संजा पर्व: 16 दिनों तक चलने वाली निमाड़ की अनोखी परंपरा, जहां हर दीवार सुनाती है संस्कृति की कहानी


दीपक पांडेय/खरगोन: निमाड़ की पहचान केवल इसकी मीठी बोली से नहीं है, बल्कि यहां की अनमोल परंपराएं, लोक कला और संस्कृति भी बेजोड़ हैं. इन्हीं अद्वितीय परंपराओं में से एक है ‘संजा पर्व’, जिसे पितृ पक्ष के दौरान मनाया जाता है. इस पर्व में महिलाएं और कुंवारी लड़कियां अपने घरों की दीवारों पर गोबर से देवी-देवताओं की आकृतियां बनाती हैं और उनकी पूजा करती हैं. पारंपरिक गीतों के साथ प्रसाद वितरण की अनोखी रस्में निभाई जाती हैं. हालांकि, शहरीकरण और आधुनिकता के चलते यह पर्व अब केवल कुछ ग्रामीण क्षेत्रों में ही जीवित है, लेकिन उसकी मिठास अब भी अद्वितीय बनी हुई है.

कैसे मनाया जाता है संजा पर्व

मंडलेश्वर की वैदेही सखी मंडल की सदस्य अर्चना पाटीदार और तरुणा तंवर ने इस पर्व के बारे में जानकारी दी. पितृ पक्ष के सोलह दिनों तक ये पर्व हर्षोल्लास से मनाया जाता है. बालिकाएं गोबर से गणेश, पार्वती, सूर्य, चंद्रमा जैसी आकृतियां बनाती हैं और उन्हें सजाकर पूजा करती हैं. एक घर से दूसरे घर जाकर पारंपरिक गीत गाए जाते हैं और प्रसाद बांटते वक्त पहेलियां पूछी जाती हैं. अगर कोई पहेली का उत्तर नहीं दे पाता, तो उसे मजाक में ‘अक्कल फूटी’ कहकर पुकारा जाता है और अंत में सही उत्तर बताया जाता है.

लोक कला और परंपराओं का धीमा होता चलन

निमाड़ी लोक गायिका मनीषा शास्त्री के अनुसार, आधुनिक जीवनशैली और पढ़ाई के बढ़ते दबाव के चलते इस पर्व को मनाने वाले लोगों की संख्या में कमी आई है. घरों के पक्के निर्माण और महंगे पेंट की वजह से भी लोग दीवारों पर गोबर से आकृतियां बनाना बंद कर रहे हैं. फिर भी, कुछ ग्रामीण इलाकों में ये पर्व आज भी मनाया जाता है, जिससे परंपराएं जीवित हैं. बालिका साक्षी राठौर कहती हैं कि वे अपनी संस्कृति से गहरा जुड़ाव महसूस करती हैं और इसे बचाने के लिए हर संभव प्रयास करेंगी.

संजा पर्व के दौरान पारंपरिक निमाड़ी गीतों की मिठास और भी गहरी होती है. इन गीतों में ‘संजा बईण का लाडा जी, लुगड़ो लाया जाड़ा जी…’ और ‘नानी सी गाड़ी लुढ़कती जाय…’ जैसे गीत शामिल हैं, जो इस पर्व की खुशी को और भी जीवंत कर देते हैं. इन गीतों के माध्यम से बालिकाएं मिलकर संजा की आकृतियों को सजाती हैं और पारंपरिक नृत्य करती हैं.

प्रवेश द्वार पर आकृतियां बनाने की परंपरा

तरुणा तंवर ने बताया कि संजा पर्व के दौरान घर के प्रवेश द्वार पर देवी की आकृतियां बनाने का खास महत्व है. ये कथा महाभारत काल से जुड़ी है, जब संजा बाई (माता पार्वती) पहली बार मायके आई थीं और उनका स्वागत दरवाजे पर किया गया था. इसी वजह से इस पर्व में देवी को दरवाजे पर रोका जाता है और उनका पूजन किया जाता है.

आध्यात्मिक और वैज्ञानिक महत्व

पंडित पंकज मेहता बताते हैं कि संजा पर्व में देवी-देवताओं की पूजा किसी विधिवत मंत्रोच्चार या यज्ञ से नहीं होती, बल्कि भावनाओं और सखी भाव से की जाती है. ये पर्व बालिकाओं की सुरक्षा और उनके घर सजाने के गुण सिखाने का भी प्रतीक है. वहीं, वैज्ञानिक दृष्टिकोण से देखा जाए तो इस समय ऋतु परिवर्तन के कारण बीमारियों का खतरा बढ़ जाता है. गोबर के एंटीबैक्टीरियल गुण कीड़े-मकोड़ों से रक्षा करते हैं और प्रवेश द्वार पर बनी आकृतियां इनसे बचाव का काम करती हैं. साथ ही, फूलों की सुगंध से शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य को भी लाभ मिलता है.

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