दीप्ति जोशी की पुस्तक ‘यात्रा अंतर्मन की’ संस्कारों की पाठशाला है- श्री श्री रविशंकर


डॉक्टर दीप्ति जोशी गुप्ता के उपन्यास ‘यात्रा अंतर्मन की’ का विमोचन श्री श्री रविशंकर द्वारा ऋषिकेश के आर्ट ऑफ़ लिविंग आश्रम में किया गया. इस अवसर पर श्री श्रीरविशंकर ने कहा कि उनके जीवन का उद्देश्य संपूर्ण विश्व में एक तनाव और हिंसा मुक्त समाज की स्थापना करना है, जहां लोगों में पारस्परिक वैमनस्यता ना हो, एक ऐसा समाज जो सद-चित्त और सुंदर हो, एक ऐसा समाज जो चिंता मुक्त हो, जो विजय के लिए नहीं जीने के लिए आतुर हो. उन्होंने कहा कि क्यों ना हम सब मिलकर अपने बच्चों को और आने वाली पीढियों को कुछ ऐसे संस्कार, कुछ ऐसी दिशा दें जिससे एक बार पुनः भारतवर्ष में एक नए स्वर्णिम युग का आरंभ हो जहाँ हर घर में मर्यादा पुरुषोत्तम राम बसते हों.

अध्यात्मिक गुरु श्री श्री रविशंकर ने कहा कि कलियुग में तो अब राम अवतार लेंगे नही हमें ख़ुद ही राम पैदा करने होंगे. एक ऐसे आदर्शवादी भारतीय समाज का पुनरनिर्माण हमें करना होगा जिससे भारत में ही नहीं संपूर्ण विश्व में शांति व अहिंसा की स्थापना हो जाए. उन्होंने कहा कि उन्हें ऐसा प्रतीत होता है कि इन सब बातों का निचोड़ दीप्ति ने अपनी इस पुस्तक में बड़ी ईमानदारी से किया है. उन्होंने कहा कि दीप्ति ने लेखिका बनकर नहीं एक आदर्श मां बनकर इस किताब की रचना की है. उन्होंने कहा कि बच्चों के लिए यह उपन्यास संस्कारों की पाठशाला साबित होगा.

पुस्तक पर विस्तार से चर्चा करते हुए लेखिका दीप्ति नें बताया कि  इस पुस्तक का आधार कोरोना कालीन स्थितियां और परिस्थितियां हैं, जिन्होंने उपन्यास का ताना-बाना बुना है. उन्होंने कहा इस डायरी को उन्होंने अपनी बेटी वैभवी के लिए लिखा है. एक आम ग्रहणी की, आम बोलचाल की भाषा में लिखी यह डायरी साधारण होते हुए भी असाधारण है, जिसे पढ़ते समय भारतवर्ष के प्रत्येक निम्न-मध्यम-वर्ग के परिवार की हर मां यह महसूस कर सकती है कि वह अपनी मामूली सी जिंदगी के पन्ने उलट-पलट कर खुद अपनी ही कहानी पढ़ रही है.

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दीप्ति ने बताया कि प्रस्तुत उपन्यास की ज्यादातर बातें उन्होंने अपने निजी जीवन के अनुभवों से गुजरने के बाद ही अपनी बिटिया को समझाने की कोशिश की हैं क्योंकि किसी को उदाहरण देना बहुत आसान काम होता है. बात तो तब है जब हम स्वयं उदाहरण बनकर अपने बच्चों के समक्ष प्रस्तुत हों. उन्होंने कहा, वर्तमान समय में नैतिकता का ह्रास हो गया है, संवेदनायें मर चुकीं हैं. हमारा दृष्टिकोण स्व-केंद्रित व व्यक्तिवादी हो गया है…. अतः बच्चों के भीतर बाल्यावस्था में ही नैतिक मूल्यों का बीज बोना नितांत आवश्यक है. दीप्ति ने बताया कि बच्चों को खेल खेल में ही अच्छी बातें सिखायी जानी चाहिए. भारतीय जीवन मूल्यों की परिभाषा, भारतीय दर्शन, श्रीमद् भागवत गीता का ज्ञान रामायण की महत्ता, उसकी उपयोगिता जैसे इस पुस्तक में छोटी-छोटी कहानियों के रूप में अपनी बेटी को समझाने की कोशिश की हैं वो भी छोटी-छोटी चिट्ठीयों के माध्यम से.

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