इस पक्षी का घोंसला देखकर आंखों पर नहीं होगा यकीन, बनाता है पूरा हैंगिंग रिजॉर्ट, ऐसे ही नहीं कहा जाता पक्षियों का इंजीनियर


मनीष पुरी/भरतपुर: पक्षी और जानवर मौसम और सीजन को देखते हुए अपने घर और घोंसले बनाते हैं.  अब बया या वीवर बर्ड के नाम जाना जाने वाला पक्षी मौसम के अनुसार अपने घोसले बनाना शुरू कर दिया है. यह पक्षी अपने खूबसूरत घोसले बनाने के लिए जाना जाता है. यह पक्षी घास-फूस और तिनकों से अपना घोसला बनाते हैं. इस पक्षी को ग्रामीण इलाकों में आषाढ़ की चिरैया भी कहा जाता है.

बया को कहा जाता है पक्षियों का इंजीनियर
यह पक्षी अधिकतर अपने घोसले ऊंची जगहों और खजूर के पेड़ों पर बनाते हैं. बता दें कि इस पक्षी के घोंसले इतने सुंदर होते हैं कि इसे पक्षियों का इंजीनियर भी कहा जाता है. यह बया पक्षी सब से पहले अपने रहने के लिये एक वातानुकूलित और सुरक्षित घोंसला बनाता है. इसके घोंसले को हैंगिंग रिजॉर्ट भी कहते हैं. इसके घोंसले को जब आप देखेंगे तो यकीन नहीं होगा कि किसी चिड़िया का बनाया हुआ घोसला है. आपको यही लगेगा कि ये किसी इंसान या मशीन द्वारा बनाया गया है.

आषाढ़ में बनाते हैं घोंसला
इन दिनों राजस्थान के भरतपुर के विभिन्न इलाकों में यह पक्षी खजूर, पीपल और झाड़ियां आदि जगहों पर देखने को मिल जाता है. यह बया पक्षी बरसात के टाइम पर अपने लिए घोंसला बनाने में लगे हैं. यह अपने घोंसले को आषाढ़ माह में नए स्तर से करते हैं.

घोंसले में ये होता है खास
इनके प्रजनन का काल मई लेकर दिसम्बर तक होता है. यह अपने घोंसले का निर्माण खास तरीके से करते हैं. यह लंबी घास, कूंचे की पत्तियां या खजूर की पत्तियों से घोंसला बनाते हैं. खास बात यह है कि ये अपने घोंसेले के भीतरी हिस्से में गीली मिट्टी का लेप भी करते हैं. ऐसा करने से तेज हवाओं से भी घोंसले को कोई नुकसान नहीं होता.

संरक्षित किया गया है यह पक्षी
वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की चौथी अनुसूची में बया पक्षी को संरक्षित किया गया है. इस नियम के तहत बया पक्षी को कैद में रखने और उसके शिकार पर पाबंदी है. इस पक्षी की संख्या घटने का बड़ा कारण बढ़ता शहरीकरण और वृक्षों का विनाश है. दूसरी वजह घोंसला बनाने में काम आने वाले सरकंडे, मूंज और खजूर के वृक्षों की घटती संख्या भी है.

हल्के पीले रंग का बया पक्षी अपने घोंसले इस तरह से तैयार करती है जिससे कि वह अपने अंडों और बच्चों को शत्रुओं और मौसमी प्रभाव से बचा सके. घोसलों में तिनकों की एक महीन परत सुरक्षा के लिए होती है. ऐसा कहा जाता है कि जब एक पक्षी भोजन या अन्य काम के लिए बाहर जाता है तो दूसरा पक्षी वहीं पास बैठकर चौकीदार की तरह घर की सुरक्षा की जिम्मेदारी संभालता है. खतरे का आभास होते ही यह चीं-चीं की आवाज करके सभी पक्षियों को सचेत कर देता है.

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