सीतामढ़ी से विश्व मंच तक का सफर: साहित्य और समाज के नाम किया जीवन, विदेशों में करते है कवि पाठ


भरत चौबे/ सीतामढ़ी: लोग अक्सर जीवन में पैसे कमाने और परिवार के भरण-पोषण के लिए कुछ भी करने को तैयार रहते हैं, लेकिन व्यक्ति की असली पहचान वही होती है, जिसमें उसकी रुचि और जुनून होता है. इसी राह पर चलते हुए, सीतामढ़ी के एक चर्चित कवि और गीतकार राम इकबाल सिंह, जिन्हें फिल्मी दुनिया में गीतकार गीतेश के नाम से भी लोग जानते है, इन्होने एक लंबा सफर तय किया है. उनका सफर संघर्षों से भरा रहा, लेकिन उन्होंने अपनी मेहनत और लगन से एक अलग पहचान बनाई है.

मुंबई में संघर्ष से मिली पहचान
गीतेश ने वर्ष 1994 में सीतामढ़ी के सोनबरसा प्रखंड स्थित मयूरवा गांव से निकलकर अपने सपनों को साकार करने के लिए मुंबई का रुख किया. वहां उन्होंने बॉलीवुड में गीत लिखने की शुरुआत की. कड़ी मेहनत के बाद, उन्हें भोजपुरी और हिंदी फिल्मों में गाने लिखने का मौका मिला. उनकी पहली गीत, ‘बनती जहां में खुशियां खुद अपना गम छुपा के, पाया हूं रौशनी खुद अपना ही घर जला के’ है. इस गाने ने लोगों के दिलों में उनके लिए जगह बनाई है.

उनकी लिखी राजस्थानी गीत ‘इक छोरा म्हारे दिल को लागो है प्यारो-प्यारो’ को मशहूर गायिका सपना अवस्थी ने गाया, जिसे काफी सराहा गया. इसके बाद, उन्होंने हिंदी और भोजपुरी फिल्मों में कई हिट गाने लिखे, जिन्हें मोहम्मद अजीज, लता मंगेशकर, उदित नारायण, कुमार सानू, और सोनू निगम जैसे बड़े गायकों ने अपनी आवाज दी.

प्रसिद्ध गीतों और फिल्मों का सफर
गीतेश के द्वारा लिखे गए गीतों में “निगाहें झुकी हैं कली अधखिली पर, पवन चाहता है अदाएं चुराना” , “इस आंगन में चांद को उतरे कितनी मुद्दत बीत गई” और “तेरी भी जवानी थी, संग मेरी भी कहानी थी” जैसे गीत काफी लोकप्रिय हुए. उन्होंने कई हिंदी और भोजपुरी फिल्मों के लिए गाने लिखे, जिनमें “जन्म-जन्म का प्यार,” “इक नया आगाज,” “गोरी तोरे नैना,” और “वतन के रास्ते” शामिल हैं।
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हास्य कवि सम्मेलनों में भी छाए
गीतेश सिर्फ एक गीतकार ही नहीं, बल्कि हास्य कवि भी हैं. उन्होंने देश और विदेश में कई हास्य कवि सम्मेलनों में भाग लिया है. 2025 में उन्हें चार देशों से निमंत्रण प्राप्त हुआ है, जिसमें वे अपनी कविताओं का पाठ करेंगे. इसके साथ ही, उन्होंने डीडी वन पर प्रसारित ‘ताजा बाजार गीत’ में भी अपने गीतों को प्रस्तुत किया.

समाज सेवा और साहित्य के प्रति समर्पण
गीतकार गीतेश अपनी लेखनी के साथ-साथ समाज सेवा में भी सक्रिय रहते हैं. वह बच्चों को समय-समय पर पुरस्कृत करते हैं और समाज के लोगों के साथ जुड़े रहते हैं. अपने परिवार के साथ सीतामढ़ी के डुमरा में किराए के मकान में रहते हुए उन्होंने अपने जीवन को साहित्य और समाज को समर्पित कर दिया है.

उनके चार बच्चे हैं, जिनमें से दो बेटियों की शादी हो चुकी है, और दोनों बेटे भी नौकरी कर रहे हैं. गीतेश का सपना है कि सीतामढ़ी को वह ऐसा स्थान बनाएं, जो मुंबई की चकाचौंध को भी फीका कर दे. आने वाले समय में, वे दुबई और श्रीलंका में अपने कविताओं का पाठ करेंगे, और खास बात यह है कि वे किसी से इसके लिए पैसा नहीं लेते हैं.

संघर्ष और समर्पण की मिसाल
गीतकार गीतेश की कहानी यह सिखाती है कि अगर दिल में जुनून और आंखों में सपने हों, तो मंजिलें खुद-ब-खुद आपके कदमों में आ जाती हैं. उनके संघर्ष और सफलता की यात्रा न केवल प्रेरणादायक है, बल्कि यह बताती है कि किस तरह लगन और मेहनत से एक सामान्य व्यक्ति भी असाधारण उपलब्धियां हासिल कर सकता है.

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