इस गांव में आज भी नहीं बिकता अंडा, मांस और मछली, ग्रामीण निभा रहे वचन
सनन्दन उपाध्याय/बलिया: आज के जमाने में अंडा, मांस, मछली का सेवन आम बात है. जिन घरों में प्रचलन नहीं, वहां के बच्चे या युवा पीढ़ि बाजार या रेस्टोरेंट में जाकर इसका सेवन करती है. लेकिन बलिया में एक ऐसा गांव है, जहां के लोग मांसाहार से कोसों दूर हैं. यहां मांस, मछली तो दूर अंडा भी नहीं बिकता. जिले के चितबड़ागांव में स्थित रामशाला का असर आज भी बरकरार है.
इतिहासकार डॉ. शिवकुमार सिंह कौशिकेय का कहना है कि प्राचीन काल की बात है. भीखा साहब और गुलाल साहब का यह क्षेत्र तपोस्थली रही है. इन महान संतों को ग्रामवासी भगवान के रूप में मानते थे. इन लोगों का आदेश था कि यहां अंडा, मांस और मछली नहीं बिकेगी, नहीं तो विनाश हो जाएगा. उनके आदेश का असर आज भी बरकरार है. लोगों ने महान संतों का अनुयाई बनकर न सिर्फ चलने का संकल्प लिया, बल्कि उनकी शुरू हुई परंपरा यहां अक्षुण बन गई.
संतों के आदेश का लोग आज भी करते हैं पालन
इतिहासकार के मुताबिक, संतों ने एक दिन चरवाहों से कहा कि अपने गांव के किसी सम्मानित व्यक्ति को बुलाओ. चरवाहे जा कर दुनिया राय को बुला कर लाए. उनसे दोनों संतों ने कहा कि आप लोग हमारी बात मानो, आज से इस गांव में मांस, मछली और अंडा बाजार में बेचने से मना कर दो, नहीं तो आप लोगों का विनाश हो जाएगा.
जब मुस्लिम परिवारों ने उठाया प्रश्न
फिर मुस्लिम परिवारों ने प्रश्न उठाया कि हमारे यहां मेहमान आते हैं तो हम इसी से उनकी सेवा करते हैं. तब संतों ने बताया कि आप बाहर से खरीद कर अपने घर में बना सकते हो, लेकिन इस क्षेत्र में मत बेचो. उनकी बात को गांववालों ने मान लिया. तब से लेकर आज तक इस गांव में कोई भी व्यक्ति बाजार में मांस, मछली और अंडा नहीं बेचता है.
मांस, मछली व अंडा नहीं बिकता
गांव के बुजुर्ग मंगला प्रसाद पटेल ने कहा कि भीखा साहेब और गुलाब साहेब के वचन को लोग भगवान का वाक्या मानते थे. उनके नाम पर रामशाला बनी. गुरु गद्दी का यह फरमान चितबड़ा गांव में विशेष रूप से क्षत्रिय वंश यदि मांस, अंडा व मछली खाता है या घर में बनाता है तो उसका विनाश तय है.
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FIRST PUBLISHED : September 09, 2023, 18:22 IST