डोनाल्ड ट्रंप वो करने की सोच रहे, जो कोई US राष्ट्रपति नहीं कर सका, रूस और चीन में खिंच जाएंगी तलवारें
वॉशिंगटन. अमेरिकी चुनाव जीतकर दूसरी बार राष्ट्रपति बनने जा रहे डोनाल्ड ट्रंप ने एक बार फिर से अंतरराष्ट्रीय राजनीति में हलचल मचा दी है. इस बार उनका निशाना है रूस और चीन के बीच की बढ़ती नजदीकियां. ट्रंप का मानना है कि अगर अमेरिका रूस और चीन के बीच दरार डालने में कामयाब हो जाता है, तो इससे अमेरिका को वैश्विक राजनीति में फायदा होगा.
दरअसल, डोनाल्ड ट्रंप और रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन के बीच फोन कॉल की खबरें सामने आई हैं. हालांकि, क्रेमलिन ने इसे तुरंत खारिज कर दिया. इस बातचीत ने उनके बीच रिश्ते की दिशा और आवाज को लेकर एक नई झलक दी है. वॉशिंगटन पोस्ट के अनुसार, ट्रंप ने 7 नवंबर को पुतिन से बात की और उन्हें यूक्रेन में किसी भी तरह के हमले में इजाफा करने से बचने की चेतावनी दी. साथ ही, उन्होंने पुतिन को यह भी याद दिलाया कि “यूरोप में वॉशिंगटन की बड़ी सैन्य मौजूदगी” है.
चाहे यह घटना हुई हो या नहीं, अगर दोनों के बीच कोई भी – भले ही अप्रत्यक्ष – मेसेज का आना-जाना हुआ हो, तो इसे अमेरिका के पश्चिमी सहयोगियों और रूस के पूर्वी प्रमुख साझेदार चीन के शी जिनपिंग द्वारा गंभीरता से लिया जाना चाहिए. पिछले कुछ महीनों में ऐसे संदेशों का काफी आदान-प्रदान हुआ है.
पुतिन ने कथित फोन कॉल के दिन काला सागर के सोची रिसॉर्ट में वाल्दाई डिस्कशन क्लब थिंक टैंक की वार्षिक बैठक में एक लंबा भाषण दिया था. आश्चर्य की बात नहीं है कि उनका भाषण – और बाद में दर्शकों के सवालों के जवाब – पश्चिम विरोधी थे और उन्होंने आत्मविश्वास से कहा कि एक नई विश्व व्यवस्था अब “वास्तविक निर्माण के चरण” में है.
लेकिन साथ ही, पुतिन ने ट्रंप की तारीफ करते हुए उन्हें “साहसी व्यक्ति” बताया और कहा कि वह ट्रंप के किसी भी प्रस्ताव पर विचार करेंगे जो अमेरिका-रूस संबंधों को बहाल करने और यूक्रेनी संकट को समाप्त करने के लिए हो. इसके बाद उन्होंने रूस और चीन के बीच संबंधों पर काफी देर बात की. यहां उनका ध्यान नए अमेरिकी राष्ट्रपति से ज्यादा अपने पुराने दोस्त, चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग पर था.
इसका कारण ट्रंप के एक संदेश में छिपा है जो उन्होंने पुतिन और शी को दिया था. ट्रंप ने 31 अक्टूबर को एक कैम्पेन ईवेंट में टकर कार्लसन से कहा था कि वह रूस और चीन को “अलग” करने के लिए काम करेंगे. ट्रंप ने इशारा किया कि दोनों “स्वाभाविक दुश्मन” हैं क्योंकि रूस के पास विशाल क्षेत्र है जिसे चीन अपनी जनसंख्या के लिए चाहता है.
रूस और चीन के बीच साइबेरिया में लंबी भूमि सीमा पर क्षेत्रीय विवाद का इतिहास रहा है. यह 1960 के दशक में चीन-सोवियत विभाजन का हिस्सा था, जो 1970 के दशक में तत्कालीन राष्ट्रपति रिचर्ड निक्सन के तहत चीन के साथ अमेरिका के संबंधों की शुरुआत से पहले हुआ था. निक्सन के विपरीत, ट्रंप ने बीजिंग की बजाय मॉस्को के साथ अमेरिका के संबंधों को फिर से स्थापित करने की कोशिश की. आज रूस और चीन के बीच ऐसे विभाजन की कल्पना करना मुश्किल है, लेकिन ट्रंप की रूस और चीन के बीच असहमति का फायदा उठाने की इच्छा को पूरी तरह से अवास्तविक भी नहीं माना जा सकता.
सामने से देखने पर, पुतिन और शी जिनपिंग एक-दूसरे के काफी करीब नजर आते हैं. लेकिन रूस और चीन के संबंधों की गहराई में जाने पर पता चलता है कि यह मुख्य रूप से उनके वर्तमान नेताओं के बीच का संबंध है और इसमें अन्य गठबंधनों की तरह गहराई की कमी है. रूस में चीन के प्रति जनता और नीति निर्माताओं दोनों के बीच काफी नाराजगी है. रूसियों को मध्य एशिया में चीन की बढ़ती भूमिका को लेकर चिंता है और वे लंबे समय से विवादित सीमाओं पर संभावित झगड़ों को लेकर भी परेशान हैं. कई लोग इस बात से भी नाराज हैं कि अब मॉस्को बीजिंग का जूनियर पार्टनर बन गया है.
ये सभी मुद्दे ऐसे हो सकते हैं जिनका उपयोग ट्रंप रूस और चीन के बीच दरार डालने के लिए कर सकते हैं, लेकिन बहुत कुछ इस पर निर्भर करता है कि पुतिन को इसमें रूस के लिए क्या फायदा दिखता है. पश्चिमी देशों को इस पर ध्यान केंद्रित करना चाहिए कि ट्रंप की यूक्रेन नीति कैसी होगी और इसका यूक्रेन और पश्चिमी देशों पर क्या असर पड़ेगा.
ट्रंप के इस बयान पर विशेषज्ञों की राय बंटी हुई है. कुछ का मानना है कि ट्रंप की यह रणनीति सफल हो सकती है, जबकि अन्य का कहना है कि रूस और चीन के बीच संबंध इतने मजबूत हो चुके हैं कि उन्हें तोड़ना मुश्किल होगा. अंतरराष्ट्रीय राजनीति में ट्रंप की यह नई चाल कितनी कारगर साबित होगी, यह तो समय ही बताएगा, लेकिन एक बात तो तय है कि ट्रंप ने एक बार फिर से सभी का ध्यान अपनी ओर खींच लिया है.
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FIRST PUBLISHED : November 12, 2024, 23:42 IST