योग दिवस: योग सिर्फ शारीरिक आसन की नहीं विधा, अपने चमत्कार से पूरी दुनिया के लिए बना 'उत्सव'



<p style="text-align: justify;">अंतर्राष्ट्रीय विश्व योग दिवस के अवसर पर पूरी दुनिया में योग उत्सव का प्रतीक बन जाता है. विश्व के हर महत्वपूर्ण स्थल पर योगासन किए जाते हैं. जल, थल और नभ से भी योगाभ्यास की तस्वीरें आती हैं. संक्षिप्त शब्द में कहें तो पृथवी का हर कोना योगमय हो जाता है. 21 जून 2015 को पहली बार विश्व योग दिवस मनाया गया. हर बीतते वर्ष के साथ यह आयोजन भव्य और विशाल होता जा रहा है. हालांकि विश्व योग दिवस के प्रति दुनिया का आकर्षण और लगाव अचंभित करने वाला नहीं हैं. असल में योग के चमत्कार को लोगों ने अपने शरीर और विचारों में महसूस किया है.</p>
<p style="text-align: justify;">चूंकि पुन: विश्व योग दिवस का अवसर उपस्थित हो गया है अत: कुछ बिन्दुओं पर चर्चा आवश्यक है. दरअसल योग को केवल विभिन्न आसनों और क्रियाओ का ही क्रम मान लिया गया है. परन्तु सत्य यह है कि योग का समावेश ब्रह्माण्ड में बहुत व्यापक है. योग केवल शारीरिक आसन की विधा नहीं है बल्कि यह अंतर्मन को शुद्ध करने की प्रक्रिया है. हमारे चित्त को चिरंजीवी करने वाली विद्या है. आत्मा और परमात्मा के भेद को समझाने वाला ज्ञान है. योग का विस्तार बहुत बड़ा है और हम इसे केवल आसन समझने की भूल कर रहे हैं. इस पक्ष को लेकर लोगों को जागरुकता बढ़े तब विश्व योग दिवस का आयोजन ज्यादा सफल और सार्थक माना जाएगा.</p>
<p style="text-align: justify;">योग केवल शरीर को स्वस्थ करने का साधन नहीं है बल्कि सद्गुरु का सानिध्य मिल जाए तब योगी काल और मृत्यु को जीत लेता है. गोरक्ष संहिता में इस बात का स्पष्ट वर्णन मिलता है कि</p>
<p style="text-align: justify;">एतद्विमुक्तिसोपानमेतत्कालस्य खंचनम्.</p>
<p style="text-align: justify;">यद्व्यावृत्तं मनो भोगादासक्तं परमात्मनि..</p>
<p style="text-align: justify;">अर्थात योगाभ्यास के द्वारा जब मन विषय भोगो से दूर होकर परमात्मा में लग जाता है, तब योगी काल और मृत्यु को जीत लेता है. यह कर्म-मोक्ष की सीढ़ी है और यही काल वंचना भी है.</p>
<p style="text-align: justify;">इस श्लोक का दृष्टांत देने का अर्थ केवल इतना है कि यह समझा जाए कि योग लौकिक और पारलौकिक संबंध को समझने का सुगम माध्यम है. हालांकि इन्हें समझने के लिए आवश्यक है कि विषय को गहनता से देखने की रुचि उतपन्न की जाए.</p>
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<p style="text-align: justify;">गोरक्ष संहिता के उपरोक्त श्लोक के भावार्थ में जाएं तो स्पष्टता दिखती है कि योग के अभ्यास के बढ़ने से परमात्मा में मन रमता है और फिर मनुष्य वास्तव में काल के कपाल पर अपना जीवन लिखने के योग्य बनने लगता है. परन्तु विस्तार की सीमा यहां समाप्त नहीं होती. अगर आपको एक अच्छा जीवन जीना है दोषों से बचना होगा. उन दोषों से आपको कौन बचाएगा? &nbsp;इसका भी उत्तर है योग.</p>
