श्मशान घाट के लिए तरस रहे 45 गांव, बताई कई समस्याएं; किसानों को भी होता है नुकसान


बस्ती: जनपद के विकास खंड गौर स्थित एकटेकवा चौराहे के आसपास के लगभग 40 गांवों के लोग बिना किसी श्मशान घाट के अपने मृत परिजनों का दाह संस्कार करने को मजबूर हैं. एकटेकवा का चोरहा घाट एकमात्र ऐसा स्थान है, जहां इन गांवों के निवासी अपने प्रियजनों का अंतिम संस्कार करते हैं. इस घाट के लिए ना तो कोई बजट आवंटित किया गया है और ना ही कोई समुचित व्यवस्था की गई है.

स्थानीय लोग बताते हैं कि पीढ़ियों से उनके पूर्वज भी इसी घाट पर दाह संस्कार करते आ रहे हैं. लेकिन, इस घाट पर कोई बुनियादी सुविधाएं नहीं हैं, न ही आने-जाने के लिए कोई पक्का रास्ता है. कहीं पर भी दाह संस्कार करते समय लोगों को तरह-तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ता है. इन सघन और लंबी-लंबी झाड़ियां में कई जहरीले सर्प और कीड़े-मकोड़े रहते हैं. लगभग 40 से 50 हजार की आबादी में दाह संस्कार के लिए मात्र एक यही जगह है. इसे लेकर अब तक किसी राजनेता या प्रशासनिक अधिकारी ने कोई पहल नहीं की है.

क्यों जरूर है श्मशान घाट?
स्थानीय निवासियों ने बताया कि उस स्थान पर लोगों की निजी जमीन है, जिसके कारण सरकार की तरफ से श्मशान घाट घोषित नहीं किया गया है. हालांकि, जिनकी जमीन पर दाह संस्कार किया जाता है. उन्होंने अभी तक कोई आपत्ति नहीं जताई है. लेकिन इसका मतलब यह नहीं कि भविष्य में वे आपत्ति नहीं कर सकते. बंजर भूमि या सरकारी जमीन की कमी के कारण यह समस्या बनी हुई है.

किसानों की फसलों को भी होता है नुकसान
नदी के किनारे न तो बंजर भूमि है, न ही आबादी की जमीन है. वर्तमान में जहां दाह संस्कार किया जाता है, उसके आसपास लोगों की खेती वाली जमीन है. ऐसे में जब किसी के परिजन की मृत्यु हो जाती है, तो लोग इस खेत से होकर आते-जाते हैं. इससे किसानों की फसल को नुकसान होता है. इस संवेदनशील स्थिति में कोई किसान आपत्ति नहीं करता, लेकिन यह समस्या बनी रहती है.

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श्मशान घाट के निर्माण की मांग
क्षेत्र के निवासियों की मुख्य मांग है कि सरकार पहल करते हुए श्मशान घाट का निर्माण करवाए. ताकि 40-45 गांवों के लोगों के लिए उनके मृत परिजनों का दाह संस्कार करने की उचित व्यवस्था हो सके. साथ ही श्मशान घाट तक पहुंचने के लिए पक्की सड़कों का भी निर्माण किया जाए. ताकि, लोग आसानी से घाट तक पहुंच सके.

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