महाभारत काल में पांडव कैसे धोते थे अपने कपड़े, चमकते रहते थे हमेशा, ये भी जानें कि क्या पहनते थे
महाभारत काल में कपड़ों को धोने के लिए राख का इस्तेमाल होता थाखेतों में मिलने वाली रेह का चलन भी हजारों साल पहले ही सफाई के लिए होता थाकपड़े को साफ करने का काम अक्सर नदियों के किनारे ही हुआ करता था
राणों के अनुसार महाभारत का युद्ध 2000 ईसापूर्व हुआ था, तब पांडव आखिर कपड़े कैसे धोते थे. तब उनके कपड़े हमेशा चमचमाते ही नहीं थे बल्कि एकदम साफ रहते थे. उस जमाने में डिटर्जेंट बिल्कुल नहीं होते थे. डिटर्जेंट तो मुश्किल से 100-125 साल पहले ही ईजाद किए गए और उनका इस्तेमाल शुरू हुआ. तो कौतुहल का विषय यही है कि उस जमाने में पांडव कैसे कपड़े धोते थे. खासकर तब पांचों भाई अज्ञातवास के दौरान ज्यादातर जंगलों और छोटी जगहों में रहते थे.
सबसे पहले ये जानते हैं कि पांडव उस समय पहना क्या करते थे. फिर हम ये बताएंगे कि अज्ञातवास के दौरान जब उन्हें खुद अपने कपड़े धोने पड़े तो उन्होंने किन तरीकों का इस्तेमाल किया.
ये सवाल अक्सर पूछा जाता है कि महाभारत काल में कैसे वस्त्र पहने जाते थे. पांडव क्या पहनते थे. उस समय कपड़े कैसे बनाए जाते थे. महिलाएं क्या पहनती थीं. महाभारत काल में पांडवों के कपड़ों के बारे में जानकारी सीमित ऐतिहासिक स्रोतों से मिलती है. उस समय के कपड़े मुख्य तौर पर प्राकृतिक फाइबर जैसे कपास और ऊन से बनाए जाते थे.
वनवास के दौरान नदी किनारे कपड़े धोते हुए पांडव (Image Generated by Leonardo AI)
पांडव ये कपड़े पहनते थे
धोती – पांडव आमतौर पर धोती पहनते थे, जो पारंपरिक भारतीय वस्त्र है. इससे शरीर के निचले हिस्से को चारों ओर से लपेटा जाता है. पुरुषों में धोती पहनने का रिवाज अब बेशक कम हो गया लेकिन भारत में ये 04 दशक पहले तक भी खूब पहनी जाती थी.
उपर्णा- उपर्णा एक प्रकार का शॉल या दुपट्टा होता है, पांडव इसे पहनते थे. इसे आमतौर पर कंधे पर लपेटा जाता था. ये सम्मान का प्रतीक माना जाता था.
कुर्ता- पांडव अक्सर कुर्ता पहनते थे, जो लंबा और ढीला वस्त्र होता है. ये लोगों की सामाजिक स्थिति और रुतबे को भी दिखाता था.
साड़ी – द्रौपदी साड़ी पहनती थीं. कौरव दरबार में जब दुशासन ने उनकी साड़ी खींची तो वो लंबी होती चली.
महाभारत काल में कपड़े कैसे धोए जाते थे
जब पांडव महाभारत काल में 13 साल के वनवास और एक साल के अज्ञातवास में भेजे गए, तब उन्हें अपने कपड़े खुद साफ करने होते थे. तब कपड़े धोना मुश्किल काम था. लोग हाथों से ही कपड़े धोते थे. कपड़े आमतौर पर बहती नदी के पानी में धोए जाते थे. क्योंकि नदी का बहता पानी अशुद्धियों और कपड़े से निकली मलिनता को अवशोषित कर लेता था. पापों के कपड़े साफ कर देता था.
महाभारत काल में कपड़ों का साफ करने का काम पारंपरिक तरीके से होता था. पांडव भी खुद ही अपने वस्त्र वनवास के दौरान साफ करते थे. इसके लिए वो रोज नदी जाते थे. वही स्नान और कपड़े की सफाई का काम होता था. (Image Generated by Leonardo AI)
कैसे मिटाए जाते थे कपड़ों के दाग
दाग और भूरेपन को मिटाने के लिए कपड़ों को राख या रीठा या खेतों में सुबह के समय बिछे मिलने वाले सफेद रंग के अमोनिया जैसे पाउडर में घंटों भिगोया जाता था. इसके बाद हाथ से उस कपड़े मीजते थे. फिर पत्थरों पर पटकते थे. ये वैज्ञानिक दृष्टिकोण तब भी ज्ञात था कि कपड़ों की मैल साबुन जैसे इस घोल से मेल करके कपड़ों से तब हट जाता था, जब इन्हें रगड़ा जाता था. रही सही कसर कपड़ों को कड़ी सतह पर प्रहार करने से पूरी हो जाती थी.