<p style="text-align: justify;">महर्षि पतंजलि रचित योग दर्शन के इस सूत्र को देखिए.</p>
<p style="text-align: justify;">तज्जयात्प्रज्ञालोक:</p>
<p style="text-align: justify;">अर्थात साधन और साधना से योगी संयम पर विजय प्राप्त करता है. वह इतना दृढ़ हो जाता है कि जिस विषय में संयम करना चाहे, तत्काल प्राप्त कर लेता है. इस स्थिति में योगी या योग के अभ्यासी को बुद्धि का प्रकाश प्राप्त हो जाता है.</p>
<p style="text-align: justify;">वर्तमान समय में लोगों दुख, चिंता, डिप्रेशन और तमाम मानसिक व्याधियों का कारण विषय भोग ही हैं. किसी को कोई सुविधा चाहिए, किसी को कोई अमुक वस्तु चाहिए, किसी को कोई पद चाहिए, पैसा चाहिए. मतलब की मनुष्य जीवन की सारी होड़ भौतिक सुविधाओं को पाने की है और उसी में जीवन खर्च होता चला जा रहा है.</p>
<p style="text-align: justify;">योग के प्रचार-प्रसार और अभ्यास से लोगों को यह एहसास तो होने लगा है कि शरीर और मन के स्वास्थ्य के लिए योग आवश्यक है. परन्तु इस आभास का जागरण बाकी है कि असल में जो हमारी मानसिक व्याधिया हैं हैं जिन्हें हम अपने सफलता का मापदंड मान बैठे हैं, उनका भी उपचार योग से ही संभव है.</p>
<p style="text-align: justify;">जन्म-मृत्यु, जरा-व्याधि से आगे बढ़ें तो योगेश्वर कृष्ण के गीता ज्ञान में योग के विभिन्न स्वरूप और परिभाषाओं का दर्शन हमें होता है. गीता में हमें कर्मयोग, ज्ञान योग, ध्यान योग, भक्ति योग, पुरुषोत्तम योग का उपदेश मिलता है.</p>
<p style="text-align: justify;">भारत को वास्तव में अगर विश्वगुरु बनाना है तो फिर वक्त आ गया है कि योगासनों से आगे बढ़कर हम मन और चित्तशुद्धि के उपादानों पर एकाग्रता बढ़ाना शुरु करें. यह आवश्यक है कि अब बाह्य वृत्तियों की शांति की बात हो. प्रकृति के सूक्ष्मतम स्वरूप के जागरण के जागरुकता की बात हो. इस जन्म से आगे बढ़कर पूर्व जन्म या जन्म-जन्मांतरों से चले आ रहे संस्कारों को जानने और उनको सुधारने का मार्ग प्रशस्त हो.</p>
<p style="text-align: justify;">यहां पर एक विषय और भी विचारणीय है. वर्तमान समय में योग के प्रति आकर्षण बढ़ा तो यौगिक क्रियाओं और आसनों में प्रयोगों की बाढ़ सी आ गई है. अब यहां यह समझने और जानने की आवश्यकता बहुत ज्यादा हो गई है कि जो भारतीय योग रहा है हम उसी के आसन कर रहे हैं या फिर कॉम्पटीशन के दौर में कुछ ऐसा आसन गढ़ दिया गया है जिसका खुद का कोई सिर पैर नहीं है.</p>
<p style="text-align: justify;">ऐसे में यह समझना भी आवश्यक है कि योगाभ्यास की सिद्धि भी तभी है जब वह विधिविधान से की जाए. अगर इसमें अविधि का समावेश हुआ तब फायदा के बजाय नुकसान हो जाएगा. तात्पर्य यह है कि योगशास्त्रों में वर्णित नियम के अनुसार किया गया योग ही लाभकारी साबित होगा, मनगढ़ंत आसन नहीं. इस संबंध में बहुत स्पष्ट व्याख्या गोरक्ष संहिता में देखने को मिलती है.</p>
<p style="text-align: justify;">निरातङ्के निरालम्बे निराधारे निरामये.</p>
<p style="text-align: justify;">योगी योगविधानेन परे बह्मणि लीयते..</p>
