हरिद्वार में गंगा के अंदर मिला रेलवे ट्रेक, तो अब मसूरी में दिखा भूतहा टनल, 95 साल बाद पता चली सच्चाई


देहरादून. उत्तराखंड के हरिद्वार में गंगा नहर की सफाई के दौरान पानी के अंदर रेलवे ट्रैक दिखा था. जो इस समय चर्चाओं में है. ऐसे ही ट्रैक से मसूरी ट्रेन पहुंचाने की कोशिश साल 1929 में हुई थी, लेकिन कच्चे पहाड़ ने जहां कम्पनियों को बर्बाद कर दिया, वहीं इस रेल प्रोजेक्ट के नामोनिशान भी मिट चुके हैं. हरिद्वार में गंगा नहर की ये तस्वीरें चर्चाओं में हैं. जहां सफाई के दौरान मिले ट्रेन के ट्रैक ने सबको चौंका दिया. अब हरिद्वार के बाद इस टनल को देखिए, मिट्टी के ढेर से भरी इस टनल से मसूरी ट्रेन पहुंचाने की तैयारी थी. साल 1929 में अंग्रेजों ने इसी टनल के जरिए देहरादून से मसूरी ट्रेन पहुंचाने का सपना देखा. लेकिन कच्चे पहाड़ और कुछ मजदूरों के दब जाने से प्रोजेक्ट पूरा नहीं हो पाया. 1929 के इस रेल प्रोजेक्ट के तौर पर अब सिर्फ टनल का ये मुहाना ही दिखता है. इसे भूतहा टनल भी कहा जाता है.

देहरादून के ओल्ड राजपुर से मसूरी का पैदल रास्ता है, इस रास्ते से उस वक्त भी लोग व्यापार, कारोबार के आते जाते थे, तब यहां पर टोल की व्यवस्था की गई, जिसकी गवाही टोल का ये रेट चार्ट देता है. टोल बार से सटे घर में 80 साल के उदय सिंह और 40 साल के उनके बेटे सुरेश इसके बारे में बताते हैं. सुरेश सिंह भंडारी के मुताबिक, कुछ पटरियां यहां पर थी, जिन पर मेड इन इंग्लैंड लिखा था, ऐतिहासिक जगह है. अंग्रेज ट्रेन मसूरी ले जाना चाहते थे. उदय सिंह भंडारी के मुताबिक, पैदल रास्ते से नेपाली, गढ़वाली मसूरी जाते थे, 200 फीट तक पहाड़ खोद दिया, फिर मजदूर दब गए, देश आजाद हो गया और योजना खत्म हो गई.

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अंग्रेजों का प्लान शिमला और दार्जलिंग की तरह मसूरी ट्रेन पहुंचाने का था, हेरिटेज एक्सपर्ट लोकेश ओहरी के मुताबिक, इस प्रोजेक्ट को दो कंपनियों ने किया. पहली कंपनी के 35 लाख रुपए लगे और दिवालिया हो गई. तो दूसरी कंपनी भी काम पूरा नहीं कर पाई. वहीं नाभा और कपूरथला रियासत के राजाओं ने इस पर पैसा लगाया. कोशिश बहुत हुई, लेकिन कामयाबी नहीं मिली और फिर 1947 में देश की आजादी के साथ मसूरी रेल प्रोजेक्ट पूरी तरह ठप हो गया, और आजादी के 75 साल बाद, ट्रेन ट्रैक के नाम पर, टनल का सिर्फ ये हिस्सा बचा है, जिसे लोग अब भूतहा टनल भी कहते हैं.

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