ये मटका फ्रिज का बाप, 48 डिग्री तापमान में भी पानी रहेगा ठंडा, इस जानवर की लीद का कमाल
दीपक पाण्डेय/खरगोन. गर्मी में मिट्टी से बने मटकों की खूब डिमांड रहती है. इन मटकों में पानी ठंडा रहता है. लेकिन, ज्यादा गर्मी पड़ने पर कई बार मटके भी जवाब दे जाते हैं. लेकिन, आज जिस मटके के बारे में हम आपको बताएंगे उसमें 48 डिग्री तापमान में भी पानी फ्रिज जैसा ठंडा रहता है. इसके पीछे की वजह एक जानवर की लीद है.
दरअसल, खरगोन सहित देश के तमाम शहरों और गांवों में बिकने वाले देसी मटके कुम्हार अपने हाथों से गढ़ते हैं. इन्हें बनाने के लिए खास किस्म की मिट्टी का इस्तेमाल करते हैं. चार से पांच दिन की कड़ी मेहनत के बाद मटका बनकर तैयार होता है. कुम्हार दिवाली के बाद से ही मटके बनाने के कार्य में जुट जाते हैं.
मिट्टी में मिलाते हैं घोड़े की लीद
खरगोन के रहीम पूरा क्षेत्र में विगत 50 वर्षों से मटके बना रहे सीताराम प्रजापत ने local 18 को बताया कि मटके बनाने के लिए पीली मिट्टी का उपयोग करते हैं. इसमें घोड़े की लीद और गन्ने का भूसा (बगास) मिलाते हैं. इन दोनों को पानी में मिलाकर दो दिनों तक एक गड्ढे में गलाते हैं. सूखने के बाद छलनी से छानते हैं. फिर आटे की तरह गूंथते हैं.
मटका बनने की प्रक्रिया
इसके बाद शुरू होती है मटका बनाने की असली प्रक्रिया. लकड़ी के गोल चकरे पर मिट्टी से मटके का मुंह तैयार करते हैं. यह आकृति हाथों से ही दी जाती है. एक दिन सूखने के बाद लकड़ी और लोहे के खास औजारों से मटके की ठुकाई होती है, जिससे मटके का साइज बढ़ता है. फिर इसे तब तक सुखाते हैं, जब तक वह कठोर न हो जाए. इसके बाद मटकों को एक दिन पकाते हैं.
कैसे होता है पानी ठंडा
70 साल के सीताराम प्रजापत ने local 18 को बताया कि मिट्टी में घोड़े की लीद मिक्स होने की वजह से मटके का पानी ठंडा रहता है. इन मटकों की एक और खासियत है, जितनी कुदरती हवा लगती है. मटके का पानी उतना ठंडा होता है. ये लीद और मिट्टी खरीद कर लाते हैं.
मिट्टी में होते हैं पोषक तत्व
मिट्टी में कई पोषक तत्व पाए जाते हैं, जो हमारे शरीर के लिए काफी फायदेमंद होते हैं. मिट्टी से बना होने से मटके का पानी शरीर के लिए सबसे उपयुक्त माना गया है. 100-150 रुपए में बिकने वाला देसी मटका दो-तीन साल तक पानी को ठंडा रखता है.
एक दिन में बनाते हैं 40 मटके
सीताराम बताते हैं कि सुबह 4 बजे मटके बनाने में जुट जाते हैं. एक दिन में 35 से 40 मटकों को आकार दे देते हैं. छोटे-बड़े मटके सहित रांझण भी बनाते हैं. गर्मी के पूरे सीजन में डेढ़ लाख रुपये तक की कमाई होती है. मटकों के अलावा मिट्टी के दीए, गुल्लक सहित अन्य वस्तुएं भी बनाते हैं. उनका कहना है की अब लकड़ी के चकरे को घुमाने के लिए मशीनें आ गई हैं, लेकिन आज भी वह हाथों से काम करते हैं. इससे मटके की मजबूती अच्छी रहती है.
मिलती है इतनी कीमत
बाजारों में मटके 50 से 250 रुपए तक बिकते हैं. वहीं रांझण 250 रुपए से 1000 रुपए तक बिकती है. कुम्हार का कहना है कि मटके बनाते समय काफी सावधानी रखनी पड़ती है. चूक होने पर टूटने का डर रहता है. पकने के बाद टूट गया तो फिर जुड़ता नहीं है. फिर भी लोग भाव-ताव करते हैं.
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FIRST PUBLISHED : March 28, 2024, 07:48 IST