एथलीट बोली- कैसे आए ओलंपिक में पदक…5 लाख का मेट खराब न जाए इसलिए घास पर कराते प्रैक्टिस


भोजपुर : पहलवानी में बिहार केसरी का खिताब बहुत बड़ा होता है. राधा कुमारी को बिहार केसरी का खिताब मिला है. 23 वर्षीय राधा आरा की रहने वाली हैं. भोजपुर के अब तक के इतिहास में राधा पहली महिला पहलवान है जिसे बिहार केसरी के उपाधि से नवाजा गया है. राधा जैसी पहलवान बिहार में शायद ही कोई हो बावजूद राधा की अंतरास्ट्रीय स्तर पर कोई मौका नही मिल पाया. राधा बताती है कि बिहार में पहलवानी करना ही मेरी गलती थी किसी और राज्य से रहती तो शायद हम भी ओलंपिक तक का सफर पूरा कर पाते.

राधा कुमारी, आरा शहर के श्री टोला मोहल्ले के योगेंद्र शर्मा की पुत्री, ने अपने जीवन की कठिनाइयों के बावजूद पहलवानी में शानदार उपलब्धियां हासिल की हैं. अपने परिवार की आर्थिक तंगी और पिता की मृत्यु के बाद भी राधा ने हार नहीं मानी और लगातार अपने प्रदर्शन से सफलता की सीढ़ियां चढ़ती रहीं.

राधा ने अब तक बिहार का प्रतिनिधित्व करते हुए 17 बार राज्य को गोल्ड मेडल दिलाया है. उन्होंने स्टेट गोल्ड मेडल जीतकर पहलवानी के क्षेत्र में अपना नाम रोशन किया है. जिला स्तर पर भी राधा ने अनगिनत मेडल जीते हैं, और बक्सर में आयोजित कुश्ती प्रतियोगिता में पहली बार ‘बिहार केसरी’ का खिताब अपने नाम किया.

राधा की यह यात्रा न केवल उनकी व्यक्तिगत सफलता की कहानी है, बल्कि यह भी दर्शाती है कि कठिनाइयों के बावजूद यदि कोई दृढ़ संकल्प और मेहनत से अपने लक्ष्य की ओर बढ़ता है, तो वह निश्चित रूप से सफलता प्राप्त कर सकता है.

बगैर संसाधन के बनी पहलवान
राधा कुमारी ने पहलवानी की शुरुआत साल 2018 में आरा के जैन कॉलेज से की थी. हालांकि, जगह के अभाव और प्रशासनिक उदासीनता के कारण, उन्हें अभ्यास के लिए लगातार संघर्ष करना पड़ा. भोजपुर जिला प्रशासन और राज्य सरकार की अनदेखी का शिकार होने के बावजूद, राधा ने हार नहीं मानी और आज भी बिना मैट के अभ्यास करती हैं.

राधा और उनके साथ आधा दर्जन अन्य लड़कियां महाराज कॉलेज के घास पर अभ्यास कर रही हैं, जहां वे अंतरराष्ट्रीय स्तर पर मेडल जीतने का सपना देखती हैं. मैट के बिना कठिन परिस्थितियों में भी राधा का संघर्ष और समर्पण अन्य लड़कियों के लिए प्रेरणा का स्रोत है, जो खेलों में अपना करियर बनाने की कोशिश कर रही हैं.

पिता की मौत भी नहीं तोड़ पाया हौसला
राधा कुमारी ने लोकल 18 से बात करते हुए अपनी कठिनाइयों और तंगहाली के बारे में खुलकर बताया. उन्होंने कहा कि 2020 में बीमारी के कारण उनके पिता की मृत्यु हो गई, जिससे घर की आर्थिक स्थिति बेहद खराब हो गई थी. उस समय, राधा ने सोचा था कि खेल छोड़कर शादी कर लेंगी, लेकिन उनके गुरु जुगेश्वर सर ने उनका हौसला बनाए रखा और उनके खेल के खर्च को उठाने लगे.

राधा ने बताया कि उनके गुरु आज भी उनके खेल के सभी खर्चे उठाते हैं. हालांकि, राधा ने 17 गोल्ड मेडल बिहार को दिलाए हैं, फिर भी उन्हें अब तक राज्य सरकार से कोई मदद नहीं मिली है. इस परिस्थिति के बावजूद, राधा का दृढ़ संकल्प और उनके गुरु का समर्थन उन्हें अपने सपनों की ओर बढ़ने के लिए प्रेरित करता है.

राधा से जब लोकल 18 ने पूछा कि क्या वह भविष्य में ओलंपिक का हिस्सा बन सकती हैं, तो उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि बिहार में जो सुविधाएं मिल रही हैं, उनसे किसी भी खिलाड़ी के लिए अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहुंचना मुश्किल है. उन्होंने बताया कि खेल भवन में 5 लाख का मैट लगा है, लेकिन उन्हें वहां प्रैक्टिस करने नहीं दिया जाता, क्योंकि वह बहुत महंगा है.

राधा ने यह भी बताया कि उन्हें न तो सही डाइट मिलती है, न ही कोई कोच है, और न ही टूर्नामेंट में शामिल होने के लिए यात्रा का पैसा मिलता है. बाहर जाकर रहने और खाने का खर्च भी उन्हें खुद ही उठाना पड़ता है. ऐसी स्थिति में, उन्होंने सवाल उठाया कि कोई खिलाड़ी कैसे अंतरराष्ट्रीय स्तर या ओलंपिक तक पहुंच सकता है. राधा की बातें बिहार में खेलों के प्रति सरकारी उदासीनता और सुविधाओं की कमी को उजागर करती हैं, जो खिलाड़ियों के लिए बड़ी चुनौती बन रही है.

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