सिर धड़ से अलग हो गया फिर भी गायों की बचाई जान, अद्भूत है 600 साल पुरानी मंदिर की महिमा, दिल्ली से 225 KM दूर
भारत एक धार्मिक देश है, जहां कई मंदिर और पवित्र नदियां हैं, जो दुनिया भर से भक्तों को आकर्षित करती हैं. आपने देवी-देवताओं और लोक देवताओं की पूजा के लिए समर्पित कई मंदिर देखे होंगे. कुछ मंदिर ऐसे हैं जो जानवरों के लिए हैं. राजस्थान के झुंझुनू में, बाकरा गांव में एक अद्वितीय मंदिर ने अपनी उपचार शक्तियों के लिए प्रसिद्धि प्राप्त की है, माना जाता है कि यह जानवरों और मनुष्यों दोनों की पीड़ाओं को कम करता है. यह मंदिर सकले गांव के प्रतिष्ठित व्यक्ति पाला सकलाय दादा को समर्पित है. इस मंदिर की बहुत मान्यता है और कहा जाता है कि यहां इंसान और जानवर दोनों के दुख-दर्द दूर हो जाते हैं. मंदिर का इतिहास कई सदियों पुराना है. पाला सकलाय दादा ने लुटेरों से गांव की गायों की बहादुरी से रक्षा करते हुए अपनी जान गंवा दी थी.
कहा जाता है कि लुटेरे गांव की गायों को लूट रहे थे. किसानों ने उन्हें छुड़ाने के लिए लुटेरों से लड़ाई की. उन किसानों में दादा पाला सकलाय भी थे. युद्ध में उनकी गर्दन कट जाने के बाद भी वे लुटेरों से लड़ते रहे और उनसे गाय को छुड़ाया तथा गर्दन के बिना ही गायों के पीछे-पीछे गांव की ओर जा रहे थे. गांव के बाहर खेतों में काम कर रहे लोगों के सामने ही उनकी मौत हो गयी. पाला साकले का मंदिर उसी स्थान पर बनाया गया, जहां वह गिरे थे. तभी से लोग उन्हें लोक देवता के रूप में पूजते हैं. 600 वर्ष से अधिक पुराना यह मंदिर आज भी कई लोगों के लिए आशा की किरण बना हुआ है.
गांव के पूर्व सरपंच सतीश खीचड़ ने मंदिर में लोगों की गहरी आस्था पर प्रकाश डाला और जरूरतमंद लोगों को राहत और उपचार प्रदान करने में इसकी भूमिका पर जोर दिया. खीचड़ ने बताया कि यह मंदिर 600 साल से भी ज्यादा पुराना है. आज भी इस स्थान के प्रति लोगों की गहरी आस्था है, जिन लोगों के शरीर पर खाज, खुजली या मस्से होते हैं वे यहां आते हैं और राहत पाने के लिए प्रार्थना करते हैं. लोग अपने बीमार जानवरों को भी यहां लाते हैं, यह विश्वास करते हुए कि मंदिर की शक्ति उन्हें भी ठीक कर देती है.
FIRST PUBLISHED : May 3, 2024, 13:45 IST