भागलपुर: मंजूषा कला से सजी दीपों की देशभर में बढ़ी मांग, बिहार की लोक कला ने पकड़ी रफ्तार


सत्यम कुमार/भागलपुर: भागलपुर अपनी समृद्ध ऐतिहासिक विरासत के लिए प्रसिद्ध है और यहां की लोक कला “मंजूषा” इस सांस्कृतिक धरोहर का एक महत्वपूर्ण हिस्सा है. तीन रंगों से सजने वाली मंजूषा कला अंग क्षेत्र के लिए खास पहचान रखती है. इस बार दीपावली के अवसर पर इस विशेष कला से सजे दीपक सिर्फ बिहार ही नहीं, बल्कि दिल्ली, बेंगलुरु, उत्तर प्रदेश समेत कई राज्यों में जलाए जाएंगे. मंजूषा दीप की बिहार के विभिन्न जिलों में भी जबरदस्त मांग है. यहां के कलाकार मंजूषा कला से सजी मोमबत्तियां और दीपक तैयार करने में जुटे हुए हैं.

कलाकारों की मेहनत और कला की बारीकियां
इस विषय में मंजूषा कला के कलाकार अमन सागर ने बताया कि वह मंजूषा कला के गुरु मनोज पंडित के मार्गदर्शन में दीपक तैयार कर रहे हैं. सबसे पहले वे मिट्टी से बने दीपक लाते हैं और फिर उन पर मंजूषा की खूबसूरत कलाकृतियां उकेरी जाती हैं. मंजूषा प्रशिक्षण केंद्र में छोटे-छोटे बच्चों को भी इस कला को सीखने और दीपक बनाने का काम सिखाया जा रहा है. इस प्रक्रिया में हरे, पीले और गुलाबी रंग का उपयोग करके विभिन्न डिजाइनों और बेलपत्र जैसी कलाकृतियों को दीपक पर सजाया जाता है. इस साल विशेष रूप से कुल्हड़ में मोमबत्तियां भी तैयार की जा रही हैं, जिनमें मंजूषा कला की अद्वितीय कलाकारी की गई है.

तीन रंगों का महत्व और अंग क्षेत्र से जुड़ी कहानी
मंजूषा कला में मुख्यतः तीन रंगों—हरा, पीला और गुलाबी—का उपयोग होता है, जो क्रमशः सुख, समृद्धि और शांति के प्रतीक माने जाते हैं. यह कला अंग क्षेत्र की प्रमुख पौराणिक कथा, माता बिहुला की कहानी से जुड़ी है. कहा जाता है कि माता बिहुला अपने पति के प्राणों की रक्षा के लिए मंजूषा नाव पर सवार होकर स्वर्ग लोक गई थीं और इसी कारण इस कला को शुद्ध और पवित्र माना जाता है.

लोक कला को बढ़ावा देने का प्रयास
मंजूषा कला को व्यापक रूप से फैलाने और हर घर तक पहुंचाने के उद्देश्य से छोटे-छोटे वस्त्रों और वस्तुओं पर भी इस कला की कलाकृतियां उकेरी जा रही हैं. इससे लोगों में इस अद्वितीय लोक कला के प्रति जागरूकता बढ़ेगी और इसे एक नया जीवन मिलेगा.

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