अलवर में यहां मनाई जाती थीं सबसे बड़ी होली, राजपरिवार भी होता था शामिल, आज भी चली आ रही यह प्रथा


 पीयूष पाठक/अलवर. होली के त्यौहार का लोगों में विशेष क्रेज रहता है. रंगों का त्योहार होली लोगों का पसंदीदा त्योहार है. पहले के जमाने में होली का पर्व आने से पहले ही लोग इसकी तैयारी शुरू कर देते थे. अलवर शहर में भी राजशाही जमाने से होली मनाई जाती थी. लेकिन समय के साथ-साथ बदलाव भी होना स्वाभाविक है. अलवर शहर में आज भी उस जगह पर सबसे बड़ी होली मनाई जाती है जहां कभी राजशाही परिवार के समय में होली मनाई जाती थी. खास बात यह है कि इस होली में राज परिवार की महिलाएं भी शामिल होती थी और पूजन करती थी. यहां सबसे बड़ी होली मनाई जाती थी, इसी के चलते इस मोहल्ले का नाम होली ऊपर रखा गया. अलवर शहर के इस मोहल्ले की होली हमेशा से खास रही है.

स्थानीय निवासी ने बताया कि राज्यशाही जमाने में जब यहां होली मनाती थी तभी से यहां की होली मशहूर है होली का डंडा लगने से पहले ही शहर वासियों को इसका इंतजार रहता था कि कितना बड़ा डंडा इस बार यहां पर लगाया जाएगा. पहले के समय में होली का दंड एवं उसके आसपास झाड़ियां आदि लगाने के दौरान लोगों में हंसी, ठिटोली, मस्ती हुआ करती थी. स्थानीय निवासी ने बताया कि उन्होंने महाराजा तेज सिंह की समय की होली अपनी आंखों से देखी है.

होली मंगलती थी तो लगाया जाता था सुरक्षा के लिए जाप्ता
स्थानीय निवासी ने बताया कि होली ऊपर राजमहल के पास है, इसके चलते यहां पर राज परिवार की महिलाएं भी होली का पूजन करने के लिए आती थी. जब यहां पर शाम के समय होली मंगलती थी तब होली को देखने के लिए चौराहे के हर तरफ लंबी कतार लग जाती थी. उस समय करीब 1000 से ज्यादा लोग यहां पर इकट्ठा होते थे. इसलिए पुलिस प्रशासन की ओर से यहां सुरक्षा व्यवस्था के भी विशेष इंतजाम किए जाते थे.

आज भी उसी चौक पर जलती है होली
होली के  ऊपर  स्थानीय निवासी गौरव शर्मा ने बताया कि पहले के समय से ही यहां पर होली का सबसे बड़ा डांडा लगाने की परंपरा है. आज भी यहां पर पूरे मोहल्ले के लोग मिलकर होली पूरे सद्भाव से मनाते हैं. लोग घर-घर जाकर होली के डाडे के चारों तरफ झाड़,लड़कियां, उपले आदि लगाने के लिए सामान इकट्ठा करते हैं. हालांकि आज कल यह समान बाजारों में भी उपलब्ध है. लेकिन पहले की तरह आज भी घरों से इन सामानों को लाकर होली मंगलाई जाती है. इस मोहल्ले के लोग आज भी पुरानी परंपरा को निभाते है. स्थानीय लोगों द्वारा आज भी उसी चौक पर होली आज भी उतनी ही लंबी मनाई जाती है. जिस तरह राज परिवार के समय मनाई जाती थी.

होली की आज की लपेट देखकर करते थे लोग पूजा
स्थानीय निवासी गौरव शर्मा ने बताया कि जब होली मंगल की थी तो इस होली की लपटे इतनी ऊंची होती थी कि राजा के महल में वह कई अन्य परिवार भी होली के लपटों को देखकर ही अपने घरों से पूजा कर लेते थे बता दें आज भी अलवर शहर में 3000 से ज्यादा जगह पर होली मनाई जाती है.

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