झीलें बुझाएंगी दिल्ली की प्यास! 600 वॉटर बॉडीज का होगा पुनर्विकास, बाढ़ के बाद प्रोजेक्ट पर खास फोकस
नई दिल्ली: दिल्ली पीने के पानी की समस्या से हमेशा जूझती रही है. दिल्ली के पास अपना कोई वॉटर रिसॉर्स नहीं है. पड़ोसी राज्यों पर राजधानी दिल्ली पूरी तरह से निर्भर है. ऐसे में उसको अपने हिस्से का पर्याप्त पानी भी उपलब्ध नहीं होता है जिसका असर इलाकों में दैनिक स्तर पर होने वाली पानी की सप्लाई पर पड़ता है. दिल्ली में प्रतिदिन 1135 मिलियन लीटर पानी की कमी हो गई है. जबकि प्रतिदिन करीब 1900 मिलियन लीटर पुनर्चक्रित पानी का उत्पादन होता है, बावजूद इसके अधिकांश बर्बाद हो जा रहा है. इस सबके मद्देनजर दिल्ली सरकार ‘झीलों का शहर’ (City of Lakes) परियोजना पर काम कर रही है. जिसके अंतर्गत 600 जल निकायो को विकसित करने की योजना है. इससे पानी की बर्बादी रुक सकेगी और यह सब प्राकृतिक जलाशयों के रूप में काम कर कर सकेंगे.
इस बार बाढ़ ने खूब तबाही मचाई
बताते चलें कि मॉनसून के दौरान इस साल दिल्ली के निचले इलाकों में बाढ़ ने खूब तबाही मचाई है. भारी मात्रा में नुकसान उठाना पड़ा है. बाढ़ के पानी के 3 वॉटर ट्रीटमेंट प्लांट में घुस जाने से राजधानी में 25 फीसदी पानी की भी बड़ी कटौती हुई थी जिससे राजधानी में पाने के पानी की सप्लाई भी बाधित हुई था. इस तरह की सभी समस्याओं से निजात पाने और पीने के पानी का पर्याप्त उत्पादन व भंडारण के लिए सरकार झीलों के शहर परियोजना पर तेजी से काम कर रही है. लेकिन इस परियोजना की गति पर कुछ ब्रेक भी लगा है. बजटीय बाधाओं, महामारी और सरकारी विभागों में नौकरशाही के हावी होने के चलते परियोजना को जमीन पर उतारने में ही 5 साल का वक्त लग गया.
कभी दिल्ली में थीं 1000 से ज्यादा वॉटर बॉडीज
एनडीटीवी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली सरकार की ओर से जिन 600 वॉटर बॉडीज को विकसित किया जा रहा है वो सभी बारिश के पानी को संग्रहित करने के लिए प्राकृतिक जलाशयों (natural reservoirs) में रूप में काम कर सकेंगे. बताया जाता है कि दिल्ली भर में करीब 1000 से ज्यादा वॉटर बॉडीज हुआ करती थीं, लेकिन अंधाधुंध होने वाले शहरीकरण में काफी संख्या में यह खत्म हो गईं. हालांकि उन झीलों को वापस लाने का काम आसान नहीं है. मौजूदा 600 झीलों के पुनर्विकास की परियोजना में से अब तक केवल 50 से भी कम झीलों का जीर्णोद्धार किया गया है.
तिमारपुर झील का पुनर्विकास
दिल्ली सरकार की ओर से उत्तरी दिल्ली की तिमारपुर झील का पुनर्विकास भी किया जा रहा है. दशकों से इस झील को छोटे-मोटे अपराधियों की पनाहगाह और सीवर की सड़ांध के रूप में ही जाना जाता रहा है. लेकिन अब यह एक नए एम्फीथिएटर, बच्चों के खेल क्षेत्र और फव्वारों के साथ विजिटर्स का स्वागत करने के लिए तैयार हो रही है. इसकी पुनर्स्थापना से दिल्ली अपनी जलापूर्ति को मजबूत कर सकेगी और पड़ोसी राज्यों पर भी कम निर्भर हो सकेगी.
निवेश करने की आवश्यकता
डब्ल्यूआरआई इंडिया के मुख्य अर्थशास्त्री मधु वर्मा ने कहा कि इनमें से कुछ जल निकायों की हालत काफी खराब है और उनमें निवेश की आवश्यकता होगी. डब्ल्यूआरआई सरकारों और व्यवसायों को आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टि से उपयुक्त समाधान खोजने में मदद करता है. उन्होंने कहा कि निवेशकों और योजनाकारों को अभी भी ऐसे बुनियादी ढांचे के लाभों और लागत प्रभावशीलता के बारे में शिक्षित होने की आवश्यकता है.
