महाराष्‍ट्र चुनाव 2024: राज ठाकरे के राजनीतिक वजूद पर खतरा बढ़ा रहीं ये चुनौतियां, लड़ रहे दोहरी लड़ाई


इस चुनाव में राज ठाकरे महाराष्‍ट्र की राजनीति में परिवारवाद को बढ़ावा देने वाले उन करीब चार दर्जन नेताओं में भी शामिल हैं जो अपने किसी करीबी रिश्‍तेदार को इस बार विधायक बनवाकर उनका चुनावी सफर शुरू करवाना चाह रहे हैं. महाराष्‍ट्र की राजनीतिक लड़ाई दो गुटों में बंटे छह राजनीतिक दलों के बीच है. इनमें से सभी ने किसी न किसी नेता के करीबी रिश्‍तेदार को पहली बार चुनाव लड़ने के लिए टिकट दिया है. भाजपा, कांग्रेस और एनसीपी (शरद पवार) के कम से कम नौ-नौ ऐसे उम्‍मीदवार हैं. शिंदे सेना ने आठ, उद्धव सेना ने पांच और एनसीपी (अजीत पवार) ने कम से कम एक ऐसा उम्‍मीदवार उतारा है.

राज का राजनीतिक सफर
शिवसेना से जुदा होकर राज ठाकरे ने 2006 में महाराष्‍ट्र नवनिर्माण सेना (एमएनएस) बनाई और अपनी अलग राजनीतिक राह पकड़ी. लेकिन, वह बहुत आगे चल नहीं सके. उन्‍होंने 2009 में जरूर विधानसभा में 13 सीटें जीतकर अपनी उपस्थिति दर्ज कराई, लेकिन उनकी पार्टी का वह पहला और आखिरी उल्‍लेखनीय प्रदर्शन रहा. 2009 में एमएनएस का वोट प्रतिशत 5.75 था, जो 2019 में 2.25 रह गया.

महाराष्‍ट्र चुनाव MNS का वोट शेयर MNS के विधायक MNS का स्‍ट्राइक रेट
2009 5.71 प्र‍तिशत 13 9.04 प्र‍तिशत
2014 3.15 प्र‍तिशत 01 0.45 प्र‍तिशत
2019 2.25 प्र‍तिशत 01 0.99 प्र‍तिशत

2019 के विधानसभा चुनाव में राज ठाकरे का केवल एक विधायक ही चुनाव जीत सका था. इसके बावजूद 2024 में उन्‍होंने सौ से ज्‍यादा उम्‍मीदवार उतारे हैं. इनमें से एक उनका बेटा अमित ठाकरे भी है.

राज ठाकरे का यू-टर्न
इस बीच, राज ठाकरे ने अपना चरित्र भी पूरी तरह बदल लिया. प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के कटु आलोचक से उनके प्रशंसक और भाजपा समर्थक बन गए. 2019 के लोकसभा चुनाव में उन्‍होंने अपना उम्‍मीदवार नहीं उतारा था. वह कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन के समर्थन में थे. इस गठबंधन के लिए की जाने वाली रैलियों में वह जम कर नरेंद्र मोदी और भाजपा की आलोचना करते थे. यह बात अलग है कि जिन दस लोकसभा क्षेत्रों में उन्‍होंने रैलियां कीं, उनमें से नौ में कांग्रेस-एनसीपी गठबंधन की हार हुई.

2024 आने से पहले ही राज ठाकरे ने अपना स्‍टैंड बदल लिया. इस चुनाव में वह भाजपा के लिए बैटिंग कर रहे हैं और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के साथ मंच भी साझा कर चुके हैं. अब वह यह तक कह रहे हैं कि शिवसेना को छोड़ कर बीजेपी ही एक मात्र पार्टी है, जिसके साथ मेरे संबंध हैं. भाजपा के देवेंद्र फडणवीस भी उन्‍हें दोस्‍त बता रहे हैं.

विधानसभा चुनाव में करीब 70 सीटों पर बीजेपी के साथ उनका दोस्‍ताना मुकाबला है. माहिम से राज ठाकरे ने अपने बेटे के लिए भी बीजेपी और एनडीए का समर्थन हासिल कर लिया है.