<p style="text-align: justify;">अर्थात योगी पुरुष योग के विधान से अभ्यास सिद्ध होने पर आतंक रहित, आलम्ब रहित, आधार रहित और विशुद्ध ब्रह्म में लीन हो जाता है. परन्तु इसकी शर्त भी श्लोक में स्पष्ट लिखी हुई है. वह शर्त है &lsquo;योगविधानेन&rsquo;, मतलब जो विधि शास्त्रों में वर्णित है उसी विधि के द्वारा.</p>
<p style="text-align: justify;">योग बहुत बड़ा विषय है. इसका विस्तार ठीक वैसा ही है जैसे इसके लाभ हैं. लौकिक और पारलौकिक संबंधो के इस सेतु बेहतर ढंग से लोगों को समझने और समझाने की आवश्यकता है.</p>
<p style="text-align: justify;">विश्व योग दिवस के उपलक्ष्य में हम जिस विस्तार के बारे में चर्चा कर रहे हैं उस विस्तार को सार्थक स्वरूप देने के लिए गीता में भगवान कृष्ण के कहे श्लोक पर ध्यान देना होगा.</p>
<p style="text-align: justify;">बुद्धियुक्तो जहातीह उभे सुकृतदुष्कृते.</p>
<p style="text-align: justify;">तस्माद्योगाय युज्यस्व योग: कर्मसु कौशलम.. &nbsp; &nbsp; &nbsp;</p>
<p style="text-align: justify;">योगेश्वर कृष्ण कह रहे हैं कि जिसने अपनी बुद्धि को भगवान के साथ युक्त कर दिया है, वह इस द्वन्दमय लोक में शुभ और अशुभ कर्म दोनों का परित्याग कर देता है. इसलिए समत्व बुद्धिरूप योग के लिए प्रयत्न कर, समत्व बुद्धि रूप योग ही कर्म का कौशल है.</p>
<p style="text-align: justify;">इस पूरी बात का भाव यह है कि कौशल इसी बात में है कि बिना किसी आसक्ति के कर्मयोग का अभ्यास हो. इस अभ्यास में शुभ और अशुभ परिणाम पर समभाव बना रहे अर्थात मनुष्य इस द्वन्द से मुक्त हो जाए.</p>
<p style="text-align: justify;">ठीक इसी भाव के साथ योग के मर्म को विश्वपटल पर पहुंचाने का बीड़ा उठाना होगा, लोगों को जोड़ना होगा तभी विश्व योग दिवस का उपलक्ष्य सार्थक साबित हो सकता है.</p>
<p style="text-align: justify;">योग शब्द के निर्माण पर भी जाएं तो यह संस्कृत धातु युज से निर्मित है और युज का अर्थ होता है जोड़ना. तो इस बार विश्व योग दिवस पर शपथ ही यह लेनी है कि योग के हर आयाम से हम जुड़ेंगे और लोगों को जोड़ेंगे भी. यही तभी संभव होगा जब शासकीय स्तर पर भी इसके लिए गंभीर प्रयास हों. हमें समझना भी होगा और समझाना भी होगा कि योग का विस्तार संपूर्ण ब्रह्माण्ड को स्वयं में उतार लेने तक है. इस केवल आसन तक सीमित कर देना अपने साथ भी अन्याय होगा और योग के साथ भी.</p>
<p style="text-align: justify;">आइए हम सब मिलकर शपथ लें कि इस बार के योग दिवस से आसन के साथ ही साथ हम श्वास, चित्त, मन, विचार पर भी काम करेंगे. योग कि शास्त्रीय विधि के द्वारा करेंगे.</p>
<p style="text-align: justify;"><strong>[नोट- उपरोक्त दिए गए विचार लेखक के व्यक्तिगत विचार हैं. ये जरूरी नहीं कि एबीपी न्यूज़ ग्रुप इससे सहमत हो. इस लेख से जुड़े सभी दावे या आपत्ति के लिए सिर्फ लेखक ही जिम्मेदार है.]</strong></p>



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