रतन टाटा ने एक झटके में छीन ली 38 हजार लोगों की नौकरी, लेकिन परिवार ने मनाई खुशियों की दिवाली


Ratan Tata: जानेमाने उद्योगपति रतन टाटा अब हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन उनके जाने के बाद उनसे जुड़े किस्से खत्म होने का नाम नहीं ले रहे हैं. ऐसा इसलिए कि वह भारतीय उद्योग जगत के एक ऐसा चेहरा थे जिनमें कूट-कूट कर मानवीय मूल्य भरे हुए थे. वह एक व्यापारी नहीं उद्योगपति थे. उन्होंने कारोबार को देश और समाज की बेहतरी का जरिया बनाया. बुधवार देर रात उनका निधन हो गया. वह 86 साल के थे. वह अविवाहित रहे. अब टाटा ट्रस्ट्स के चेयरमैन उनके सौतेले भाई नोएल टाटा होंगे. टाटा ट्रस्ट्स के पास ही टाटा संस का स्वामित्व है. टाटा संस टाटा समूह की पैरेंट कंपनी है.

रतन टाटा को 1991 में टाटा संस की जिम्मेदारी मिली थी. उस वक्त ऐसे आरोप लगे थे कि जेआरडी टाटा ने अपना उत्तराधिकारी चुनने में अपने परिवार को अहमियत दी. खैर, रतन टाटा भविष्य में एक सबसे सफल प्रोमोटर साबित हुए और उन्होंने टाटा समूह को नई ऊंचाइयों पर पहंचाया. उन्होंने उस वक्त की तमाम आलोचनाओं को निराधार साबित कर दिया.

उन्होंने ‘ह्यूमन ऑफ बांबे’ को दिए एक इंटरव्यू में अपने जीवन की कई बड़ी घटनाओं का जिक्र किया था. इसी इंटरव्यू में उन्होंने खुद के टाटा संस के चेयरमैन बनने और कई अन्य सवालों के जवाब दिए. लेकिन, इस इंटरव्यू में उन्होंने एक बड़ी घटना की जानकारी दी.

कभी टाटा स्टील थी फ्लैगशिप कंपनी
दरअसल, नई चुनौतियों के बीच टाटा स्टील समूह की फ्लैगशिप कंपनी नहीं रही. कंप्टीशन बढ़ने और रेवेन्यू घटने की वजह से कंपनी को कई कड़े फैसले लेने पड़े. इसी कारण टाटा स्टील में बड़े पैमाने पर छंटनी का प्लान बनाया गया. उस वक्त टाटा स्टील में 78 हजार कर्मचारी थे. कंपनी को बचाने के लिए इस वर्कफोर्स को घटाकर 40 हजार कर दिया गया. यानी एक झटके में 38 हजार लोगों की नौकरी खत्म हो गई.

यह फैसला उस टाटा समूह का था जिसके प्रति जनता का भरोसा अटूट था. टाटा की छवि एक ऐसे कारोबारी समूह की रही है जिसमें नौकरी के लिए लोग सरकारी नौकरी तक छोड़ देते हैं. ऐसे में टाटा समूह से छंटनी एक बड़ी घटना था. लेकिन, रतन टाटा ने इसे बेहद संजीदगी से निपटाया और फिर नौकरी से निकाले गए कर्मचारियों के घर में दिवाली जैसा माहौल था.

रतन टाटा का मानवीय चेहरा
दरअसल, रतन टाटा की अगुवाई में बेहद मानवीय प्लान बनाया गया. फिर टाटा समूह में नौकरी से निकाले गए 38 हजार कर्मचारियों को उनके मौजूदा वेतन के हिसाब से बची हुई नौकरी की अवधि के बराबर पैसा दिया गया. एक तरह से यह वीआरएस जैसा था. आम तौर पर ऐसा ऑफर सरकारी कंपनियों में मिलता है. लेकिन, टाटा समूह ने अपने कर्मचारियों की जरूरत को देखते हुए यह बड़ा फैसला किया था.

इस बारे में रतन टाटा ने खुद खुलासा किया था और कहा था यह टाटा समूह ने डीएनए में है. उन्होंने कहा कि यह हमारी सोच है जो हमारे लिए करते हैं हम उनके लिए करते हैं.

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