करौली में गणगौर बनाने का इस परिवार का है पुश्तैनी काम, इनकी मूर्ति की अमेरिका तक डिमांड

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मोहित शर्मा/करौली : गणगौर का पर्व राजस्थानी संस्कृति का एक सबसे खास त्योहार है. होली के दूसरे दिन से ही राजस्थान में इसका उल्लास बरसना शुरू हो जाता है. राजस्थानी संस्कृति का यह एकमात्र ऐसा त्यौहार है. जिसे सुहागिन महिलाएं और कुंवारी कन्याएं 16 दिन तक सोलह श्रृंगार कर गणगौर माता की एक खास प्रतिमा का विधि -विधान से पूजन कर मनाती हैं. इस खास पर्व के लिए राजस्थान के अलग-अलग क्षेत्रों में गणगौर मां की खास प्रतिमाएं भी तैयार की जाती है.

बात की जाए राजस्थान की धार्मिक नगरी करौली की तो यहां का एक स्थानीय चतेरा परिवार सैकड़ों वर्षोंं से मिट्टी से गणगौर मां की खास प्रतिमा हाथों से तैयार करता आ रहा है. इस परिवार द्वारा हाथ से तैयार की गई मिट्टी की गणगौर की प्रतिमाओं की मांग दिल्ली, गुजरात, मुंबई तक रहती है.एक खास बात यह है कि इस बार पीढ़ियों से गणगौर की हाथ से मिट्टी की प्रतिमा बनाते आ रहे. इस चतेरा परिवार को अमेरिका से भी गणगौर माता की दो प्रतिमाओं का आर्डर मिला है.

एक महीने पहले से होती है तैयारी
इस परिवार द्वारा हाथों से निर्मित की गई गणगौर की प्रतिमाओं की मांग इतनी रहती है कि परिवार के सदस्य गणगौर का पर्व आने से 1 महीने पहले ही इन प्रतिमाओं को तैयार करने में जुट जाते है. करौली का यह चतेरा परिवार गणगौर के पर्व के लिए हजारों की संख्या में गणगौर की मिट्टी से बनी प्रतिमाएं हर साल हाथों से तैयार करता है. मुंबई-गुजरात तक इनके हाथ से तैयार की गई गणगौर की प्रतिमाओं की मांग रहती है.यें प्रतिमाएं शुद्ध मिट्टी, रंग रूप में सुंदर और पूर्ण रूप से हाथों से तैयार की जाती है.

पुश्तैनी है गणगौर बनाने का काम
दिनेश शर्मा का कहना है कि 500 सालों से हमारा परिवार गणगौर की प्रतिमाएं तैयार करता आ रहा है. हमारे परिवार की कई पीढ़ी इस कार्य को करते हुए गुजर गई. पूर्वजों के बाद के हमारे परिवार की 5वीं पीढ़ी गणगौर की प्रतिमाओं को हाथों से तैयार कर रही है. करौली में गणगौर बनाने का हमारा पुश्तैनी काम रहा है.

एक खास कला से तैयार की जाती हैप्रतिमा
चतेरा परिवार के दिनेश शर्मा बताते हैं कि गणगौर की यह मिट्टी से बनी प्रतिमाएं एक खास कला और सिर्फ मिट्टी से बनाई जाती है. इन प्रतिमाओं को हमारा परिवार चिकनी मिट्टी से तैयार करता है. उन्होंने बताया कि इस साल इन प्रतिमाओं की डिमांड अमेरिका तक रही है. हमारे यहां से दो गणगौर की प्रतिमाएं इस बार अमेरिका गई हैं. इसके अलावा इन प्रतिमाओं की डिमांड हर साल मुंबई, गुजरात, दिल्ली पुणे तक रहती है.

बड़ी गणगौर की भी रहती है डिमांड
दिनेश शर्मा का कहना है कि साधारण मिट्टी की गणगौर के अलावा हमारे यहां लकड़ी की गणगौर और गणगौर की बड़ी प्रतिमाओं की भी मांग रहती है. जो केवल ऑर्डर पर तैयार की जाती है. लकड़ी से बनी हुई गणगौर की प्रतिमाओं की कीमत ₹400, ₹500 तक होती है. इस बार लकड़ी की भी एक फुट की प्रतिमा इस परिवार द्वारा ऑर्डर पर तैयार की गई थी. जिसकी कीमत ₹2100 थी.

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