प्रेमानंद महाराज का ऐसा रूप पहले नहीं देखा होगा… ‘गुस्से में कह डाली ये बड़ी बात’, कहा- तुम्हें शर्म नहीं आती?


Premanand Ji Maharaj Viral Video: प्रेमानंद महाराज हमेशा अपने भक्‍तों के सवालों का जवाब बड़ा मुस्‍कुरा कर और धैर्य के साथ देते हैं. कई बार तो अपने भक्‍तों के सवाल या ज‍िज्ञासा पर वह हंस भी पड़ते हैं. लेकिन वृंदावन में रहने वाले प्रेमानंद महाराज को गुस्‍सा कम ही आता है. लेकिन हाल ही में उनके दरबार में पहुंचे एक शख्‍स ने उनसे ऐसा सवाल पूछ ल‍िया कि इसे सुनते ही महाराज को गुस्‍सा आ गया. इतना ही नहीं, उन्‍होंने अपनी नाराजगी कुछ इस अंदाज में जताई क‍ि वहां बैठकर देखने वाले भी हैरान रह गए क्‍योंकि प्रेमानंद महाराज का ऐसा रूप पहले शायद क‍िसी ने नहीं देखा था. गुस्‍से में प्रेमानंद महाराज ने यहां तक कहा डाला कि ‘लोग अपने ही धर्म का अपमान करने में लगे हुए हैं, तुम्‍हें शर्म आनी चाहिए…’ आइए बताते हैं आपको पूरा वाकया.

क्‍या ग‍िफ्ट में भगवान की मूर्ती को लेना चाहिए?

हाल ही में प्रेमानंद महाराज के पास कुछ लोग पहुंच और एक भक्‍त ने उनसे सवाल पूछा, ‘क्‍या तौहफे में या ग‍िफ्ट में म‍िलने वाली भगवान की मूर्ती को लेना चाहिए?’ ये सुनते ही महाराज ने तुरंत जवाब द‍िया, ‘नहीं, ब‍िलकुल नहीं लेना चाहिए.’ इस पर जब भक्‍त ने पलट कर सवाल क‍िया कि ‘हमें पता नहीं चलता और कोई पैक कर के दे तो?’ ये सुनते ही प्रेमानंद महाराज बोले, ‘नहीं, हमें नहीं चाहिए. कोई हमें देता है तो हम पूछते हैं कि इसमें क्‍या है. हमारे द‍िव्‍य पहले से ही व‍िराजमान हैं, हम इसे (ग‍िफ्ट में म‍िली भगवान की प्रतिमा को) क‍िसको देंगे? और अगर दे भी द‍िया तो वो क्‍या व्‍यवहार करेगा, ये हमें क्‍या पता.‘ उन्‍होंने आगे कहा, ‘कोई दे तो आप हाथ जोड़े और वापस कर दें. ठाकुर जी कोई शो-पीस थोड़े ही हैं कि अलमारी में धूल खाएं. जब हम सेवा नहीं कर सकते तो हमें नहीं लेना चाहिए. ठाकुर आएं तो उनका आदर और सेवा हो.’

शादी के कार्ड पर भी बंद करों भगवान की मूर्ती छापना

महाराज आने आगे बताया, ‘वैसे अगर मानें तो हम तो इतना भी न‍िषेध करते हैं शादी के कार्ड में भगवान की जो छव‍ियां छपती हैं, नाम छपते हैं ये नहीं छपने चाहिए. आप ब्‍याह की समय सारणी दे दीज‍िए. ज्‍यादा लगे तो आप फूल बना दो, दूल्‍हा-दुल्‍हन बना लो पर आप राधा-कृष्‍ण, श‍िव-पार्वती लगा रहे हो. वो तो न‍िमंत्रण कार्ड है, उसके बाद ये फेंक द‍िया जाएगा. तो आप भगवान का भी न‍िरादर कर रहे हो. यही हमारी बुद्धि भ्रष्‍ट होने का कारण है. आप सोच‍िए कि साधारण का व्‍यापार चलाने के ल‍िए लोग थैलों में प्रभू की प्रत‍िमा बना देते हो, नाम छाप रहे हो. ज‍िस नाम की हम उपासना कर रहे हैं, उसी नाम को आप तंबाकू में छाप रहे हो. तंबाकू खाने के बाद उस पैकेट पर पैर पड़ेगा, तो जो कंपनी वाला है उसकी दुर्गति होगी ये तय है. आप चंद रुपए के ल‍िए उस नाम और रूप को अपमान‍ित कर रहे हो.’

प्रेमानंद महाराज नाराजगी जताते हुए कहते हैं, ‘पैसा कमाने के ल‍िए बहुत से तरीके हैं. भगवान के नाम का इस्‍तेमाल करते हुए पैसा मत कमाओ. थैलों पर भगवान का रूप छाप रहे हैं और उसी थैले को लोग पैरों में रखेंगे. अब थैला तो पैर में ही रखा जाएगा. इसल‍िए तो हम सब की बुद्ध‍ि भ्रष्‍ट हो रही है.’ वो आगे कहते हैं, ‘क्‍योंकि तुम लोग धर्म के सूक्ष्‍म भाव को नहीं समझ रहे हो. तुम भगवान का अपमान कर रहे हो. हमें लगता है कि न तो भगवान की प्रतिमा लेनी चाहिए और न देनी चाहिए.

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