ब्रेन ट्यूमर से लेकर कैंसर तक का कारण बन रहा है यह रंगीन जहर, खाने-पीने में हम सब कर रहे हैं यूज! सच्चाई जान हिल जाएगा दिमाग
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Toxic Color Cause cancer: हमारे लिए रंगीन जहर भारी मुसीबत का सबब बनने लगा है. हकीकत यह है कि हम सब किसी न किसी तरह इन चीजों का इस्तेमाल जरूरत करते हैं जिनमें ये रंगीन जहर न हो. डॉक्टरों का कहना है कि इस रंगीन ज…और पढ़ें
हाइलाइट्स
- सिंथेटिक रंगों से कैंसर का खतरा बढ़ता है.
- खाने-पीने की चीजों में रंगीन जहर का उपयोग होता है.
- बच्चों को इन रंगीन खाद्य पदार्थों से बचाएं.
Toxic Color Cause cancer: हर नई चीजों की कुछ न कुछ कीमत चुकानी पड़ती है. आधुनिकता की कीमत कुछ ज्यादा चुकानी पड़ रही है. आधुनिकता ने हमारे खान-पान और लाइफस्टाइल को पूरी तरह बदल दिया है. टेक्नोलॉजी के दम पर हम खाने-पीने की ऐसी-ऐसी चीजें बनाने लगे हैं जो स्वाद तो अच्छी देती है लेकिन हेल्थ को इसकी भारी खामियाजा चुकाना पड़ता है. पैकेटबंद आप जितनी भी चीजें खाते हैं चाहे वह चिप्स हो, सॉफ्ट ड्रिंक हो, जूस हो, चॉकलेट हो, कैंडी हो, भुजिया हो, बिस्कुट हो, कुछ भी जो कंपनियों में बनाई जाती है, उन सबका चटकदार रंग इसलिए होता है क्योंकि उन चीजों में एडेडिव कलर मिलाया जाता है. इसे सिंथेटिक कलर कहते हैं. ये पेट्रोलियम प्रोडक्ट से बनाए जाते हैं. लेकिन इनमें से अधिकांश कलर रंगीन जहर है. इनमें रेड डाई नंबर 3 (इरीथ्रोसाइन) से लेकर ब्लू डाई 2, साइट्रस रेड 2 तक के कलर का इस्तेमाल किया जाता है. सैकड़ों तरह के कलर होते हैं जिनका इस्तेमाल फूड प्रोडक्ट में धड़ल्ले से किया जाता है लेकिन आपको जानकर हैरानी होगी कि अगर ये कलर हमारे शरीर में ज्यादा चला जाए तो ये लिवर खराब करने के साथ-साथ कई तरह के कैंसर के जोखिम को बढ़ा देते हैं.
लिवर से शुरू होगी परेशानी
सर गंगाराम अस्पताल की पूर्व चीफ डाइटीशियन डॉ. मुक्ता वशिष्ट बताती हैं कि यह बात एकदम सच है कि हमारे पास फूड प्रोडक्ट में इस तरह के सिंथेटिक कलर का इस्तेमाल किया जाता है जिनके बारे में लोगों को पता भी नहीं होता. अगर एक सामान्य इंसान को आप बोल दें कि इस चीज में पेटेंट ब्लू वी कलर है तो वे कुछ नहीं समझेंगे लेकिन इसका जबर्दस्त हानिकारक असर है. इनमें से अधिकांश सिंथेटिक कलर अगर खाने के माध्यम से लगातार शरीर के अंदर जाते हैं तो इससे कैंसर तक की बीमारियां हो सकती है. इन सिंथेटिक कलर के ज्यादा सेवन से सबसे पहले लिवर को डैमेज होगा और लिवर से बनी चीजें शरीर के हर भाग में पहुंचती है इसलिए इसका असर पूरे शरीर पर पड़ेगा. अगर किसी के शरीर में यह कलर अधिक मात्रा में पहुंच गया है तो इससे कई तरह की बीमारियां लगेंगी. इससे दिमाग में ब्रेन ट्यूमर हो सकता है. पैंक्रियाज कैंसर से लेकर कई तरह के कैंसर इससे हो सकता है. वहीं पेट में कई तरह की परेशानियां हो सकती है. इन फूड का ज्यादा खाने से बच्चों में सबसे अधिक परेशानी हो सकती है.
