पिता बनाते पंचर, मां सड़क बेचती हैं चिप्स, तीनों बच्चों का हुआ हॉकी के लिए चयन



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अंजलि सिंह राजपूत. लखनऊ शहर में एक ही परिवार के तीन सदस्यों का चयन प्रदेश के बड़े स्पोर्ट्स कॉलेज में हुआ है. इन बच्चों का चयन हॉकी खेल के लिए हुआ है. इन बच्चों के पिता पंचर बनाते हैं, मां छोटी सी दुकान लगाकर लोगों को चिप्स और कोल्ड ड्रिंक बेचती हैं. एक ही कमरे का घर है. जिसमें रसोई भी है, टॉयलेट भी है और उसी में लटके हुए हैं इन बच्चों के अच्छे प्रदर्शन से हासिल हुए मेडल और ट्रॉफी.

चुने गए बच्चों का नाम सौमिका धानुका (13) ऋतिक धानुका (10) और करण धानुका (12) है. सौमिका धानुक ने बताया कि उनके माता-पिता को लोग कहते थे कि लड़की है, इसे हॉकी में मत भेजो, पढ़ाई भी मत करने दो, घर पर रखो और शादी कर दो. लेकिन माता-पिता ने उन्हें पढ़ाया. वह बालिका विद्यालय में आठवीं की छात्रा हैं. उनका चयन केडी सिंह बाबू स्टेडियम में ही हुआ है. यहां छात्रावास में वह 20 अगस्त से रहने लगेंगी.

सौमिका ने आगे बताया कि कभी भी आगे बढ़ने के लिए आर्थिक मजबूरियों को नहीं देखना चाहिए. हिम्मत नहीं हारनी चाहिए और पूरी मेहनत के साथ ही सफलता को हासिल करना चाहिए.

भारतीय टीम में शामिल होना है सपना
सौमिका के भाई ऋतिक धानुक ने बताया कि वह बचपन से इसकी प्रैक्टिस कर रहे थे. हॉकी खेलना उनको बहुत अच्छा लगता है. हॉकी में ही अपना भविष्य बनाने के लिए उन्होंने मेहनत की और आज उनका लखनऊ के कुर्सी रोड स्थित गुरु गोविंद सिंह स्पोर्ट्स कॉलेज में चयन हो गया है. ऋतिक ने बताया कि वह अपने माता-पिता को इस गरीबी से बाहर निकलना चाहते हैं, इसीलिए अब और मेहनत करेंगे. ऋतिक और सौमिका ने बताया कि उनका सपना भारतीय हॉकी टीम में शामिल होना है.

झांसी में है तीसरा बच्चा
पिता भोला कुमार ने बताया कि उनके तीसरे बेटे करण का झांसी के मेजर ध्यान चंद स्पोर्ट्स अकैडमी में चयन हुआ है. तीसरा बेटा वहां के छात्रावास जा चुका है. वह बताते हैं कि उन्होंने लोगों की गाड़ियों का पंचर बना कर बच्चों को पढ़ाया लिखाया और उन्हें हॉकी खेलने भेजा. वह कहते हैं कि हमने तो सड़क पर और गरीबी में जीवन बिता लिया, बच्चे अच्छा जीवन गुजार सकें इसीलिए लोगों की बातों पर ध्यान न देकर बच्चों की खुशियों पर ध्यान दिया.

एक कमरे में जीवन बिताना बेहद मुश्किल
मां सीमा ने बताया कि वह पान मसाला, चिप्स और कोल्ड ड्रिंक बेचकर जो भी पैसे मिलते थे उसे बच्चों की पढ़ाई और उन्हें हॉकी स्टिक दिलाने पर ही खर्च करती थीं. माता-पिता दोनों मिलकर अपनी जरूरत को कम और बच्चों की जरूरत पर ज्यादा ध्यान देते थे. वह आगे कहती हैं कि एक ही कमरे में जीवन बिताना बहुत मुश्किल होता है. अब उम्मीद है कि आगे इस गरीबी से छुटकारा मिलेगा.

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