कभी ट्राइसाइकिल से घर-घर ट्यूशन पढ़ाने जाते थे चुन्नु, अब खोल दिया खुद का स्कूल


छपरा : अक्सर देखा जाता है कि लोग अपने लक्ष्य को प्राप्त करने के लिए खूब संघर्ष मेहनत करते हैं. लेकिन बीच में कुछ ऐसी समस्या आ जाती हैं. जिसकी वजह से लोग संघर्ष करना बंद कर देते हैं. इसी वजह से उन लोगों का लक्ष्य प्राप्त नहीं हो पता है. लेकिन उन्हीं में से कुछ ऐसे लोग होते हैं. जो अपने संघर्ष और जिद के आगे सभी अड़चन को पार करते हुए लक्ष्य प्राप्त करते हैं. उन्हीं में से एक हैं छपरा शहर के गुदरी राय निवासी चुन्नू मिश्रा. जो दोनों पैरों से दिव्यांग हैं.

चुन्नू मिश्रा कि कहानी आप पढ़ कर भावुक हो जाएंगे, बचपन से ही यह संघर्ष करते आए हैं. इन्हें पढ़ कर कुछ कर गुजरने की शुरू से ही ललक थी. लेकिन गरीबी इनकी सबसे बड़ी अड़चन थी. ब्राह्मण होने के नाते पिता पूजा पाठ करवाते थे. पूजा पाठ करवाने से जो दान दक्षिणा मिलता था. उसी से घर का जीविका चलती थी और चुन्नू मिश्रा की पढ़ाई भी चल रही थी. चुन्नू मिश्रा दोनों पैर से दिव्यांग तो जरूर थे. लेकिन हिम्मत और अपने जज्बे से दिव्यांग नहीं थे. उन्होंने अपने पिता की संघर्ष को देखा था. जो संघर्ष उनके लिए प्रेरणा का स्रोत बन और उन्होंने ठान लिया कि अपने पढ़ाई के साथ-साथ घर के चलाने में भी मुझे मदद करना है. उसके बाद उन्होंने घर-घर जाकर बच्चों को ट्यूशन पढ़ाते थे.

सरकार के द्वारा दी गई ट्राई साइकिल उनके लिए बहुत बड़ा साधन थी. जिसके माध्यम से बच्चों के घर जाकर ट्यूशन पढ़ाते थे. बाद में उन्होंने उच्च शिक्षा ग्रहण करने के बाद अतिथि शिक्षक के रूप में कॉलेज में पढ़ाने लगे, जहां से कुछ पैसा आने लगा, ट्यूशन और कॉलेज में पढ़ाने से जो पैसा आता था. वह पैसा घर चलाने में और अपने पढ़ाई में खर्च करते थे.

इसके साथ ही जो पैसा बचता था. उसको अपने सपने को पूरा करने के लिए एकत्रित करते रहे थे , जिस पैसे से उन्होंने एक कोचिंग खुला, जिसमें बच्चों के विषय के अलावे कंप्यूटर शिक्षा भी उनके द्वारा दिया जा रहा था. बाद में उन्होंने कुछ और पैसा सेव किया, और अब एक से लेकर 8 तक के बच्चों के लिए स्कूल खोल दिया है. जिसमें आधा दर्जन से अधिक लोगों को उन्होंने नौकरी भी दिया है. उनके संघर्ष को देखकर युवा प्रेरित होते हैं.

चुन्नू मिश्रा ने बताया कि मैं दोनों पैर से दिव्यांग तो जरूर हूं. लेकिन अपने हिम्मत और जज्बे से दिव्यांग नहीं हूं. उन्होंने कहा कि मैंने अपने पिता के संघर्ष को देखा है. जो सबसे बड़ा मेरे लिए प्रेरणा का स्रोत है. चून्नु बताते हैं कि उनका सपना था कि वह एक स्कूल खोले और इस सपने को उन्होंने पूरा कर लिया. आगे उन्होंने कहा कि शिक्षा के क्षेत्र बहुत बड़ा संस्थान खोलना चाहता हूं. जिसमें युवाओं को नौकरी दे सके, जिस लक्ष्य को पूरा करने के लिए आगे भी संघर्ष मेरा जारी रहेगा. युवाओं को कहा कि अपने लक्ष्य प्राप्त करने के लिए संघर्ष जीतोड़ करना चाहिए, तब जाकर लक्ष्य प्राप्त होगा.

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