बाजरा और मूंग सहित अनेक फसलों में बढ़ रहा रोग, इस तरह करें नियंत्रण, वर्मी कम्पोस्ट इकाई के लिए मिल रहा अनुदान-diseases-are-increasing-in-many-crops-including-millet-and-moong-control-them-in-this-way


नागौर. किसानों के खेतों में बाजरा और मोठ सहित अनेक फसलें लहरा रही है. अगेती फसलें तो अब पकने के करीब पहुंच गई हैं. लेकिन इस समय बाजरा, मोठ, मूंग आदि फसलों में विभिन्न रोगों का प्रकोप बढ़ गया हैं. भारी बारिश से खेतों में पानी भरना इसका मुख्य कारण है. फसलों को बीमारियों से बचाने के लिए किसानों को अभी से ही रोगों का नियंत्रण करना चाहिए.

इन कीटनाशक का करें छिड़काव
किसानों को बाजरा में ब्लास्ट रोग का प्रकोप दिखाई देने पर इसकी रोकथाम के लिए रोगनाशक प्रोपिकोनाजोल 1 मिली प्रति लीटर पानी की दर से छिड़काव करें. वहीं मोठ की फसल में पीला मोजेक वायरस के लक्षण दिखाई देने पर डायमेथोएट 30 ईसी का 1 लीटर प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

इसके अलावा मूंग की फसल में ब्लिस्टर बीटल के नियंत्रण के लिए प्रोफेनोफॉस 50 ईसी 1 मिली/लीटर पानी के हिसाब से छिड़काव करें. बाजरा में डाउनी मिल्ड्यू रोग के लक्षण दिखाई देने पर नियंत्रण के लिए जिनेब 2.5 किग्रा प्रति हेक्टेयर या मेनकोजेब 2 किग्रा प्रति हेक्टेयर की दर से छिड़काव करें.

वर्मी कम्पोस्ट इकाई पर अनुदान
रासायनिक उर्वरकों से खेती की बढ़ती हुई लागत को कम करने और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए पारंपरिक खेती की ओर किसानों का रुझान बढ़ाने के लिए राज्य सरकार जैविक खेती को प्रोत्साहन दे रही है. उर्वरकता को बढ़ाने के लिए राज्य सरकार ने वर्मी कंपोस्ट इकाई के निर्माण पर अनुदान देने की शुरुआत की है. वर्मी कंपोस्ट इकाई लगाने के लिए आपके पास एक स्थान पर न्यूनतम कृषि योग्य 0.4 हैक्टेयर भूमि होना आवश्यक है. कृषक राज किसान साथी पोर्टल या नजदीकी ई-मित्र केंद्र पर जाकर आप अपने जन आधार के माध्यम से ऑनलाइन आवेदन कर सकते हैं. इसके लिए आपके पास न्यूनतम 6 माह पुरानी जमाबंदी होना आवश्यक है.

जैविक खेती से चौतरफा लाभ
आज के दौर में खेती में रासायनिक खादों का अंधाधुंध प्रयोग हो रहा है. इससे मिट्टी की उर्वरकता में कमी आ रही है. ऑर्गेनिक फार्मिंग से मिट्टी की संरचना बेहतर रहती है, मिट्टी में जीवाणुओं की संख्या और भूजल स्तर कायम रहता है. यानी मिट्टी की जैविक व भौतिक स्थिति में सुधार लाया जा सकता है. मिट्टी की उर्वरकता के साथ पर्यावरण संतुलन बनाए रखने में भी मदद मिलती है. जैविक खेती कम खर्च में उत्पादन बढ़ाने का साधन है और यह मनुष्य की सेहत के लिए भी आवश्यक है.

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