आधुनकिता के आने से पहले स्त्रियों ने अपना सशक्तिकरण खुद किया- अशोक वाजपेयी


हिंदी के प्रसिद्ध कवि एवम् संस्कृतिकर्मी अशोक वाजपेयी ने कहा कि यह माना जाता है कि आधुनिकता ने स्त्रियों का सशक्तिकरण किया लेकिन भारत में उससे पहले ही उनका सशक्तिकरण हो गया था. वाजपेयी ने इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में साहित्य अकादमी से सम्मानित अंग्रेजी की प्रसिद्ध कवयित्री अरुंधति सुब्रमण्यम द्वारा संपादित पुस्तक वाइल्ड वुमन (wild women) के लोकार्पण के अवसर पर ये बात कही. समारोह में पूर्व राजदूत तथा पूर्व सांसद पवन के. वर्मा, प्रसिद्ध कवयित्री अनामिका और अलका पांडेय ने पुस्तक का विमोचन किया.

वाइल्ड वुमन (wild women) पुस्तक में प्राचीन काल से लेकर 21वीं सदी की इंदिरा देवी तक की 56 आध्यत्मिक रहस्यवादी कवयित्रियों की कविताएं शामिल हैं. इन कविताओं का अंग्रेजी अनुवाद देश के जाने-माने अनुवादकों ने किए हैं. पुस्तक में वैदिक काल की आदि कवयित्री वाक (जिसे वाग्देवी भी कहा जाता है) थेरी गाथा की बौद्धकालीन भिक्षुणी कवयित्री के अलावा सातवीं सदी की अंडाल, अक्का महादेवी, कश्मीरी कवयित्री लल्लेश्वरी, हब्बा खातून, मीरा बाई, 14वीं सदी की मराठी दलित कवयित्री सोयराबाई, मुस्लिम कवयित्री ताज बीवी और जीरा बाई (मराठी संत कवि नामदेव की नौकरानी) भी शामिल हैं.

इस मौके पर अशोक वाजपेयी ने कहा कि चार कारणों से यह किताब महत्वपूर्ण है. पहला तो यह कि इनमें से कई औपनिवेशिक काल के पहले की ये कवयित्रियां जो भुला दी गई हैं. कुछ औपनिवेशिक काल की भी हैं. दूसरा यह कि अब तक यह कहा जाता है कि आधुनिकता के कारण स्त्रियों का सशक्तिकरण हुआ लेकिन इन स्त्रियों ने अपनी सृजनात्मकता बौद्धिकता और प्रश्नाकुलता से खुद अपना सशक्तिकरण किया. उन्होंने कहा कि इन कवयित्रियों में धार्मिकता और पाखंड नहीं बल्कि तार्किकता है और आध्यात्मिकता है.

पवन वर्मा ने प्राचीन काल से लेकर आधुनिक काल तक भारतीय स्त्री कविता का परिदृश्य सामने रखा और कहा कि भारतीय चिंतन के विकास में इनका योगदान है. ये निडर स्त्रियां हैं जिन्होंने पितृसत्तात्मक संरचना का विरोध किया. जब धर्म का संस्थानीकरण हुआ और मनु स्मृति के रूप में पुरुष सत्त्ता का वर्चस्व स्थापित हुआ तो इन वाइल्ड स्त्रियों ने विरोध किया, उसे चुनौती दी. ये यौनिकता और मांसलता की दृष्टि से वाइल्ड नहीं हैं जो इस शब्द के अर्थ के पीछे की दृष्टि है, बल्कि ये साहसी स्त्रियां जो तर्क करती हैं.

अरुंधति सुब्रमण्यम ने बताया कि वह पहले 20 कवयित्रियों को लेकर संचयन निकाल रही थीं फिर इनकी संख्या बढ़ते-बढ़ते 56 हो गई. फिर किताब की एक सीमा थी इसलिए कई वंचित रह गईं. उन्होंने तमिल. कन्नड, गुजराती, मराठी, उड़िया, कश्मीरी आदि भाषाओं में लिखने वाली कुछ प्रमुख कवयित्रियों की विशिष्टता के बारे में भी बताया.

वरिष्ठ कवयित्री अनामिका ने कहा कि ये कवयित्रियां खुद को assert करती हैं. उन्होंने मीरा का उदाहरण देते हुए कहा कि जब मीरा ने कहा कि ‘मेरे तो गिरिधर गोपाल’ तो उसके पीछे तत्कालीन पुरुष सत्त्ता का नकार था. और जब उन्होंने कहा कि ‘पग घुँघरू बांध मीरा नाची रे’ में एक स्त्री का assertion है. उन्होंने घुंघरू शब्द इस्तेमाल किया नूपुर नहीं क्योंकि घुंघरू शब्द में जोर है, पुरुष सत्ता पर चोट है.

Tags: Hindi Literature, New books



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