एक जून से अब हफ्ते में छह दिन राष्ट्रपति भवन की कर सकेंगे सैर, राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की पहल – Rashtrapati Bhavan people visit six days a week change From June 1 President Draupadi Murmu initiative ntc


राष्ट्रपति भवन अब आम जनता के लिए हफ्ते में 6 दिन खुला रहेगा. यह व्यवस्था एक जून से लागू होगी. राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू की पहल पर यह बदलाव किया गया है. जानकारी के मुताबिक सार्वजनिक और राजपत्रित अवकाश को छोड़कर एक जून से लोग मंगलवार से रविवार तक राष्ट्रपति भवन जा सकेंगे. इसके अलावा लोग अब एक घंटा और भवन में घूम सकेगा. 

लोग अब सुबह साढ़े 9 बजे से शाम साढ़े चार बजे के बीच सात स्लॉट में राष्ट्रपति भवन में घूम सकेंगे. सोमवार को लोग राष्ट्रपति भवन और म्यूजियम के गाइडेड टूर का आनंद नहीं उठा पाएंगे. अभी तक सोमवार और मंगलवार को राष्ट्रपति भवन के दरवाजे इस गाइडेड टूर के लिए बंद रहते थे. पहले बुधवार से रविवार तक सुबह दस बजे से शाम चार बजे तक पांच टाइम स्लॉट में लोग राष्ट्रपति भवन घूमने जा सकते थे.

राष्ट्रपति भवन म्यूजियम कॉम्प्लेक्स में भी आगंतुकों के लिए मंगलवार से रविवार तक खुला रहता है. लोग हर शनिवार को सुबह 8 बजे से 9 बजे तक राष्ट्रपति भवन के फोरकोर्ट में चेंज ऑफ गार्ड समारोह देख सकते हैं.

इन सभी सुविधाओं के लिए राष्ट्रपति भवन की वेब साइट (http://rashtrapatisachivalaya.gov.in/rbtour/) के जरिए ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कर टाइम स्लॉट बुक कराए जा सकेंगे. राष्ट्रपति भवन की सैर के लिए एडवांस ऑनलाइन रजिस्ट्रेशन कराना होगा. यह रजिस्ट्रेशन मुफ्त है. 

राष्ट्रपति भवन की सैर

ऐसे करें रजिस्ट्रेशन

– वेबसाइट के होमपेज पर दाईं ओर टॉप लाइन में Plan Your Visit टैब पर क्लिक करें.

– क्लिक करने पर आपके सामने कैलेंडर खुलेगा. 

– अब दाईं ओर Book Now की विंडो दिखाई देगी. 

– विंडो में आप अपने हिसाब से टाइम स्लॉट में बुकिंग करा सकते हैं.

– रजिस्ट्रेशन करवाने के बाद जब आप राष्ट्रपति भवन जाएंगे, वहां रजिस्ट्रेशन नंबर के साथ आपको अपना फोटो पहचान पत्र भी दिखाना होगा.

राष्ट्रपति भवन की सैर

ये हैं राष्ट्रपति भवन के आकर्षण का केंद्र

ब्रिटिश वायराय का था आवास: राष्ट्रपति भवन पहले ब्रिटिश वायसराय का सरकारी आवास था. इसका निर्माण उस वक्त किया गया, जब साल 1911 में तय हुआ कि भारत की राजधानी को कलकत्ता से दिल्ली शिफ्ट किया जाएगा. भवन के निर्माण में 17 साल लग गए थे. 26 जनवरी 1950 को इसे दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र की स्थाई संस्था के रूप में बदल दिया गया. 

बने हैं 340 कमरे: राष्ट्रपति भवन चार मंजिला है और इसमें 340 कमरे हैं. राष्ट्रपति भवन बनाने के लिए लगभग 45 लाख ईंटें लगाई गई थीं. राष्ट्रपति भवन में इमारत के अलावा मुगल गार्डन और कर्मचारियों का भी आवास है. राष्ट्रपति भवन का निर्माण वास्तुकार एडविन लैंडसीयर लुट्येन्स ने किया था. 

दरबार हॉल: राष्ट्रपति भवन के अंदर मौजूद दरबार हॉल में 33 मीटर की ऊंचाई पर 2 टन का झाड़फानूस लटका हुआ है. अंग्रजों के शासन में दरबार हॉल को सिंहासन कक्ष कहा जाता था.

सेंट्रल डोम: राष्ट्रपति भवन की सबसे बड़ी पहचान सेंट्रल डोम है. ये एतिहासिक सांची स्तूप की याद दिलाता है. ये गुंबद फोर कोर्ट के 55 फुट ऊपर भवन के मुकुट की तरह विराजमान है. 

खंभों में घंटियों का डिजाइन: राष्ट्रपति भवन में खंभों में घंटियों का डिजाइन बना हुआ है. इन्हें डेली ऑर्डर भी कहा जाता है. अंग्रेज ऐसा मानते थे कि अगर घंटियां स्थिर रहें तो सत्ता स्थिर और लंबे वक्त तक चलेगी. इसलिए बड़ी संख्या में इन्हें यहां बनाया गया था लेकिन यह भवन बनते ही अंग्रेजों की सत्त डगमगाने लगी थी.  

चांदी का सिंहासन: राष्ट्रपति भवन के मार्बल हॉल में किंग जॉर्ज पंचम और महारानी मेरी की प्रतिमाएं हैं. पूर्व वायसरायों और गवर्नर जनरलों के चित्र हैं. महारानी का इस्तेमाल किया गया चांदी का सिंहासन भी है. ब्रिटिश राजमुकुट की पीतल की प्रतिकृति भी रखी गई है.

अशोक हॉल के कार्पेट: अशोक हॉल में हर तरह के बड़े समारोह किए जाते हैं. इसकी छत पर देश ही नहीं दूसरे देशों के सम्राटों के तौर-तरीकों की झलक दिखती है. छत पर ईरान साम्राज्य के सम्राट फतेह अली शाह की विशाल चित्रकारी अशोक हॉल की छत का केंद्र है, जिनके इर्द-गिर्द 22 राजकुमार शिकार करते नजर आ रहे हैं. बताया जाता है कि लेड विलिंगटन ने निजीतौर पर इटली के मशहूर चित्रकार Tomasso Colonnello को चित्रकारी का जिम्मा दिया था. अशोका हॉल में लगे कार्पेट 500 कारीगरों की दो साल की मेहनत के बाद तैयार किए गए थे. 

मुगल गार्डन: राष्ट्रपति भवन का मुगल गार्डेन 15 एकड़ में फैला है जो हमेशा से लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र रहा है. यहां के गार्डेन में ब्रिटिश और इस्लामिक दोनों तरह की झलक मिलती है. इस गार्डन को बनाने के लिए एडविन लुटियंस ने जन्नत के बाग, कश्मीर के मुगल गार्डन के अलावा भारत और प्राचीन इरान के मध्यकाल के दौरान बनाए गए राजे रजवाड़ों के बागीचों का भी अध्ययन किया था. यहां पेड़ लगाने का काम 1928 में शुरू हुआ जो करीब एक साल तक चला. 



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