इंग्लिश प्रोफेसर ने खोजे 25,000 भोजपुरी लोक गीत, ‘गानों’ को अश्लील कहने वालों को भी दी सीख


गाजीपुर: अंग्रेजी के प्रोफेसर रामनारायण तिवारी को सुनेंगे तो आप यही कहेंगे कि या तो ये प्रोफेसर इतने साफ दिल के हैं या फिर ये कहेंगे कि प्रोफेसर साहब को जब भोजपुरी से इतना ही लगाव है तो फिर अंग्रेजी के प्रोफेसर क्यों बने. इन बातों से हटकर जो चीज प्रोफेसर रामनारायण को चर्चा में लाती है वो ये कि अंग्रेजी के प्रोफेसर अपने भोजपुरी लोकगीतों पर किए गए शोध के लिए विशेष रूप से जाने जाते हैं.

आपको बता दें कि इस दिशा उनका सफर तब शुरू हुआ जब वह अमेरिका में इंडियाना यूनिवर्सिटी में डॉक्टर आर्चर सिंह से मिले और हरिशंकर उपाध्याय से प्रभावित हुए. उनके मार्गदर्शन में तिवारी ने भोजपुरी लोकगीतों की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संरक्षित करने का बीड़ा उठाया और पूर्वांचल और बिहार में करीब 10,000 से 25,000 तक लोकगीतों का संग्रह किया.

प्रेरणा और यात्रा
लोकगीतों की खोज की दिशा में लोकल मीडिया से बात करते हुए तिवारी ने बताया कि उन्होंने पूर्वांचल में पैदल यात्रा करके करीब 10,000 लोकगीत खोजे. उनके इस अद्भुत कार्य को 1997 में अंतरराष्ट्रीय पाठ्यक्रम जीवनवृत्त (International Curriculum Vitae) में शामिल किया गया जिसमें दुनिया के शीर्ष 2,000 शोधकर्ताओं का नाम था. इस पुस्तक की प्रस्तावना पूर्व प्रधानमंत्री स्वर्गीय अटल बिहारी वाजपेई द्वारा लिखी गई थी.

भोजपुरी लोकगीतों का महत्व परंपरा और आधुनिकता
रामनारायण तिवारी का मानना है कि भोजपुरी लोकगीत भावनाओं, मौसम और संस्कृति का प्रतिबिंब होते हैं. उदाहरण के लिए वह बताते हैं कि आजकल छठ के गीत व्यावसायिक हो गए हैं और उनमें वह भावनाएं नहीं हैं जो पहले हुआ करती थीं. वह कहते हैं, “मौसम के अनुसार गीत बदलते थे और छठ के गीत श्रद्धा से गाए जाते थे न कि आज की तरह ग्लैमर से भरे.”

गाजीपुर के पीजी कॉलेज में शुरुआती दौर में अंग्रेजी की पढ़ाई नहीं होती थी. कॉलेज के शुरुआती दिनों में अंग्रेजी के लिए कोई प्रोफेसर नहीं था. मांग के अनुसार कोई अच्छा लेखक अगर इस कॉलेज में आ जाता तो कॉलेज को अंग्रेजी की पढ़ाई के लिए मान्यता मिल जाती. ऐसे में पीजी कॉलेज गाजीपुर और रेवतीपुर में इन्होंने ही अंग्रेजी की पढ़ाई की मान्यता दिलवाई थी.

लोकगीत के बोल अलग हैं लेकिन संस्कार एक हैं
रामनारायण तिवारी अंग्रेजी के प्रोफेसर थे लेकिन भोजपुरी गीतों के प्रति उनका जुनून उनकी मातृभाषा से उपजा है. उनका मानना है कि लोकगीतों की भावनाएं संसार भर में एक समान होती हैं. केवल राज्य और भाषा के अनुसार उनकी धुन और बोल बदलते हैं. वह इस धारणा का विरोध करते हैं कि भोजपुरी गीत अश्लील होते हैं. तिवारी का कहना है, “भोजपुरी में गालियां भी एक गीत हैं और संस्कार का हिस्सा हैं. हल्दी के गीतों की भी अपनी एक सांस्कृतिक अहमियत है”

भोजपुरी संस्कृति की रक्षा से जुड़ी चुनौतियां और मान्यता
अपने संग्रह के बड़े हिस्से को रद्दी समझकर जला दिए जाने के बावजूद तिवारी के पास अभी भी 2,000-3,000 लोकगीतों का संग्रह मौजूद है. उनके इस अमूल्य योगदान को मान्यता देते हुए 1993 में उन्हें अखिल भारतीय लोक साहित्य शोध संस्थान द्वारा साहित्य शोधी पुरस्कार से सम्मानित किया गया. वह कहते हैं, “भोजपुरी गीत तब तक अश्लील नहीं हो सकते जब तक वे किसी को गलत दिशा में प्रेरित न करें. ये गीत हमारे समाज की जड़ों से जुड़े हुए हैं.”

लोकगीतों की धरोहर को संरक्षित करने की अपील
रामनारायण तिवारी का काम भोजपुरी लोकगीतों की शक्ति और उनकी संस्कृति के जीवंत रूप का प्रमाण है. वह समाज से आग्रह करते हैं कि इस सांस्कृतिक धरोहर को संजोएं और संरक्षित करें ताकि भोजपुरी गीतों की असली आत्मा आधुनिक युग में भी जीवित रह सके.

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