भूजल स्तर में छह मीटर तक की वृद्धि हुई
इस बीच देखा जाए तो हाल ही में दशकों में सबसे खराब बाढ़ के आने से शहर पूरी तरह से पंगु बन गया. वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में बाढ़ का पानी घुसने से करीब 25 फीसदी पानी के उत्पादन में कमी आ गई. ऐसे में झीलों को पुनर्जीवित करने और कुछ मामलों में कृत्रिम झीलें विकसित करने की दिशा में और तेजी से काम करने की जरूरत महसूस हुई है. लेकिन यह कार्य बेहद चुनौतीपूर्ण भी माना गया है. दिल्ली सरकार के अनुसार पूरी की गई परियोजनाओं के नतीजे कुछ हद तक अच्छे निकले हैं. भूजल स्तर में छह मीटर तक की वृद्धि दर्ज की गई है.
हर झील को एक जल स्रोत से जोड़ रहे
दिल्ली जल बोर्ड को सलाह देने वाले इंजीनियर अंकित श्रीवास्तव ने कहा कि शहर में मॉनसून के मौसम के दौरान साल में केवल 15 दिन बारिश होती है. लेकिन झीलों को पानी के बारहमासी स्रोत की आवश्यकता होती है. तिमारपुर झील कार्यालय के अधिकारी ने कहा कि हम हर झील को एक जल स्रोत से जोड़ रहे हैं ताकि यह सूखें नहीं. उनका अनुमान है कि झीलों के शहर परियोजना की कुल लागत लगभग 10 अरब रुपये होगी.
तिमारपुर झील में करीब 50 मजदूरों की एक टीम सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में काम खत्म करने की कोशिश कर रही है जो झील में पुनर्नवीनीकरण पानी की आपूर्ति करेगा. साइट पर बड़ा लोहे का गेट भी लगाया गया है जिस पर हिंदी में लिखा है “कार्य प्रगति पर है.” दुर्घटना संभावित क्षेत्र को इस साल जनता के लिए खोलने की प्रबल संभावना भी है.
योजना को लेकर कुछ एक्सपर्ट्स को संशय
जानकारी के मुताबिक दिल्ली में प्रतिदिन लगभग 1900 मिलियन लीटर पुनर्चक्रित पानी का उत्पादन होता है, जिसमें से अधिकांश बर्बाद हो रहा है. इस पानी को झीलों में डाला जाएगा और फिर घरों में आपूर्ति करने से पहले कुछ जगहों पर रिवर्स ऑस्मोसिस संयंत्रों में इसको ट्रीट किया जाएगा. इस तरह की परियोजना को बाढ़ से निपटने के लिए पुख्ता सुरक्षा कवच के रूप में भी देखा जा रहा है. हालांकि इस पर कुछ एक्सपर्ट्स को संशय भी है.
तेज शहरीकरण का परिणाम थी बाढ़
सरकारी संगठन इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज या INTACH में प्राकृतिक विरासत प्रभाग के प्रमुख मनु भटनागर का कहना है कि हाल ही में उफनती हुई यमुना नदी के कारण निचले इलाकों में बाढ़ आई. यह सब तेजी के साथ किए गए शहरीकरण और बिना कोई जलनिकासी प्रबंधन के विकास के कारण आई.
शहरी और पर्यावरण योजनाकार भटनागर ने कहा कि झीलों का पुनर्विकास करना वैचारिक रूप से एक अच्छा विचार है लेकिन इसकी सीमाएं हैं. दिल्ली की झीलें बाढ़ के लिए बफर के रूप में काम नहीं कर सकतीं क्योंकि अधिकांश छोटी हैं और ऐसे स्थानों पर हैं जहां वे बाढ़ के पानी को नहीं रोक पाती हैं.
कभी दिल्ली में थीं 1000 से ज्यादा वॉटर बॉडीज
एनडीटीवी में प्रकाशित रिपोर्ट के अनुसार दिल्ली सरकार की ओर से जिन 600 वॉटर बॉडीज को विकसित किया जा रहा है वो सभी बारिश के पानी को संग्रहित करने के लिए प्राकृतिक जलाशयों (natural reservoirs) में रूप में काम कर सकेंगे. बताया जाता है कि दिल्ली भर में करीब 1000 से ज्यादा वॉटर बॉडीज हुआ करती थीं, लेकिन अंधाधुंध होने वाले शहरीकरण में काफी संख्या में यह खत्म हो गईं. हालांकि उन झीलों को वापस लाने का काम आसान नहीं है. मौजूदा 600 झीलों के पुनर्विकास की परियोजना में से अब तक केवल 50 से भी कम झीलों का जीर्णोद्धार किया गया है.
तिमारपुर झील का पुनर्विकास
दिल्ली सरकार की ओर से उत्तरी दिल्ली की तिमारपुर झील</a> का पुनर्विकास भी किया जा रहा है. दशकों से इस झील को छोटे-मोटे अपराधियों की पनाहगाह और सीवर की सड़ांध के रूप में ही जाना जाता रहा है. लेकिन अब यह एक नए एम्फीथिएटर, बच्चों के खेल क्षेत्र और फव्वारों के साथ विजिटर्स का स्वागत करने के लिए तैयार हो रही है. इसकी पुनर्स्थापना से दिल्ली अपनी जलापूर्ति को मजबूत कर सकेगी और पड़ोसी राज्यों पर भी कम निर्भर हो सकेगी.
