सफेद सी दिखने वाली यह मिठाई एनर्जी की है पावर हाउस! खाते हीं थकान गायब, चीनी और गुड़ से होती है तैयार


पलामू: भारत देश में अलग-अलग क्षेत्र की अपनी अलग परंपरा और बोली है. इसके साथ- साथ यहां के अपने अलग खान-पान भी हैं. जो की वक्त के साथ बदलते जा रहे हैं. झारखंड बिहार भी अपने अलग बोली और परंपरा से प्रसिद्ध है. यहां पहले के जमाने में मेहमान नवाजी के लिए सबसे ज्यादा खास मिठाई डिमांड में थी. जिसे एक बाद खा लेने के बाद लोग अपने थकान को भूल जाते थे. साथ ही खूद को एनर्जी से भरपूर महसूस करते थे. क्योंकि इसको खास चीज से तैयार किया जाता है. यह अभी 100 रुपया किलो आपको मिल जाएगी.

कार्बोहाइड्रेट और ग्लूकोज होने से मिलती है एनर्जी
पर्यावरणविद डॉ.डी.एस श्रीवास्तव ने बताया की पहले के जमाने में लोग लंबी दूरी तय करके आते थे. उस जमाने में यातायात की इतनी सुदृढ़ व्यवस्था और सुविधा नहीं थी. तब गर्मी के मौसम में सबसे ज्यादा मेहमान नवाजी के लिए यह मिठाई लोगों को दी जाती थी. जिसे खाते हीं लोगों की थकान भी दूर हो जाती थी. नाम है बताशा. यह एक ऐसी मिठाई है जो चीनी और गुड़ के घोल से तैयार की जाती है. इसमें कार्बोहाइड्रेट की मात्रा और ग्लूकोज की मात्रा होती है. जिसे ठंडा पानी के साथ पीने पर शरीर को एनर्जी मिलती है. लोग थकान भूल जाते है. इसका स्वाद तब बढ़ जाता है जब किसी को जोर का प्यास लगी हो और उसे पानी के साथ बतासा दिया जाए.

इस वजह से चलन से गायब हुई यह मिठाई
उन्होंने आगे बताया कि इसका चलन पहले के समय में बहुत ज्यादा था. ये खाने भी स्वादिष्ट लगता है. हालाकि आज के दौर में लोग इसे खाना या मेहमान नवाजी में प्रयोग नहीं करते कारण की जगह-जगह मिठाई और समोसे के दुकान मिल जाते हैं. वहीं लोगों की आर्थिक स्थिति भी सुदृढ़ हो गई है, तो इस कारण इसका चलन भी कम हो गया है. मगर सुदूरवर्ती क्षेत्र में आज भी लोग इसे खाते है.

बाजार में 100 रुपए को उपलब्ध
पलामू जिले के डाल्टनगंज शहर के छः मुहान चौक समीप दुकानदार रणजीत कुमार बताते है की वो 1984 से बताशा बेच रहे हैं. पहले के जमाना में इसकी डिमांड बहुत अधिक थी. मगर धीरे-धीरे इसका चलन खत्म होता गया. उन्होंने कहा की उस जमाने में 12 रुपए किलो के दर से बिक्री करते थे. वहीं आज इसका रेट 100 रुपए किलो हो गया है. अब इसे लोग केवल शादी विवाह और पूजा के लिए खरीदते हैं. इसे बनाने में काफी मेहनत लगता है. इसको बनाने के लिए पहले चीनी का पाग किया जाता है. इसके बाद इसमें हाइड्रो, रीठा मिलाया जाता है. जिसके बाद मिश्रण को सांचा में डाला जाता है. जिसे सूती के कपड़ा के मदद तैयार किया जाता है. बताशा एक घंटा में 10 किलो तैयार होता है.

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