धोने के बाद, कपड़ों को धूप में सूखने के लिए खेतों में फैला दिया जाता था, जिससे ब्लीचिंग और स्वच्छता के साथ कपड़े सूख जाते थे. यानि महाभारत काल में कपड़े धोने के लिए प्राकृतिक साधनों का इस्तेमाल किया जाता था.
क्या होता था ये सफेद पाउडर
आज भी ग्रामीण क्षेत्रों में खाली पड़ी भूमि पर, नदी-तालाब के किनारे अथवा खेतों में किनारे पर सफेद रंग का पाउडर दिखाई देता है जिसे ‘रेह’ कहा जाता है. भारत की जमीन पर यह प्रचुर मात्रा में पाया जाता है. इसका कोई मूल्य नहीं होता. इस पाउडर को पानी में मिलाकर कपड़ों को भिगो दिया जाता है. इसके बाद कपड़ों लकड़ी की थापी या पेड़ों की जड़ों से बनाए गए जड़ों से रगड़कर साफ कर दिया जाता था.
प्राचीन भारत में रीठे का इस्तेमाल सुपर सोप की तरह होता था. इसके छिलकों से झाग पैदा होता था, जिससे कपड़ों की सफाई होती थी, वो साफ भी हो जाते थे और उन पर चमक भी आ जाती थी. रीठा कीटाणुनाशक का भी काम करता था. (news18)
महाभारत काल में भी ये तरीका प्रचलित था. ये हमारे देश में कपड़े धोने का सबसे पुराना तरीका है.
रेह एक बहुमूल्य खनिज है. इसमें सोडियम सल्फेट, मैग्नीशियम सल्फेट और कैल्शियम सल्फेट होता है, इसमें सोडियम हाइपोक्लोराइट भी पाया जाता है, जो कपड़ों को कीटाणुमुक्त कर देता है
नदियों और समुद्र के सोडा से भी साफ होते थे कपड़े
जब नदियों और समुद्र के पानी में सोड़े का पता लगा तो कपड़े धोने में इसका भरपूर इस्तेमाल होने लगा.
लकड़ी के बड़े टबों का इस्तेमाल
धोने की प्रक्रिया के दौरान लकड़ी के बड़े वॉशटब में कपड़े पीटने और हिलाने के लिए लकड़ी के चप्पुओं का उपयोग किया जाता था. इससे कपड़ों को हिलाने और अधिक गंदगी हटाने में मदद मिलती थी.
महाभारत काल में रीठा का डिटर्जेंट के तौर पर इस्तेमाल
भारत वनस्पति और खनिज से हमेशा संपन्न रहा है. यहां एक पेड़ होता है जिसे रीठा कहा जाता है. तब कपड़ों को साफ करने के लिए रीठा का खूब इस्तेमाल होता था. राजाओं के महलों में रीठा के पेड़ अथवा रीठा के उद्यान लगाए जाते थे. महंगे रेशमी वस्त्रों को कीटाणु मुक्त और साफ करने के लिए रीठा आज भी सबसे बेहतरीन ऑर्गेनिक प्रोडक्ट है.
पांडव भी मिट्टी और राख से रगड़कर नहाते थे
प्राचीन भारत ही नहीं बल्कि कुछ दशक पहले तक भी मिट्टी और राख सो बदन पर रगड़कर भी भारतीय नहाया करते थे या फिर अपने हाथ साफ करते थे. राख और मिट्टी का इस्तेमाल बर्तनों को साफ करने में भी होता था. पुराने समय में लोग सफाई के लिए मिट्टी का प्रयोग करते थे.
भारत में कब आया साबुन और डिटर्जेंट
भारत में आधुनिक साबुन की शुरुआत 130 साल से पहले पहले ब्रिटिश शासन में हुई थी. लीबर ब्रदर्स इंग्लैंड ने भारत में पहली बार आधुनिक साबुन बाजार में उतारने का काम किया. पहले तो ये ब्रिटेन से साबुन को भारत में आयात करती थी और उनकी मार्केटिंग करती थी. जब भारत में लोग साबुन का इस्तेमाल करने लगे तो फिर यहां पहली बार उसकी फैक्ट्री लगाई गई.
ये फैक्ट्री नहाने और कपड़े साफ करने दोनों तरह के साबुन बनाती थी. नॉर्थ वेस्ट सोप कंपनी पहली ऐसी कंपनी थी जिसने 1897 में मेरठ में देश का पहला साबुन का कारखाना लगाया. ये कारोबार खूब फला फूला. उसके बाद जमशेदजी टाटा इस कारोबार में पहली भारतीय कंपनी के तौर पर कूदे.
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FIRST PUBLISHED : September 6, 2024, 15:49 IST