अमेरिका को जूते की नोंक पर रखते हैं व्लादिमीर पुतिन, एक दांव से बता दिया असली बाजीगर कौन?


यूक्रेन-रूस जंग और मध्य पूर्व में जारी संघर्ष के कारण इस वक्त पूरी दुनिया दो गुटों में बंटी हुई है. मध्य-पूर्व और यूक्रेन जंग में अब तक दसियों हजार लोग मारे जा चुके हैं. इस वक्त दुनिया सेकेंड वर्ल्ड वार के बाद की सबसे बुरी स्थिति में है. एक तरफ अमेरिका के नेतृत्व में करीब-करीब सभी पश्चिमी देश रूस के खिलाफ हैं. वे यूक्रेन को हथियारों और पैसों… हर चीज से मदद दे रहे हैं. इसके साथ ही वे दुनिया के अन्य देशों पर रूस से दूरी बनाने के लिए दबाव बनाते हैं. उन्हें प्रतिबंधित करने की धमकी देते हैं. भारत जैसे देशों पर भी दबाव बनाने की कोशिश की गई. ऐसे में जानकार संभावना जताने लगे हैं कि अब रूस का वो रुतबा नहीं रहा जो कभी हुआ करता था, लेकिन रूसी राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन ने अपनी एक चाल से पश्चिमी देशों की पूरी हेकड़ी निकाल दी है.

दरअसल, रूस में राष्ट्रपति पुतिन मंगलवार को ब्रिक्स देशों के शासनाध्यक्षों की बैठक की मेजबानी कर रहे हैं. इसमें पुतिन के अलावा चीनी राष्ट्रपति शी जिनपिंग, भारत के पीएम नरेंद्र मोदी सहित दुनिया के करीब 20 देशों के शासनाध्यक्ष शामिल हो रहे हैं. इसमें ईरानी राष्ट्रपति मसूद पजेस्कियन भी शामिल हैं. इस बैठक की मेजबानी वही पुतिन कर रहे हैं जिनके खिलाफ इंटरनेशनल क्रिमिनल कोर्ट ने अरेस्ट वारंट जारी कर रखा है. ब्रिक्स की यह बैठक रूस में हाल के वर्षों में होने वाला एक सबसे बड़ा जमावड़ा है.

पश्चिम की कोशिश विफल
इस जमावड़े को लेकर बीबीसी ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है. बैठक को लेकर कंसल्टेंसी फर्म मैक्रो-एडवायजरी के क्रिस वीफर कहते हैं कि इसका स्पष्ट संदेश है कि रूस को अलग-थलग करने की कोशिश विफल हो गई है. इस बैठक के जरिए रूस यह संदेश देना चाहता है कि पश्चिमी प्रतिबंधों की वह कोई परवाह नहीं करता. बैठक में भाग लेने वाले देश रूस के दोस्त हैं और वे आने वाले समय में रूस के साझेदार बनेंगे.

गौरतलब है कि ब्रिक्स में ब्राजील, रूस, भारत, चीन और दक्षिण अफ्रीका संस्थापक सदस्य हैं. इसके अलावा इसमें मिस्र, इथियोपिया, ईरान और संयुक्त अरब अमीरात को नया सदस्य बनाया गया है. सऊदी अरब को भी इस बैठक में आमंत्रित किया गया है. ब्रिक्स देशों में दुनिया की 45 फीसदी आबादी रहती है. इसके साथ ही ये दुनिया के 22 फीसदी अर्थव्यवस्था को नियंत्रित करते हैं. इनकी कुल इकनॉमी 28.5 ट्रिलियन डॉलर की है.

रूस की योजना
रूसी अधिकारियों का कहना है कि इस समूह में 30 अन्य देश भी शामिल होना चाहते हैं. इनमें से कुछ प्रतिनिधि मौजूदा बैठक में भी शामिल हो रहे हैं. रूस के एजेंडे में इस बैठक के जरिए पश्चिमी प्रतिबंधों को कमजोर करने की रणनीति को आगे बढ़ाना है. इसमें अमेरिकी डॉलर की बादशाहत को कमजोर करने के लिए विकल्प ढूढना है.

वीफर बताते हैं कि पश्चिमी प्रतिबंधों की वजह से रूस कई समस्याओं का सामना कर रहा है. डॉलर की वजह से वैश्विक कारोबार पर अमेरिका का गहरा प्रभाव है. रूस अमेरिका के इसी बादशाहत को तोड़ना चाहता है. वह चाहता है कि ब्रिक्स के देश वैकल्पिक व्यापार का कोई जरिया निकाले, जिसमें डॉलर, यूरो या जी-7 की कोई और करेंसी न हो.

आसान नहीं रास्ता
हालांकि यह इतना आसान भी नहीं है. गोल्डमैन सैक्स के मुख्य अर्थशास्त्री जिम ओ’नेल कहते हैं कि चीन और भारत इस पर कभी सहमत नहीं होंगे. अगर ये दोनों मुल्क ब्रिक्स के लिए गंभीर होते तो आज इस संगठन का व्यापक प्रभाव देखा जाता. जानकारों का कहना है कि ब्रिक्स की स्थापना का मुख्य मकसद जी-7 यानी कनाडा, फ्रांस, जर्मनी, इटली, जापान, इंग्लैंड और अमेरिका के प्रभाव को काउंटर करना था.

लेकिन, इस समूह के सदस्य देशों चीन और भारत के बीच ही नहीं बल्कि इसके नए सदस्य मिस्र और इथियोपिया के बीच भी तनावपूर्व रिश्ते हैं. इसी तरह ईरान और सऊदी अरब एक दूसरे को पसंद नहीं करते. ऐसे में फिलहाल के जी-7 के समानांतर इस संगठन की कल्पना करना बेईमानी होगी.

Tags: BRICS Summit, PM Modi, Vladimir Putin, Xi jinping



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