हज के दौरान क्या होती है पत्थर मारने की रस्म?



<p class="p1" style="text-align: justify;"><strong>Haj Yatra:</strong> हज यात्रा इन दिनों काफी चर्चाओं में है<span class="s1">. </span>इस धार्मिक यात्रा के लिए पूरी दुनिया से लाखों मुसलमान सऊदी अरब के मक्का शहर पहुंचते हैं<span class="s1">. </span>धार्मिक लिहाज से ये बेहद जरुरी मानी जाती है<span class="s1">. </span>इस दौरान एक रस्म भी अदा की जाती है जिसे शैतान को पत्थर मारना कहा जाता है<span class="s1">. </span>हज यात्री इसका पालन भी करते हैं<span class="s1">, </span>लेकिन कई लोगों को इसके पीछे की वजह नहीं पता होती<span class="s1">. </span>तो चलिए आज हम जानते हैं कि आखिर इस यात्रा के दौरान हज यात्री पत्थर किसे और क्यों मारते हैं<span class="s1">.</span></p>
<p class="p1" style="text-align: justify;"><strong>क्यों हज यात्री शैतान को मारते हैं पत्थर<span class="s1">?</span></strong></p>
<p class="p1" style="text-align: justify;">हज यात्रा के तीसरे दिन शैतान को पत्थर मारने की प्रक्रिया की जाती है<span class="s1">. </span>पांच दिनों की हज यात्रा में तीसरे दिन बकरीद भी होती है<span class="s1">. </span>बकरीद के दिन हज पर गए यात्री कुर्बानी से पहले मीना शहर जाते हैं और वहीं शैतान को तीन बार पत्थर मारते हैं<span class="s1">. </span>हज यात्री शैतान को जो पत्थर मारते हैं वो मीना शहर के तीन अलग<span class="s1">-</span>अलग जगहों पर बने तीन अलग अलग स्तंभों पर मारते हैं<span class="s1">. </span>इनमें पहला स्तंभ है जमराहे उकवा<span class="s1">, </span>दूसरा जमराहे वुस्ता और तीसरा स्तंभ जमराहे उला कहलाता है<span class="s1">. </span></p>
<p class="p1" style="text-align: justify;">इस्लाम में मान्यता है कि जिन तीन जगहों पर हज यात्री पत्थर मारते हैं<span class="s1">, </span>वहां पर उस समय हजरत इब्राहीम ने शैतान को पत्थर मारे थे<span class="s1">, </span>जब शैतान उन्हें उस वक्त रोकने की कोशिश कह रहा था जब वो अपने बेटे की कुर्बानी देने जा रहे होते हैं<span class="s1">. </span>हाजी इन्हीं खंभों को शैतान का प्रतीक मानते हैं और इन पर पत्थर मारते हैं<span class="s1">. </span>पहले दिन हाजी सिर्फ बड़े स्तंभ पर ही पत्थर मारते हैं<span class="s1">. </span>इसके बाद अगले दिनों में पत्थर मारने रस्म दो बार और होती है<span class="s1">.</span></p>
<p class="p1" style="text-align: justify;"><strong>हज यात्रियों को इन नियमों का करना होता है पालन</strong></p>
<p class="p1" style="text-align: justify;">हज यात्रा के दौरान यात्रियों को कई नियमों का सख्ती से पालन करना होता है<span class="s1">. </span>इस यात्रा में शामिल होने के लिए सबसे पहला नियम ये होता है कि यात्री का मुसलमान होना जरुरी है<span class="s1">. </span>वहीं दूसरा नियम ये होता है कि इस यात्रा के दौरान यात्रियों को एहराम पहनना होता है<span class="s1">. </span>इसके अलावा यदि महिलाएं इस यात्रा में शामिल हो रही हैं तो उनका सिर से पैर तक ढके रहना आनिवार्य है<span class="s1">. पुरुष हज यात्री सफेद एहराम पहनते हैं जो एक तरह का बिना सिला हुआ सफेद कपड़ा होता है तो वहीं महिला हज यात्रियों को सफेद या काला बुर्का पहनना होता है.</span></p>
<p class="p1" style="text-align: justify;"><strong style="font-family: -apple-system, BlinkMacSystemFont, ‘Segoe UI’, Roboto, Oxygen, Ubuntu, Cantarell, ‘Open Sans’, ‘Helvetica Neue’, sans-serif;">यह भी पढ़ें: <a title="50 Years Of Emergency: क्या प्रधानमंत्री के पास भी होती है इमरजेंसी लगाने की ताकत?" href="https://www.abplive.com/gk/50-years-of-emergency-does-the-prime-minister-also-have-the-power-to-impose-emergency-india-democracy-indira-gandhi-2722954" target="_self">50 Years Of Emergency: क्या प्रधानमंत्री के पास भी होती है इमरजेंसी लगाने की ताकत?</a></strong></p>



Source link

x