नीले या काले रंग की स्याही से ही क्यों लिखा जाता है, क्या है इसके पीछे की वजह



<p>स्कूल में जब पेंसिल की जगह पहली बार पेन से लिखने का मौका मिलता है तो बच्चों की खुशी का ठिकाना नहीं रहता. बच्चे, अपने लिए तरह-तरह के पेन खरीदते हैं. हालांकि, सभी पेन के अंदर की स्याही ज्यादातर दो ही रंग की होती है, नीली या फिर काली. अब सवाल उठता है कि जब दुनिया में इतने रंग मौजूद हैं तो लिखने के लिए नीले या काले रंग को ही क्यों चुना गया. चलिए जानते हैं इसके पीछे का विज्ञान.</p>
<p><strong>नीले और काले रंग की स्याही</strong></p>
<p>लेखन में नीले और काले रंग की स्याही का उपयोग लंबे समय से प्रचलित परंपरा है और इसके पीछे कई वैज्ञानिक, सांस्कृतिक और प्रायोगिक कारण हैं. आपको बता दें, प्राचीन मिस्र के समय से लेकर, चाइनीज शाही अदालतों तक, स्याही अलग-अलग प्रकार के रंगों में तैयार की जाती थी. हालांकि, उस वक्त भी काले और नीले रंग की स्याही का विशेष महत्व था. &nbsp;बात करें काली स्याही की तो सबसे पहले इसे गहरे रंग के कार्बन यौगिकों से बनाया गया था.</p>
<p><strong>इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण</strong></p>
<p>दरअसल, काले और नीले रंग की स्याही में हाई ड्यूरेबिलिटी होती है. आपको बता दें, काली स्याही, जो आमतौर पर कार्बन आधारित होती है, समय के साथ रंग नहीं बदलती और इससे लिखे गए शब्दों की पहचान लंबे समय तक स्पष्ट रहती है. इसके अलावा नीली स्याही में विशेष रंगद्रव्य होते हैं और ये रंग भी UV किरणों से प्रभावित नहीं होती और ना ही यह समय के साथ धुंधली होती है.</p>
<p><strong>पढ़ने में भी होती है आसानी</strong></p>
<p>काले और नीले रंग की स्याही स्पष्टता प्रदान करते हैं जिससे पढ़ने में आसानी होती है. दरअसल, काले रंग की स्याही हाई कंट्रास्ट की होती है, खासकर सफेद कागज पर. जबकि नीला रंग सफेद कागज पर एक सौम्य प्रभाव डालता है और लंबे समय तक पढ़ने में आरामदायक होता है. यही वजह है कि काले रंग से प्वॉइंटर्स या हेडिंग लिखी जाती है और जवाब नीले रंग से लिखा जाता है. क्योंकि जवाब लंबे होते हैं और उन्हें काफी देर तक पढ़ने की जरूरत होती है.</p>
<p><strong>किसने की स्याही की खोज</strong></p>
<p>अगर आपको लगता है कि स्याही की खोज का श्रेय किसी एक व्यक्ति या संस्कृति को दिया जा सकता है तो शायद आप गलत हैं. ऐसा इसलिए, क्योंकि इसका विकास समय के साथ अलग-अलग सभ्यताओं में हुआ. अगर बात करें सबसे प्राचीन स्याही के प्रमाण की तो ये लगभग 5,000 साल पहले के हैं, जब प्राचीन मिस्र, चीन और मेसोपोटामिया में इसे विकसित किया गया था. माना जाता है कि प्राचीन मिस्रवासी काले स्याही का उपयोग करते थे, जो चारकोल और पानी के मिश्रण से बनाई जाती थी. इसे लिखाई के लिए पपीरस पर इस्तेमाल किया जाता था. जबकि, चीन में लगभग 3,000 साल पहले, स्याही को तैयार करने के लिए प्राकृतिक रंगद्रव्यों और रेजिन का उपयोग किया जाता था.</p>
<p><strong>ये भी पढ़ें: <a href="https://www.abplive.com/gk/how-jews-were-tortured-in-hitler-camps-and-how-out-of-60-lakh-jews-15-lakh-children-were-also-killed-history-2803382">हिटलर के कैंपों में यहूदियों को ऐसे दी जाती थी प्रताड़ना, कैसे 60 लाख यहूदियों में से 15 लाख बच्चे भी मारे गए</a></strong></p>



Source link

x