निवेश करने की आवश्यकता
डब्ल्यूआरआई इंडिया के मुख्य अर्थशास्त्री मधु वर्मा ने कहा कि इनमें से कुछ जल निकायों की हालत काफी खराब है और उनमें निवेश की आवश्यकता होगी. डब्ल्यूआरआई सरकारों और व्यवसायों को आर्थिक और पर्यावरणीय दृष्टि से उपयुक्त समाधान खोजने में मदद करता है. उन्होंने कहा कि निवेशकों और योजनाकारों को अभी भी ऐसे बुनियादी ढांचे के लाभों और लागत प्रभावशीलता के बारे में शिक्षित होने की आवश्यकता है.
भूजल स्तर में छह मीटर तक की वृद्धि हुई
इस बीच देखा जाए तो हाल ही में दशकों में सबसे खराब बाढ़ के आने से शहर पूरी तरह से पंगु बन गया. वाटर ट्रीटमेंट प्लांट में बाढ़ का पानी घुसने से करीब 25 फीसदी पानी के उत्पादन में कमी आ गई. ऐसे में झीलों को पुनर्जीवित करने और कुछ मामलों में कृत्रिम झीलें विकसित करने की दिशा में और तेजी से काम करने की जरूरत महसूस हुई है. लेकिन यह कार्य बेहद चुनौतीपूर्ण भी माना गया है. दिल्ली सरकार के अनुसार पूरी की गई परियोजनाओं के नतीजे कुछ हद तक अच्छे निकले हैं. भूजल स्तर में छह मीटर तक की वृद्धि दर्ज की गई है.
हर झील को एक जल स्रोत से जोड़ रहे
दिल्ली जल बोर्ड को सलाह देने वाले इंजीनियर अंकित श्रीवास्तव ने कहा कि शहर में मॉनसून के मौसम के दौरान साल में केवल 15 दिन बारिश होती है. लेकिन झीलों को पानी के बारहमासी स्रोत की आवश्यकता होती है. तिमारपुर झील कार्यालय के अधिकारी ने कहा कि हम हर झील को एक जल स्रोत से जोड़ रहे हैं ताकि यह सूखें नहीं. उनका अनुमान है कि झीलों के शहर परियोजना की कुल लागत लगभग 10 अरब रुपये होगी.
तिमारपुर झील में करीब 50 मजदूरों की एक टीम सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट में काम खत्म करने की कोशिश कर रही है जो झील में पुनर्नवीनीकरण पानी की आपूर्ति करेगा. साइट पर बड़ा लोहे का गेट भी लगाया गया है जिस पर हिंदी में लिखा है “कार्य प्रगति पर है.” दुर्घटना संभावित क्षेत्र को इस साल जनता के लिए खोलने की प्रबल संभावना भी है.
योजना को लेकर कुछ एक्सपर्ट्स को संशय
जानकारी के मुताबिक दिल्ली में प्रतिदिन लगभग 1900 मिलियन लीटर पुनर्चक्रित पानी का उत्पादन होता है, जिसमें से अधिकांश बर्बाद हो रहा है. इस पानी को झीलों में डाला जाएगा और फिर घरों में आपूर्ति करने से पहले कुछ जगहों पर रिवर्स ऑस्मोसिस संयंत्रों में इसको ट्रीट किया जाएगा. इस तरह की परियोजना को बाढ़ से निपटने के लिए पुख्ता सुरक्षा कवच के रूप में भी देखा जा रहा है. हालांकि इस पर कुछ एक्सपर्ट्स को संशय भी है.
तेज शहरीकरण का परिणाम थी बाढ़
सरकारी संगठन इंडियन नेशनल ट्रस्ट फॉर आर्ट एंड कल्चरल हेरिटेज या INTACH में प्राकृतिक विरासत प्रभाग के प्रमुख मनु भटनागर का कहना है कि हाल ही में उफनती हुई यमुना नदी के कारण निचले इलाकों में बाढ़ आई. यह सब तेजी के साथ किए गए शहरीकरण और बिना कोई जलनिकासी प्रबंधन के विकास के कारण आई.
शहरी और पर्यावरण योजनाकार भटनागर ने कहा कि झीलों का पुनर्विकास करना वैचारिक रूप से एक अच्छा विचार है लेकिन इसकी सीमाएं हैं. दिल्ली की झीलें बाढ़ के लिए बफर के रूप में काम नहीं कर सकतीं क्योंकि अधिकांश छोटी हैं और ऐसे स्थानों पर हैं जहां वे बाढ़ के पानी को नहीं रोक पाती हैं.