…तो इसलिए सुहागिन महिलाएं करती हैं वट सावित्री व्रत, पटना के आचार्य से जानें पर्व का महत्व-that’s why married women observe Vat Savitri fast, know the importance of the festival from Acharya of Patna


पटना. स्त्रियों के लिए उनके सुहाग का क्या अर्थ होता है ये सिर्फ एक विवाहित स्त्री ही समझ सकती है. पटना के पंडित डॉ. राजनाथ झा बताते हैं कि वट सावित्री पूजा का सनातन धर्म में एक विशेष महत्व होता है. वे बताते हैं कि ज्येष्ठ मास की अमावस्या तिथि को माताएं अपने सुहाग की लंबी उम्र के लिए विधि विधान से ये पूजा करतीं हैं. डॉ. राजनाथ कहते हैं कि वट सावित्री की पूजा की शुरुआत देवी सावित्री से ही हुई थी. जिन्होंने मृत्यु के देव यम से अपने पति के प्राणों की रक्षा की थी. राजनाथ झा कहते हैं कि सावित्री ने अपने तपोबल से अपने मृत सुहाग को यमराज से वरदान लेकर उन्हें पुनर्जीवन प्रदान किया था.

क्यों होती है वट वृक्ष की पूजा?
डॉ. राजनाथ बताते हैं कि चुकी बरगद का वृक्ष एक दीर्घजीवी विशाल वृक्ष है. इसलिए हिन्दू परंपरा में इसे पूज्य माना जाता है. प्राचीन काल में अलग अलग देवों से अलग अलग वृक्ष उत्पन्न हुए और उस समय यक्षों के राजा मणिभद्र से वटवृक्ष उत्पन्न हुआ. इसलिए वट वृक्ष त्रिमूर्ति का प्रतीक होता है. इसकी छाल में विष्णु,जड़ में ब्रह्मा और शाखाओं में शिवजी का वास माना जाता है. यह प्रकृति के सृजन का प्रतीक है. इसलिए वट सावित्री पूजा के दौरान माताएं इस वृक्ष की पूजा करतीं हैं. इस दौरान इसमें वे कच्चा मौली धागा भी बांधती हैं.

क्यों मनाते हैं वट सावित्री व्रत?
डॉ. राजनाथ की माने तो वटवृक्ष के नीचे ही सावित्री ने अपने पति को पुनर्जीवित किया था. तब से ये व्रत ‘वट सावित्री’ के नाम से भी जाना जाता है. वट सावित्री के व्रत पर सुहागिन महिलाएं भगवान शिव, माता पार्वती, भगवान यमराज, के साथ साथ सावित्री और सत्यवान की पूजा करती हैं. बरगद के वृक्ष पर सूत के धागा लपेटकर अंखड सौभाग्य की कामना करती हैं.

बता दें कि इस बार यह व्रत 6 जून को किया जाएगा. इसके साथ सत्यवान और सावित्री की कथा जुड़ी हुई है, जब सावित्री ने अपने संकल्प और श्रद्धा से, यमराज से अपने पति सत्यवान को जीवन दान दिलवाया था. इसलिए इस दिन महिलाएं भी संकल्प के साथ अपने पति की आयु और प्राण रक्षा के लिए इस दिन व्रत और संकल्प लेती हैं. इस व्रत को करने से सुखद और सम्पन्न दाम्पत्य का वरदान मिलता है. वटसावित्री का व्रत सम्पूर्ण परिवार को एक सूत्र में बांधे भी रखता है.

जान लीजिए व्रत का पूजा विधान.
डॉ. राजनाथ बताते हैं कि प्रातःकाल स्नान करके, निर्जल रहकर इस पूजा का संकल्प लें. वट वृक्ष के नीचे सावित्री-सत्यवान और यमराज की मूर्ति स्थापित करें या मानसिक रूप से इनकी पूजा करें. वट वृक्ष की जड़ में जल डालें, फूल-धूप और मिष्ठान्न से वट वृक्ष की पूजा करें. कच्चा सूत लेकर वट वृक्ष की परिक्रमा करते जाएं और सूत तने में लपेटते जाएं. कम से कम 7 बार परिक्रमा करें. हाथ में भीगा चना लेकर सावित्री-सत्यवान की कथा सुनें. वट वृक्ष की कोंपल खाकर उपवास समाप्त करें. इस दिन सावित्री और सत्यवान की कथा सुनने की परंपरा है. ऐसी मान्यता है कि इस कथा सुनने से मनचाहा फल मिलता है.

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