अद्भुत! अंटार्कटिका से ऑस्ट्रेलिया पहुंच गया पेंगुइन, 3500 किलोमीटर तक तैर कर पहुंचा
सिडनी. जलवायु में हो रहा बदलाव किस तरह से जीवों पर असर डाल रहा है, इसका एक नमूना आस्ट्रेलिया में देखने को मिला है. सुदूर अंटार्कटिक के बर्फीले इलाकों में पाए जाने वाले पेंगुइन को पहली बार वहां से करीब 3500 किमी. दूर आस्ट्रेलिया के एक समुद्र तट पर देखा गया है. इतने लंबे सफर में वह पेंगुइन कुपोषित हो गया था. इस पेंगुइन को पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया के एक समुद्री तट पर पाया गया. ऑस्ट्रेलिया के जैव विविधता और संरक्षण विभाग के एक बयान के मुताबिक, यह अब एक ट्रेंड और रजिस्टर्ड लोकल वन्यजीव देखभालकर्ता की देखभाल में है.
इस पेंगुइन को फिर से इसके रहने की जगह पर भेजने में कुछ हफ्तों का समय लगने की उम्मीद है. आस्ट्रेलिया के जिस तट पर पेंगुइन मिला है वह अंटार्कटिका से 3,540 किलोमीटर से अधिक उत्तर में है. जिससे पता चलता है कि पेंगुइन आस्ट्रेलिया पहुंचने के लिए बहुत आगे तक तैर गया था. पश्चिमी ऑस्ट्रेलिया विश्वविद्यालय के एक साइंटिस्ट के मुताबिक पेंगुइन अंटार्कटिका से उत्तर की ओर एक धारा के सहारे तैर कर पहुंच सकता है. पेंगुइन वैसे भी कुछ धाराओं के सहारे करते हैं. जहां उन्हें बहुत सारे अलग-अलग तरह के भोजन मिलते हैं.
इस साइंटिस्ट का मानना है कि शायद वे धाराएं ऑस्ट्रेलिया की ओर सामान्य से थोड़ी दूर उत्तर की ओर चली गई हैं. जबकि एक स्थानीय सर्फर अपना अनुभव शेयर किया और उस पल को याद करते हुए जब उन्होंने पेंगुइन को देखा. सर्फर ने कहा कि यह बहुत बड़ा था, यह समुद्री पक्षी से कहीं ज़्यादा बड़ा था और हम सोच रहे थे कि यह पानी से बाहर आने वाली चीज क्या है? इसकी पूंछ बत्तख की तरह बाहर निकली हुई थी. यह लहरों में खड़ा हो गया और सीधे हमारे पास आ गया. यह एक किंग पेंगुइन शायद लगभग एक मीटर लंबा था, और वह बिल्कुल भी शर्मीला नहीं था.
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सर्फर ने कहा कि उसने अपने पेट पर फिसलने की कोशिश की, उसे लगा कि यह बर्फ है, और बस रेत में अपना चेहरा टिका दिया और खड़ा हो गया और सारी रेत को हिला दिया. एम्परर पेंगुइन सभी पेंगुइन प्रजातियों में सबसे बड़े और सबसे भारी होते हैं, जिनकी लंबाई 45 इंच तक होती है और उनका वजन 88 पाउंड तक होता है. वे केवल अंटार्कटिका में पाए जाते हैं. जहां वे प्रजनन और सुरक्षा के लिए समुद्री बर्फ पर निर्भर रहते हैं. हालांकि, उन्हें जलवायु परिवर्तन से बढ़ते खतरों का सामना करना पड़ रहा है क्योंकि बढ़ते तापमान ने उनके बर्फीले आवासों को खतरे में डाल दिया है.
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FIRST PUBLISHED : November 7, 2024, 21:19 IST