कई प्रकार के मुर्गा और बेटर पालन कर ये व्यक्ति कमा रहा साल 8 लाख मुनाफा, 50 लाख के झेल चुका है नुकसान


गौरव सिंह/ भोजपुर: बिहार के आरा में जितेंद्र कुमार नामक युवक ने मुर्गीपालन के व्यवसाय में एक मिसाल कायम की है. पहले नौकरी करने वाले जितेंद्र ने खुद का बिजनेस शुरू करने का फैसला किया और आज वे एक सफल उद्यमी के रूप में अपनी पहचान बना चुके है. हालांकि, शुरुआत में उन्हें 50 लाख रुपये का बड़ा नुकसान झेलना पड़ा, लेकिन अब उनकी कहानी सफलता की प्रेरणा बन चुकी है.

50 लाख का नुकसान और फिर से खड़ा हुआ व्यवसाय
जितेंद्र कुमार भोजपुर के वरुणा गांव के रहने वाले हैं. उन्होंने नव भारत फर्टिलाइजर कंपनी में नौकरी की थी, जो मुर्गीपालन से संबंधित व्यवसाय से जुड़ी थी. यहीं काम करते हुए उन्हें खुद का बिजनेस करने का ख्याल आया. नौकरी छोड़कर उन्होंने आरा में बटेर हेचरी का व्यवसाय शुरू किया, जिसमें 50 लाख रुपये से ज्यादा का निवेश किया था. दुर्भाग्य से, उनका बटेर हेचरी व्यवसाय असफल रहा और भारी नुकसान का सामना करना पड़ा.

हार नहीं मानी, दुबारा की शुरुआत
50 लाख रुपये का नुकसान किसी भी मिडल क्लास परिवार के लिए एक बहुत बड़ी राशि होती है, लेकिन जितेंद्र ने हार नहीं मानी. उन्होंने फिर से मुर्गीपालन में हाथ आजमाया और 2017 में इस उद्योग को नए सिरे से शुरू किया. आज जितेंद्र की कंपनी कई राज्यों में होलसेलर सप्लायर है. उनकी मेहनत और संकल्प का नतीजा है कि अब वे हर महीने 60 से 70 हजार रुपये की आमदनी कर रहे हैं. जितेंद्र बताते हैं कि अब उन्हें व्यवसाय में ज्यादा मेहनत नहीं करनी पड़ती, सिर्फ मॉनिटरिंग करनी होती है और होलसेलर को समय पर माल की आपूर्ति करनी होती है.

कई राज्यों में होलसेल सप्लायर
जितेंद्र का व्यवसाय अब आरा के अलावा बलिया, बनारस, बक्सर समेत कई जिलों और राज्यों में फैला हुआ है. वे कड़कनाथ, वनराज और ब्रॉयलर मुर्गों के साथ-साथ बटेर पालन भी कर रहे हैं. कड़कनाथ और वनराज मुर्गियां अधिक अंडे देने के लिए जानी जाती हैं. एक वर्ष में ये मुर्गियां लगभग 140 अंडे देती हैं. इनका मीट स्वादिष्ट, पौष्टिक और रोग निरोधक क्षमता से युक्त होता है. कड़कनाथ का मांस साधारण मुर्गे की तुलना में तीन गुना अधिक कीमत पर बिकता है, जिससे इसे पालने वाले किसानों को भी अच्छा मुनाफा होता है.

वनराज मुर्गीपालन की खासियत
वनराज मुर्गी अन्य मुर्गियों की तुलना में अधिक अंडे देती है और इसका पालन भी आसानी से किया जा सकता है. साधारण मुर्गियों की तुलना में यह दो महीने पहले से ही अंडा देना शुरू कर देती है. प्रति वर्ष एक मुर्गी से 140 अंडे प्राप्त किए जा सकते हैं. इसका मीट पौष्टिक होता है और इसमें रोग प्रतिरोधक क्षमता भी अधिक होती है. यही विशेषता कड़कनाथ मुर्गे में भी होती है, जिसका मांस तीन से चार गुना अधिक कीमत पर बिकता है. जितेंद्र कुमार की यह सफलता की कहानी उन सभी के लिए प्रेरणा है, जो बड़े नुकसान के बाद भी हार मानने की बजाय मेहनत और दृढ़ संकल्प से आगे बढ़ते हैं.

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