है. फिलिस्तीन के साथ भारत के संबंध पुराने हैं. लेकिन साल 1950 में उसने इजरायल को मान्यता भी दी. हालांकि, इजरायल के साथ राजनीतिक और कूटनीतिक संबंध भारत ने 1992 में स्थापित किए. ये संबंध आज भी प्रगाढ़ हैं. वहीं भारत के राजनीतिक और कूटनीतिक संबंध फिलिस्तीन के साथ भी हैं.</p>
<p>आपको बता दें, साल 1947 में भारत ने संयुक्त राष्ट्र संघ में फिलिस्तीन के विभाजन के खिलाफ वोट किया था. यहां तक कि इंदिरा गांधी जब प्रधानमंत्री थीं, तब वे फिलिस्तीनी मुक्ति संगठन के नेता यासर अराफ़ात के स्वागत के लिए दिल्ली में एयरपोर्ट तक पहुंच गई थीं. आपको बता दें, 1988 में भारत ने देश के रूप में फिलिस्तीन को मान्यता दी थी.</p>
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