भगवान का दूसरा रूप डॉक्टर!युवक के हाथ से निकाली 5.5 किलो की गांठ, जान के साथ हाथ भी बचाया


देहरादून: ऋषिकेश एम्स के डॉक्टरों ने एक बड़ी सफलता हासिल की है. उन्होंने एक 24 वर्षीय युवक के हाथ में बनी साढ़े पांच किलो की गांठ को सर्जरी से निकालने में सफलता हासिल की है. मरीज के दाएं हाथ में बनी इस गांठ ने कैंसर का रूप ले लिया था, जिससे इसके फैलने की आशंका थी. इसका परिणाम यह होता कि मरीज का हाथ काटना पड़ता. लेकिन एम्स के विशेषज्ञ चिकित्सकों ने न केवल मरीज का हाथ कटने से बचा लिया. बल्कि इसके लिए अपनाई गई री-कंस्ट्रक्शन मेडिकल तकनीक से रोगी के हाथ में नई रक्त वाहिकाओं को प्रतिस्थापित भी किया है. ऑब्जरवेशन के बाद मरीज को स्वस्थ होने पर छुट्टी दी जा चुकी है.

संस्थान प्रशासन की ओर से मिली जानकारी के अनुसार, यूपी के रामपुर के रहने वाले एक 25 वर्षीय मरीज के हाथ की कोहनी के पास गांठ बन गई थी. इसे सॉफ्ट टिशू सार्कोमा कहा जाता है. इस गांठ में फैलाव होने लगा और गांठ का वजन बढ़ने की वजह से मरीज को हाथ हिलाने में परेशानी होने लगी. डॉक्टरों के अनुसार, इस गांठ ने ट्यूमर का रूप ले लिया था और इसका कैंसर में तब्दील होने का खतरा बना था. हालात गंभीर होते देख वहां के स्थानीय चिकित्सकों ने मरीज को बताया कि जीवन बचाने के लिए उसका हाथ काटना पड़ सकता है. ऐसे में मरीज एम्स ऋषिकेश पहुंचा. यहां संस्थान के आर्थोपेडिक और बर्न एंड प्लास्टिक सर्जरी विभाग के चिकित्सकों की टीम ने क़ई जांचों के बाद निर्णय लिया कि मरीज का हाथ और जीवन दोनों को बचाना जरूरी है. ऐसे में टीम ने री- कंस्ट्रक्शन सर्जरी करने का निर्णय लिया और 14 मार्च 2024 को इस रोगी की सर्जरी प्रक्रिया को बखूबी अंजाम दिया गया और मरीज की जिंदगी बिगड़ने से बच गई.

जान के साथ हाथ भी बचाया गया
संस्थान के ऑर्थो विभाग के हेड प्रोफेसर पंकज कंडवाल ने बताया कि रोगी के हाथ में बनी गांठ इतनी बड़ी थी कि सर्जरी करने में चिकित्सकीय टीम को 10 घंटे से ज्यादा का समय लगा. हालांकि यह सर्जरी पूरी सफल रही. लेकिन, मरीज का हाथ बचाने के लिए टीम को क़ई चुनौतियों से जूझना पड़ा. सर्जरी टीम के सदस्य आर्थो विभाग के सर्जन डॉ. मोहित धींगरा ने टीम के सभी मेंबर्स के लिए इसे बेहद चुनौतीपूर्ण काम बताया. उन्होंने बताया कि टीम के लिए यह जोखिम भरा काम था. डॉ. धींगरा के अनुसार एक महीने तक चिकित्सकीय निगरानी में रखने के बाद 3 दिन पहले रोगी को अस्पताल से छुट्टी दे दी गई है. मरीज अब पूरी तरह से ठीक है .

सर्जरी में शामिल टीम
इस जटिलतम सर्जरी को सफलतापूर्वक अंजाम देने वाली टीम में आर्थो विभाग के डॉ. मोहित धींगरा, डॉ. विकास माहेश्वरी, डॉ. विकास ओल्खा के अलावा बर्न एवं प्लास्टिक सर्जरी विभाग की सर्जन डॉ. मधुबरी वाथुल्या, डॉ. तरूणा सिंह और डॉ. भैरवी झा शामिल थे.

पैरों से हाथ में प्रतिस्थापित की गई नाड़ियां
सर्जरी की इस री-कंस्ट्रक्शन प्रक्रिया से मरीज के पैरों से नसों को निकालकर उसके हाथ में प्रतिस्थापित किया गया. इस प्रक्रिया को री-कंस्ट्रक्शन अर्थात पुनर्निमाण कहा जाता है. इस प्रक्रिया को पूर्ण कराने में बर्न एवं प्लास्टिक सर्जरी विभाग के डॉक्टरों की विशेष भूमिका रही. बर्न एवं प्लास्टिक शल्य चिकित्सा विभाग की सर्जन डॉ. मधुबरी वाथुल्या बताती हैं कि रोगी के हाथ से जिस जगह से ट्यूमर हटाया गया. वहां की नसें डैमेज हो चुकी थीं. इसलिए मरीज के पैरों से नसों को निकालकर करीब 32 सेमी. नई रक्त वाहिकाएं बनाई गईं. साथ ही उसकी छाती से मांसपेशियों और त्वचा के अंश लेकर हाथ में पुनर्स्थापित किया गया. संस्थान की कार्यकारी निदेशक प्रोफेसर मीनू सिंह और चिकित्सा अधीक्षक प्रो. संजीव कुमार मित्तल ने सर्जरी करने वाले चिकित्सकों के कामों की सराहना की है.

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