हादसे ने छीन ली आंखें, फिर भी नहीं मानी हार, हिम्मत की रोशनी से रौशन कर रहे हैं बच्चों की जिंदगी


अमेठी: अमेठी जिले के चंद्रशेखर शुक्ला किसी योद्धा से कम नहीं हैं. दोनों आंखे खोने के बाद भी उन्होंने कभी हार नहीं मानी. अपने सारी परेशानियों को ही ताकत बना लिया. आज वो कई सारे बच्चों की जिंदगी में उजाला ला रहे हैं. साल 2003 से वो स्कूल चला रहे हैं, जहां बच्चों को निशुल्क पढ़ाई ऑफर की जाती है.

हादसे में चली गईं दोनों आंखें
चंद्रशेखर शुक्ला अमेठी जिले की तिलोई तहसील के फूला गांव के निवासी हैं. 2003 से वो ‘जीवन पथ दिव्यांग विद्यालय’ चला रहे हैं. जहां वो दिव्यांग बच्चों के जीवन में शिक्षा की रोशनी फैला रहे हैं. 2003 में एक हादसे के कारण उनकी दोनों आंखें चली गईं. काफी इलाज के बाद भी कोई सुधार नहीं हुआ, तो उन्होंने हार मानने के बजाय दिव्यांगता से जूझने की ठान ली.

बच्चों की जिंदगी में ला रहे हैं उजाला
उन्होंने निशुल्क विद्यालय खोलकर सैकड़ों बच्चों के जीवन का अंधकार दूर कर दिया है. उनके विद्यालय में शुरुआती कक्षा से लेकर स्नातक और परास्नातक तक की मुफ्त पढ़ाई कराई जाती है. यहां पढ़ाई के साथ बच्चों को गीत-संगीत और वाद्य यंत्र बजाना भी सिखाया जाता है, जिससे बच्चे अलग-अलग क्षेत्रों के स्किल्स सीख पा रहे हैं.

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अंतिम सांस तक जारी रखेंगे ये काम
लोकल 18 से खास बातचीत में चंद्रशेखर शुक्ला ने बताया, ‘जब मेरी आंखें चली गईं, तब पता लगा कि जीवन में यह बहुत बड़ा संघर्ष का समय है. महसूस किया कि अगर इस समय हार मान ली, तो पूरी जिंदगी पछताना पड़ेगा. इसलिए हार मानने के बजाय बच्चों को पढ़ाने के लिए विद्यालय खोलने का निर्णय लिया. शुरुआत में थोड़ी कठिनाइयां आईं, लेकिन आसपास के लोगों का सहयोग लेकर अपने सपने को साकार किया. आज मेरे विद्यालय के बच्चे हर क्षेत्र में स्किलड हैं.जब तक मेरी सांसें चलेंगी, तब तक मैं इस कार्य को करता रहूंगा.’

कभी नहीं हारना चाहिए हौसला
चंद्रशेखर शुक्ला का मानना है कि जीवन में कितनी भी मुश्किलें आए. परेशानी आएं. लेकिन लोगों को कभी भी हौसला नहीं हारना चाहिए. मेहनत जारी रखनी चाहिए. एक न एक दिन सफलता हासिल जरूर होती है.

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