मुंबई: 10 सीटों पर मुसलमानों का दबदबा, फिर भी बड़ी पार्टियों ने टिकट देने में क्यों की कंजूसी? किसे होगा फायदा
महाराष्ट्र में 20 नवंबर को चुनाव होने हैं.इसके बाद 23 नवंबर को नतीजे आएंगे.मुंबई में करीब 20 प्रतिशत मुसलमान हैं.
मुंबई. महाराष्ट्र की राजधानी मुंबई में मुस्लिम आबादी लगभग 20 प्रतिशत है और शहर में लगभग 10 सीटें हैं जहां समुदाय की आबादी 25 प्रतिशत या उससे अधिक है. फिर भी, प्रमुख पार्टियों की उम्मीदवार सूची में मुसलमानों की संख्या एक से चार तक ही सीमित है. वास्तव में, पिछले दो दशकों में चुने गए मुस्लिम विधायकों की संख्या एक अंक में ही रही है. प्रमुख पार्टियों में, कांग्रेस और उसके बाद एनसीपी अजित गुट ने इस बार मुस्लिम प्रतिनिधियों को अधिक सीटें आवंटित की हैं. हालांकि उनकी संख्या भी कम है. कांग्रेस ने चार उम्मीदवारों को टिकट दी है, जिसमें अमीन पटेल को मुम्बादेवी, असलम शेख को मालाड पश्चिम, आसिफ जकारिया को बांद्रा पश्चिम और नसीम खान को चांदिवली सीट से टिकट शामिल है.
शिवसेना (यूबीटी) ने वर्सोवा से अपने एकमात्र उम्मीदवार हारून खान को मैदान में उतारा है, जबकि एनसीपी (एसपी) ने अनुषक्ति नगर से फहद अहमद को उम्मीदवार बनाया है. अहमद का मुकाबला नवाब मलिक की बेटी सना मलिक से है, जो एनसीपी अजित गुट की उम्मीदवार हैं. मलिक ने खुद मानखुर्द-शिवाजीनगर से एनसीपी अजित गुट के उम्मीदवार के रूप में नामांकन दाखिल किया है, जहां उनका मुकाबला समाजवादी पार्टी के मौजूदा विधायक अबू आसिम आजमी से है, जबकि कांग्रेस छोड़ चुके जीशान सिद्दीकी बांद्रा पूर्व से एनसीपी अजित गुट के उम्मीदवार हैं. छोटी पार्टियों में, प्रकाश अंबेडकर की वीबीए ने 9 मुसलमानों को मौका दिया है जबकि एआईएमआईएम ने चार उम्मीदवार उतारे हैं.
अल्पसंख्यक समुदाय में असंतोष
टिकट बंटवारे की प्रक्रिया और उम्मीदवार चयन के बाद अल्पसंख्यक समुदाय के प्रमुख सदस्यों ने असंतोष व्यक्त किया है. सवाल उठाए गए हैं कि अल्पसंख्यक समुदाय के उम्मीदवारों के चयन में आनुपातिक प्रतिनिधित्व की कमी हैं. एनसीपी के कार्यकर्ता और पूर्व अल्पसंख्यक आयोग के अध्यक्ष नसीम सिद्दीकी ने कहा कि समुदाय में निराशा का माहौल है. उन्हें विश्वासघात की भावना ने जकड़ लिया है क्योंकि समुदाय से नामांकनों की संख्या उनकी अपेक्षाओं से बहुत कम है. निराशा इसलिए भी अधिक है क्योंकि राज्य के विभिन्न हिस्सों में अल्पसंख्यक वोट बड़े पैमाने पर एमवीए के पक्ष में एकजुट हो गए थे. इस अभूतपूर्व लामबंदी ने कुछ महायुति कार्यकर्ताओं को इसे “वोट जिहाद” कहने के लिए प्रेरित किया.
एआईएमआईएम को फायदा?
अल्पसंख्यक सदस्य इस बार बीजेपी और उसके सहयोगियों से उम्मीदवार चयन में कोई आश्चर्य की उम्मीद नहीं कर रहे थे, खासकर पिछले कुछ वर्षों में नफरत भरे भाषण और अन्य सांप्रदायिक उकसावे की घटनाओं को देखते हुए लेकिन एमवीए के खिलाफ असंतोष मजबूत है. इस बार, कुछ निर्वाचन क्षेत्रों में मुस्लिम वोटों का एक हिस्सा एआईएमआईएम, वीबीए और राष्ट्रीय उलेमा काउंसिल जैसी छोटी पार्टियों को भी जा सकता है.
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FIRST PUBLISHED : October 31, 2024, 23:11 IST