किस कलर से कौन सी बीमारी
इसी तरह सनसेट यैलो कलर से गैस्ट्रो संबंधी बीमारिया हो सकती है. इससे पेट में दर्द, मतली और उल्टी भी होने लगती है. बच्चों में इस रंगीन जहर का सबसे बुरा प्रभाव पड़ता है. लंबे समय तक इन फूड आइटम का इस्तेमाल करने से सेल में ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस होता है जिसकी वजह से कैंसर का खतरा बढ़ जाता है. एक रिपोर्ट के मुताबिक फूड प्रोडक्ट में यैलो डाई 5 (टेट्राजाइन) केमिकल का इस्तेमाल रंग के लिए कया जाता है. इस रंग का ज्यादा एक्सपोजर होने से अस्थमा, एलर्जी और एडीएचडी का जोखिम बढ़ जाता है. बच्चों में इसस अटेंशन डेफिसीट हाइपरएक्टिविटी डिसॉर्डर (ADHD) होता है. इससे बच्चों का बौद्धिक विकास रूक सकता है. इसी तरह ब्लू डाई 2 से ब्रेन और पेट में ट्यूमर होता है. साइट्रस रेड 2 कलर का इस्तेमाल संतरे और चकोतरा में किया जाता है इससे ब्लैडर और और अन्य तरह के ट्यूमर का खतरा बढ़ जाता है. लंबे समय तक इन फूड आइटम का इस्तेमाल करने से कोशिकाओं के अंदर ऑक्सीडेटिव स्ट्रेस होगा जिसकी वजह से कैंसर का खतरा बढ़ जाएगा.
यूरोप-अमेरिका में बैन केमिकल का भारत में इस्तेमाल
टीओआई के मुताबिक कई रिपोर्ट में यह पाया गया है कि कई एडेटिव कलर जो यूरोप और अमेरिका में बैन है लेकिन भारत में इसका धड़ल्ले से इस्तेमाल किया जा रहा है. इनमें पेटेंट ब्लू वी, क्वीनोलाइन यैलो, पौंसियू 4 आर, अमरांथ, रोडामाइन बी और केरमोएजिन जैसे कलर शामिल हैं. समय-समय पर कुछ सरकारें इन प्रोडक्ट की छानबीन करती है लेकिन इसके बावजूद यह धड़ल्ले से मार्केट में है. मार्च 2014 में कर्नाटक सरकार ने जिन 196 सैंपल की जांच की थी उनमें से 122 में सिंथेटिक एडेटिव का इस्तेमाल किया गया था. राज्य सरकार ने आर्टिफिशियल कलर सनसेट यैलो और केरमॉयसाइन को भी बैन किया हुआ है. सच तो यह कि ज्यादातर रेस्टोरेंट और फूड प्रोडक्ट कंपनियों पर इसका कोई असर नहीं पड़ रहा है.
अमेरिका से सिंथेटिक कलर का प्रयोग
खाने-पीने की पैकेटबंद चीजों में आज धड़ल्ले से कलर का इस्तेमाल किया जाता है. इसी कलर की वजह से खाने-पीने की ये चीजें देखने में कलरफुल लगती है लेकिन इस कलरफुल चीजों के पीछे रंगीन जहर छुपा रहता है. 1969 में अमेरिका में खाने की चीजों में कलर के इस्तेमाल को मंजूरी मिली. कई रंगों का यह कलर वास्तव में एक केमिकल होता था जिसे इरीथ्रोसाइन (Erythrosine) कहा जाता है. सामान्य रूप से इसे रेड डाई 3 कहा जाता है. 1990 अचानक कुछ रिसर्च में यह बात सामने आई कि रेड डाई 3 से कैंसर होता है. इसके बाद रेड डाई 3 को कॉस्मेटिक प्रोडक्ट में इस्तेमाल पर बैन कर दिया गया लेकिन फूड आइटम में इसका प्रयोग होता रहा. तीन दशक बाद अब जाकर अमेरिका ने फूड आइटम से भी इसे बैन कर दिया है. रेड डाई 3 को बैन करने के बाद अलग-अलग नामों से अन्य कलर का इस्तेमाल फूड प्रोडक्ट और कॉस्मेटिक सामानों में होने लगा है. रेड डाई 40 आजकल धड़ल्ले से इन चीजों में इस्तेमाल होता है. लेकिन कई अध्ययनों में यह पाया गया कि यह कलर रंगीन जहर है. इससे पेट में बंबडर से लेकर कैंसर तक का खतरा बढ़ जाता है.
क्या है बचने का रास्त
डॉ. मुक्ता वशिष्ठ ने बताया कि खाने-पीने की चीजों में मौजूद सिंथेटिक कलर के दुष्प्रभाव से बचने का एकमात्र तरीका है कि इन चीजों का कम सेवन करें. आप जितना इन चीजों का सेवन करेंगे उतना ही अच्छी चीजें आप नहीं खा पाएंगे जिसके कारण आपमें पोषक तत्वों की कमी भी हो सकती है. लगातार इन चीजों को खाने से ये सारी परेशानियां होंगी. इसलिए जितना संभव हो इन चीजों का कम से कम सेवन करें. खासकर बच्चों को इन चीजों से जरूर बचाएं.
January 30, 2025, 16:58 IST