पपीते की खेती में बोरॉन कमी से आते हैं यह लक्षण, जानें कैसे करें बचाव, कृषि वैज्ञानिक बता रहे हैं तरीका


समस्तीपुर: पपीता की खेती में बोरॉन एक महत्वपूर्ण सूक्ष्म पोषक तत्व है, जो कोशिका भित्ति निर्माण, झिल्ली की स्थिरता और प्रजनन कार्यों में अहम भूमिका निभाता है. बोरॉन की कमी के कारण पपीते के पौधे पर कई तरह के लक्षण दिखाई देते हैं, जो उसकी सेहत और फल की उपज को प्रभावित कर सकते हैं.

बोरॉन की कमी के शुरुआती लक्षणों में विकृत युवा पत्तियां होती हैं, जो भंगुर हो जाती हैं और उनकी नसें मोटी हो जाती हैं. इसके अलावा, पत्तियों के आकार में कमी आ जाती है और वे कठोर और विकृत हो सकती हैं. एक अन्य आम लक्षण है इंटरवेनियल क्लोरोसिस, जिसमें पत्तियों की नसों के बीच के हिस्से पीले हो जाते हैं. इससे पौधे का विकास बाधित होता है और फूल और फल बनने में रुकावट आती है, जिसके परिणामस्वरूप फल विकृत, फटे हुए या अंदर से कड़े हो सकते हैं.

वैज्ञानिक से जानें: बोरॉन की कमी का प्रबंधन कैसे करें?
डॉ. राजेंद्र प्रसाद केंद्रीय कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक डॉक्टर संजय कुमार सिंह का कहना है कि पपीते में बोरॉन की कमी के प्रबंधन के लिए संतुलित दृष्टिकोण अपनाना जरूरी है. इसके लिए मिट्टी और पत्तियों पर उर्वरक छिड़काव के साथ-साथ मिट्टी और पानी की गुणवत्ता की भी निगरानी करनी चाहिए.

उन्होंने बताया कि बोरॉन की कमी को दूर करने के लिए बोरेक्स (सोडियम बोरेट) या सोलुबोर (सोडियम पेंटाबोरेट) जैसे उर्वरकों का उपयोग किया जा सकता है. प्रति हेक्टेयर 1-2 किलोग्राम की खुराक का इस्तेमाल करना चाहिए, लेकिन इसकी मात्रा नियंत्रित होनी चाहिए ताकि बोरॉन विषाक्तता से बचा जा सके. इसके अलावा, जल्दी सुधार के लिए पत्तियों पर 0.2-0.3% बोरेक्स या 0.1-0.2% सोलुबोर का घोल छिड़कें.

मिट्टी की नियमित जांच का महत्व
डॉ. सिंह ने मिट्टी की नियमित जांच पर जोर दिया ताकि बोरॉन की उपलब्धता को समझा जा सके. अगर मिट्टी का पीएच 7.0 से अधिक हो, तो बोरॉन की उपलब्धता कम हो जाती है, ऐसे में कार्बनिक पदार्थ या सल्फर के माध्यम से मिट्टी के पीएच को नियंत्रित किया जा सकता है.

उन्होंने यह भी बताया कि खाद और अच्छी तरह से सड़ी हुई खाद मिट्टी में कार्बनिक पदार्थ को बढ़ाने में मदद करती है, जिससे बोरॉन की उपलब्धता बेहतर होती है. सिंचाई के लिए संतुलित खनिज सामग्री वाले पानी का उपयोग करना चाहिए और जलभराव या सूखे की स्थिति से बचना चाहिए. ड्रिप सिंचाई प्रणाली का उपयोग करने से मिट्टी में उचित नमी स्तर बनाए रखने में मदद मिलती है.

डॉ. सिंह ने कहा कि बोरॉन की कमी अक्सर अन्य पोषक तत्वों के असंतुलन के कारण होती है. इसलिए नाइट्रोजन, फास्फोरस और पोटेशियम के साथ सूक्ष्म पोषक तत्वों को शामिल करते हुए एक संतुलित उर्वरक कार्यक्रम बनाए रखना जरूरी है. इन उपायों को अपनाकर पपीता किसान बोरॉन की कमी के प्रभावों से बच सकते हैं और स्वस्थ पौधों की वृद्धि, फूल और फल विकास सुनिश्चित कर सकते हैं.

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