जिन वजहों से जाने जाते थे राज, वे हुए अप्रासंगिक
महाराष्‍ट्र की राजनीति में अलग राह पकड़ने के बाद राज ठाकरे दो प्रमुख वजहों से पहचाने गए. एक तो ‘मराठी अस्मिता’ और ‘उत्‍तर भारतीयों का विरोध’ के नाम राजनीति करने की वजह से. दूसरा, उद्धव ठाकरे से राजनीतिक अदावत के चलते. हालांकि, अब राजनीतिक परिस्‍थ‍ितियों के चलते ये दोनों ही वजह अप्रासंगिक हो गए हैं. अब राज ठाकरे खुद अपनी प्रासंगिकता बनाए रखने की लड़ाई लड़ रहे हैं.

कोई नया वोट बैंक नहीं
इस चुनाव में अगर वह अपनी पार्टी का प्रदर्शन सुधार नहीं सके और अपने बेटे को विधायक नहीं बनवा सके तो एक नेता के रूप में वह पूरी तरह नाकाम माने जाएंगे. उनके लिए चुनौती है कि उनका कोई नया वोट बैंक नहीं बना है. उनका और शिवसेना के दोनों गुटों के मराठी वोटर्स एक ही हैं. ऐसे में उन्‍हें पूरी तरह एनडीए के साथ का ही सहारा है.

बीजेपी को उम्‍मीद है कि राज को अपने पाले में करके उद्धव के वोट बैंक को नुकसान पहुंचाया जा सकता है. लेकिन, राज से मतदाताओं की बेरुखी देख कर कहा जा सकता है कि यह मकसद सधने वाला नहीं है. शिवसेना में टूट के बाद उद्धव के वोट बैंक को सबसे ज्‍यादा खतरा शिंदे सेना से है और शिंदे सेना पहले से भाजपा खेमे में है.

कोई नया मुद्दा भी नहीं
राज ठाकरे कोई नया चुनावी मुद्दा भी खड़ा नहीं कर पाए हैं. वह मस्जिदों में लाउड स्‍पीकर का पुराना मुद्दा उठा रहे हैं. एक मुद्दा वह मुंबई में एंट्री पर टोल नहीं वसूले जाने का उठाते रहे थे. कुछ दिन पहले सत्‍ताधारी महायु‍ती ने मुंबई के एंट्री प्‍वाइंट पर कई तरह के वाहनों से टोल नहीं वसूलने का आदेश जारी कर यह मुद्दा भी छीन लिया. इस मुद्दे का फायदा उन्‍हें मिलने के आसार कम ही हैं.

नेताओं की बगावत
राज की एक और चुनौती उनके अपने नेताओं की बगावत है. टिकट की उम्‍मीद पाले नेताओं को टिकट नहीं मिल रहा है तो वह पाला बदल रहे हैं. जैसे, बांद्रा ईस्‍ट में उन्‍होंने भाजपा से पाला बदल कर हाल ही में आए नेता को टिकट दे दिया तो एनएनएस छात्र ईकाई के संस्‍थापक नेता शिवसेना (उद्धव) में चले गए. ऐसे और भी उदाहरण हैं.

माहिम में भी महा चुनौती
राज ठाकरे ने अपने बेटे अमित ठाकरे को माहिम से उतारा है. लेकिन, यहां भी चुनौती बड़ी है. 2014 की तुलना में 2019 में यहां एमएनएस और विजेता शिवसेना को मिले वोटों का अंतर काफी बढ़ गया था.

पिछली बार माहिम में एमएनएस दूसरे नंबर पर रही थी. हालांकि, जीतने वाले शिवसेना उम्‍मीदवार सदा सर्वनकर की तुलना में एमएनएस के संदीप सुधाकर देशपांडे को करीब 19000 कम वोट मिले थे. सदा 2014 में भी शिवसेना उम्‍मीदवार के तौर पर माहिम से जीते थे. हालांकि, तब एमएनएस उम्‍मीदवार से उनकी जीत का अंतर करीब 6000 वोट का ही था.

राहत की एक बात
इस बार ठाकरे ने बीजेपी, शिवसेना से अपने बेटे के लिए समर्थन पाने की कोशिश की है, जिसमें उन्‍हें कुछ हद तक कामयाबी भी मिल गई है. शिवसेना के सदा मैदान में तो हैं, पर वह निर्दलीय की तरह चुनाव लड़ेंगे. मतलब अपने दम पर लड़ेंगे. वह मंझे हुए नेता हैं और लगातार विधायक रहे हैं. ऐसे में ‘निर्दलीय’ के तौर पर भी उनका लड़ना एमएनएस पर भारी पड़ सकता है, इस आशंका से इनकार नहीं किया जा सकता.

कुल मिला कर राज ठाकरे के लिए हर ओर से मुश्किल है, जो उनके लिए अस्तित्‍व की लड़ाई को और संघर्षपूर्ण बना रहा है.

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